नरक चतुर्दशी पर्व दिवाली के एक दिन पूर्व मनाया जाता है. चतुर्दशी जिसे काली चौदस, रूप चौदस, नरक निवारण चतुर्दशी के नामों से भी जाना जाता है पर्व कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन आता है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था इसी कारणवश इस दिन को नरक चतुर्दशी कहा जाता है 

क्यूं मनाई जाती है नरक चतुर्दशी ? 

भगवान श्रीकृष्ण और देवी काली ने नरकासुर को मारकर बुराई को समाप्त कर दिया। यह त्योहार उनकी जीत की याद दिलाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने राक्षस को मारने के बाद, ब्रह्म मुहूर्त के दौरान, तेल से स्नान किया था। यही कारण है कि पूर्ण अनुष्ठान के साथ सूर्योदय से पहले तेल स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है।

नरक चतुर्दशी एक शुभ दिन है जो सभी बुरी और नकारात्मक ऊर्जाओं को जीवन से दूर कर देता है। यह नई शुरुआत का दिन है जब हम अपने आलस्य से मुक्त होकर एक उज्ज्वल और समृद्ध भविष्य की नींव रखते हैं।

कैसे मनाई जाती है नरक चतुर्दशी ?

नरक चतुर्दशी के त्योंहार से जुड़े कई तरह के पालन और अनुष्ठान हैं भक्तों को दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए सूर्योदय से पहले तेल स्नान करना चाहिए। इस दिन को उत्तर भारत में छोटी दिवाली और दक्षिण भारत में तमिल दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

पुरुष, महिलाएं और बच्चे समान रूप से नए कपड़े पहनते हैं, अपने घरों को सजाते हैं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद लेते हैं।

नरक चतुर्दशी का महत्व (Importance of Narak Chaturdarshi) 

नरक चतुर्दशी के दिन दीपक जलाने तथा दीपदान का पौराणिक महत्व है। इस दिन सांयकाल में दीये की रोशनी के द्वारा अंधकार को दूर किया जाता है इसी कारणवश नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहते हैं इस दिन नरकासुर का वध और 16,100 कन्याओं को बंधन मुक्ति कराकर श्री कृष्ण के द्वारा इन कन्याओ से विवाह सम्पन्न कर सम्मान प्रदान करने का विशेष महत्व है

जानें कैसे करें नरक चतुर्दशी पूजा ?

नरक चतुर्दशी प्रमुख त्योहारों में से एक है जो दिवाली के दूसरे दिन मनाई जाती है। नरक चतुर्दशी पूजा की प्रक्रिया इस प्रकार हैः –

१. लकड़ी की चौकी लें और पूजा स्थल पर एक लाल कपड़ा बिछाएं।

२. चौंकी पर भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की तस्वीर लगाएं।

३. एक थाली लें और उसके ऊपर पहले एक लाल कपड़ा बिछाएं और फिर उसी पर कुछ चांदी के सिक्के रखें।

४. अब, एक बड़ी प्लेट लें, बीच में स्वस्तिक बनाएं, चारों ओर 11 दीये रखें और थाली के बीच में 4 मुख वाला दीया रखें।

अब 11 दीयों में चीनी डालें, या आप मखाना, खीर या मुरमुरा भी मिला सकते हैं।

५. अगला महत्वपूर्ण कदम यह है कि पहले 4 दीये जलाए जाएं और फिर अन्य 11 दीये जलाए जाएं।

६. अब रोली लें और देवी लक्ष्मीजी, सरस्वती और भगवान गणेश को लाल रंग और चावल के मिश्रण से तिलक लगाएं।

अब सभी दीयों में रोली और चावल का मिश्रण रखें और फिर गणेश लक्ष्मी पंचोपचार पूजा करें।

७. अगला कदम एक और दीया जलाना और उसे देवी लक्ष्मी के चित्र के सामने रखना है।

८. अगरबत्ती व धूप जलाऐं और देवी लक्ष्मी के चित्र के सामने फूल और मिठाई रखें।

अब 7 दीयों और एक मुख्य 4 मुंह वाले दीये को सामने रखें, बाकी के दीयों को लें और उन्हें घर के मुख्य द्वार पर रखें।

न्यूनतम 108 बार लक्ष्मी मंत्र ‘श्रीं स्वाहा’ का पाठ करें और उनके आशीर्वाद के लिए भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी का धन्यवाद करें।

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