शनि स्तोत्र (दशरथ कृत) हिन्दी अर्थ सहित | शनि स्तोत्र महत्व, पूजन विधि और नियम

हिंदू धर्म में शनिदेव को न्याय के देवता और कर्मफल दाता माना जाता है। कहा जाता है कि जिन पर शनिदेव की कृपा होती है, उनका जीवन सुख, सौभाग्य और समृद्धि से भर जाता है, जबकि उनकी कठोर दृष्टि से बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी कांप उठते हैं। परंतु क्या आप जानते हैं कि स्वयं महाराजा दशरथ ने शनिदेव को प्रसन्न कर उनके कोप को शांत किया था ?

पद्म पुराण में एक ऐसी अद्भुत कथा का वर्णन मिलता है, जिसमें शनिदेव ने स्वयं अपने मुख से बताया कि उनकी कठिन दृष्टि से कैसे बचा जा सकता है और कौन-सा स्तोत्र एवं पूजन-विधि करने से शनिदेव तुरंत प्रसन्न होते हैं।

इसी लेख में हम आपको वही शनि पूजन विधि, राजा दशरथ द्वारा रचित शनि स्तोत्र और उससे मिलने वाले लाभों की जानकारी विस्तारपूर्वक बताने जा रहे हैं, ताकि आप भी शनिदेव की कृपा प्राप्त कर जीवन की बाधाओं से मुक्ति पा सकें।

शनि स्तोत्र का महत्व

यदि आपकी कुंडली में शनि दोष, साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही है, तो इस राजा दशरथ द्वारा रचित शनि स्तोत्र का नियमित पाठ आपके जीवन से कष्ट, मानसिक तनाव और आर्थिक समस्याओं को दूर कर सकता है।

मान्यता है कि शनि देव इस स्तोत्र से प्रसन्न होकर भक्तों पर अपनी कृपा बरसाते हैं।

📿शनि स्तोत्र पाठ करने का समय और विधि

दिन: शनिवार या दैनिक सुबह

दिशा: पूर्व या पश्चिम की ओर मुख करके

आसन: साफ और पवित्र स्थान पर बैठें

पूजा सामग्री: सरसों तेल का दीपक, शनि की मूर्ति/चित्र

अंतिम जप: “ॐ शं शनैश्चराय नमः” 108 बार

शनि देव के कथानुसार पूजन विधि

शनिदेव ने अपने मुख से यह पूजन विधि बताई है। प्रत्येक व्यक्ति को यह प्रयास करना चाहिए।

पद्म पुराण में वर्णित कथा के अनुसार शनि देव के नक्षत्र भ्रमण के दौरान राजा दशरथ ने विशेष उपाय के लिए उनके पास पहुँचना उचित समझा।

राजा दशरथ ने मुनि वशिष्ठ और अन्य ज्ञानीयों से उपाय पूछा, लेकिन उन्हें समाधान नहीं मिला। तब महाराज ने अपने दिव्य अस्त्र और रथ से रोहाणी नक्षत्र के पास जाकर शनि देव को प्रणाम किया।

शनि देव प्रसन्न होकर राजा को वरदान दिया कि वे रोहाणी नक्षत्र का भेद न करें और जनता को बारह वर्षों तक तबाही से बचाएँ।

दशरथ उवाच:

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥

रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।

सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥

याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।

एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥

प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।

पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥

दशरथकृत शनि स्तोत्र 

नमः कृष्णाय नीलाय शीतिकण्ठनिभाय च ।

नमः कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नमः ।।

नमो निर्मांसदेहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च ।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदरभायकृते ।।

नमः पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णे च वै पुनः ।

नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोस्तु ते ।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नमः ।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय करलिने ।।

नमस्ते सर्व भक्षाय बलीमुख नमोस्तु ते ।

सूर्यपुत्र नमस्तेस्तु भास्करेभयदाय च ।।

अधोदृष्टे नमस्तेस्तु संवर्तक नमोस्तु ते ।

नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोस्तु ते ।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च ।

नमो नित्यं क्षुधातार्याय अतृप्ताय च वै नमः ।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेस्तु कश्यपात्मजसूनवे ।

तुष्टो ददासि वै राज्यम रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।

देवासुरमनुष्याश्च सिद्धविद्याधरोरगा: ।

त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः ।।

प्रसादम कुरु में देव वराहोरहमुपागतः ।।

( पद्म पुराण उ० ३४|२७-३५ ) 

