मरणासन्न व्यक्ति के लिए कल्याणकारी कर्म इन कामों को करने से मनुष्य के लिए खुलते हैं मोक्ष के द्वार
जो पृथ्वी पर जन्म लेता है उसकी मृत्यु भी होती है। मृत्यु इस जीवन का अटल सत्य है। शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति अपने अच्छे और बुरे कर्मों के अनुसार मृत्यु के पश्चात स्वर्ग और नरक लोक में जाता है। कहा जाता है अच्छे कर्म करने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति होती है तो बुरे कर्म करने वाला इस लोक के बाद भी नरक की यातनाएं भोगता है। मनुष्य के अच्छे कर्म ही उसके लिए मोक्ष के द्वार खोलते हैं।
मोक्ष प्राप्ति का अर्थ होता है जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना। मोक्ष का प्राप्ति के बाद मनुष्य को दोबारा इस मृत्युलोक पर जन्म लेने की आवश्यकता नहीं रहती है। इसलिए हर मनुष्य मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति करना चाहता है। शास्त्रों में कुछ ऐसे कार्य बताए गए हैं, जिन्हें करने से मनुष्य के मृत्यु समय के कष्ट कट जाते हैं। उसे इस लोक के बाद स्वर्ग में स्थान मिलता है। मनुष्य जीवन मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है।
सब से पहले भूमि को गोबर से लेपना चाहिए। फिर जल की रेखा से मंडल बना कर, उस पर तिल और कुश घास बिछाकर मरणासन्न व्यक्ति को उस पर सुला देना चाहिए। उस के मूंह में पंचरत्न / स्वर्ण आदि डालने से सब पापों को जला कर मुक्त कर देता है । भूत, प्रेत आत्माएं और यम के दूत अपवित्र स्थान और ज़मीन के ऊपर रखी चारपाई से मृत शरीर में प्रवेश करते हैं।
1. उस के मूंह में गंगा जल डालना चाहिए, अथवा तुलसी का पत्ता रखना चाहिए।
2. कोई भी शोक न मनाता हुआ, उस के पास प्रभु का नाम ले।
3. जब तक प्राण हैं, विष्णु का नाम ले।
4. यमराज का अपने दूतों को आदेश है कि मेरे पास उन आत्माओं को लाओ जो “हरी” का नाम नहीं लेते। ॐ, हरी को जपने वाले मेरे पास नहीं आते । पापी मनुष जो नारायाण को नहीं मानते, उनके कितने ही पुन्य कर्म उन के पापों को नहीं मिटा सकते।
5. हे गरुड़, जाने या अनजाने में मनुष, जो भी पाप करते हैं, उन पापों की शुद्धि के लिए उन्हें प्रायश्चित करना चाहिए शाश्त्रों में दशविधि स्नान, च्न्द्राय्न्ना व्रत, गौ दान, आदि का लेख किया गया है । यदि मनुष उन में क्षमता के कारण सफल न हो रहा हो तो कम से कम चौथाइ प्राय्क्चित अवश्य करना चाहिए । तत्पश्चात १० महादान, गौ, भूमि, तिल, स्वर्ण घी, वस्त्र, गुड, रजत, लवण, इन का दान करना चाहिए यह पाप की शुद्धि के लिए, पवित्रता में एक से एक बढ़कर हैं।
यमदुआर पर पहुँचने के जो मार्ग बताये गए हैं, वह अत्यंत दुर्ग्न्धिक, मवाद, रक्त्त आदि से परिव्याप्त हैं। अत: उस मार्ग में स्थित वैतरणी नदी को पार करने के लिए वैतरणी- गौ (जो गौ सर्वांग में काली हो और जिस के थन भी काले हों ) का दान करने चाहिए। यह सब उत्तम प्रकृति वाले ब्राह्मण को देना चाहिए।
पद दान का महत्व (Importance of post donation in Hindi)
1. छत्र, जूता, वस्त्र, अंगूठी, कमंडलू, आसन, पात्र और भोजन पदार्थ, यह आठ प्राकर के पद दान हैं। तिल पात्र, घृत पात्र, शय्या, तथा और जो अपने को ईष्ट हो, देना चाहिए।