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दशरथ कृत शनि स्तोत्र हिन्दी पद्य रूपान्तरण 

हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण्ठ वाले।

कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले।।

स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे।

सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे।।

स्वीकारो नमन मेरे।

            स्वीकारो भजन मेरे।।

हे दाढ़ी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले।

हे दीर्घ नेत्र वालेे, शुष्कोदरा निराले।।

भय आकृति तुम्हारी, सब पापियों को मारे।

            स्वीकारो नमन मेरे।

            स्वीकारो भजन मेरे।।

हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले।

कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले।।

तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे।

स्वीकारो नमन मेरे।

            स्वीकारो भजन मेरे।।

हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा। हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ।। हे भक्तों के सहारे, शनि! सब हवाले तेरे।

हैं पूज्य चरण तेरे।

            स्वीकारो नमन मेरे।।

हे सूर्य-सुत तपस्वी, भास्कर के भय मनस्वी।

हे अधो दृष्टि वाले, हे विश्वमय यशस्वी।।

विश्वास श्रद्धा अर्पित सब कुछ तू ही निभाले।

            स्वीकारो नमन मेरे।

            हे पूज्य देव मेरे।।

अतितेज खड्गधारी, हे मन्दगति सुप्यारी।

तप-दग्ध-देहधारी, नित योगरत अपारी।।

संकट विकट हटा दे, हे महातेज वाले।

स्वीकारो नमन मेरे।

            स्वीकारो नमन मेरे।।

नितप्रियसुधा में रत हो, अतृप्ति में निरत हो।

हो पूज्यतम जगत में, अत्यंत करुणा नत हो।।

हे ज्ञान नेत्र वाले, पावन प्रकाश वाले।

स्वीकारो भजन मेरे।

        स्वीकारो नमन मेरे।।

जिस पर प्रसन्न दृष्टि, वैभव सुयश की वृष्टि।

वह जग का राज्य पाये, सम्राट तक कहाये।।

उत्तम स्वभाव वाले, तुमसे तिमिर उजाले।

            स्वीकारो नमन मेरे।

            स्वीकारो भजन मेरे।।

हो वक्र दृष्टि जिसपै, तत्क्षण विनष्ट होता।

मिट जाती राज्यसत्ता, हो के भिखारी रोता।।

डूबे न भक्त-नैय्या पतवार दे बचा ले।

स्वीकारो नमन मेरे।

            शनि पूज्य चरण तेरे।।

हो मूलनाश उनका, दुर्बुद्धि होती जिन पर।

हो देव असुर मानव, हो सिद्ध या विद्याधर।।

देकर प्रसन्नता प्रभु अपने चरण लगा ले।

स्वीकारो नमन मेरे।

            स्वीकारो भजन मेरे।।

होकर प्रसन्न हे प्रभु! वरदान यही दीजै।

बजरंग भक्त गण को दुनिया में अभय कीजै।।

सारे ग्रहों के स्वामी अपना विरद बचाले।

स्वीकारो नमन मेरे।

            हैं पूज्य चरण तेरे।।

शनि स्तोत्र पाठ के नियम

शनिवार या रोज़ सुबह-सुबह पढ़ें।

साफ-सुथरे स्थान पर दीपक जलाकर बैठें।

पाठ के अंत में 108 बार “ॐ शं शनैश्चराय नमः” का जप करें।

नियमित पाठ से शनि दोष, साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव कम होता है।

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❓ FAQ

Q1: शनि स्तोत्र कितनी बार पढ़ना चाहिए ?

A: शनिवार को 11, 21 या 108 बार पढ़ना सर्वोत्तम माना जाता है।

Q2: शनि स्तोत्र पढ़ने का सही समय कब है ?

A: सुबह सूर्योदय से पहले या शनिवार के दिन पाठ करना शुभ होता है।

Q3: क्या नियमित पाठ से शनि दोष दूर हो सकता है ?

A: हाँ, नियमित पाठ और भक्ति से शनि दोष, साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव कम होता है।

Q4: क्या पाठ के दौरान कोई विशेष पूजा करनी चाहिए ?

A: हाँ, सरसों तेल का दीपक जलाकर शनि देव की प्रतिमा/चित्र के सामने पाठ करना शुभ माना जाता है।

डिसक्लेमर इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।