2. हे पक्षी राज, इस पृथ्वी पर जिस ने पाप का प्रायश्चित कर लिया है, सब प्रकार के दान भी दे चूका है, वैतरणी गौ तथा अष्ट दान कर चूका है, जो तिल से पूर्ण पात्र, घी से भरा पात्र, शय्या दान और विधिवत पद दान करता है, वह नर्क रुपी गर्भ में नहीं आता, अर्थात उस का पुनर्जन्म नहीं होता।
3. मनुष स्वय जो दान करता है, परलोक में वह सब उसे प्राप्त होता है। वहां उस के आगे रखा हुआ मिलता है।
4. छत्र दान करने से मार्ग में सुख प्रदान करने वाली छाया प्राप्त होती है।
5. पादुका दान से वह मनुष्य घोड़े पर सवार हो कर सुखपूर्वक मार्ग पार करता है।
6. जल से परिपूर्ण कमंडलू के दान से मनुष्य सुख पूर्वक परलोक गमन करता है।
7. वस्त्र- आभूषण दान करने से यम दूत प्राणी को कष्ट नहीं देते।
8. तिल (सफ़ेद, काले,भूरे ) के दान से, मन, वाणी, और शरीर से किये हुए पाप नष्ट होते हैं।
9. सभी साधनों से युक्त शय्या दान से स्वर्ग लोक में ६०००० वर्ष तक, इंद्र लोक के भोग भोगता है।
10. इस के अतिरिक्त, गौ दान देते समय नान्दानान्दानाम उच्चारण करने से वैतरणी नदी में नहीं गिरता
11. दुखद, और बिमारी के समय, तिल, लोहा, सोना, रूई का वस्त्र, नमक, सात अनाज, भूमि का टुकड़ा, देने से पाप कर्मों की शुद्धि होती है।
12. लोहा दान करने से, यम की नगरी में नहीं जाता। लोहे का दान, हाथों को जमीन के साथ छूते हुए देना चाहिए। यम राज के हाथों में कई प्रकार के लोहे के अस्त्र होते हैं । यह दान उन अस्त्रों के प्रभाब को कम करता है।
13. सोने का दान, यम राज की सभा में उपस्थित, ब्रह्मा, और दुसरे ऋषि मुनिओं को प्रसन्न करता है जो की वरदान की संज्ञा रखता है।
14. रूई के वस्त्र से यमदूत, कष्ट नहीं देते ।
15. सात अनाजों के दान से, यम दूआरों पर तैनात कर्मचारी आनन्दित होते हैं ।
16. भूमि के टुकड़े पर, जिस पर फसल हो, देने से इंद्र लोक की प्राप्ति होती है।
17. पूरे होश में रहते हुए, एक गौ का दान, बीमार अवस्था में एक सो ( १००) और मरणासन्न के समय एक हजार गौ दान करने के बराबर है।
18. एक गौ केवल एक जन को ही दी जानी चाहिए । वह यदि इस गौ को बेचता है या किसी दुसरे के साथ इस का बटवारा करता है, तो उस का परिवार सात पीढयों तक पीडत रहता है।
गौ दान करने की विधि cow donation method in Hindi
काली या भूरी गौ के सींगों पर सोने का पत्र, और पैरों में चांदी पहनाएं।
इस का दूध पीतल के बर्तन में निकालें।
गौ के ऊपर काले कपडे का दोशाळा डाले।
दूध वाले बर्तन को ढक कर, रूई के ऊपर रखें । इस के पास यमराज की एक सोने की मूर्ती, एक लोहे का टुकड़ा, पीतल के बर्तन में घी, यह सब गौ के ऊपर रखें।
गन्ने की पौरिओं से, रेशम की डोर से बंधा एक फट्टा बना कर, धरती में एक गड्ढा बना कर, पानी से भरें और फट्टा को इस में रखें।
गौ की पूंछ पकड़ कर ,पैर फट्टा पर रख कर ,ब्राह्मिन को दान- दक्षिणा, नमस्कार करके, मन्त्र का उच्चारण करते हुए भगवान् विष्णु से नम्र प्रार्थना करें की हे प्रभु, आप सब प्रानिओं के दाता, रक्षक और कल्याणकारी हैं। आपके चरणों में यह उपहार भेंट करता हुआ, वेतारनी नदी को नमस्कार करता हूँ। हे गौ माता, आप देवी शक्ति के रूप में, मेरे पापों का खंडन करें। फिर हाथ जोड़े हुए, यम राज को गौ की प्रतिमा में देखते हुए, इन सब के गिर्द एक चक्कर लगा कर ब्राह्मिन को दान में दें।
गौ दान के लिए शुभ समय, स्थान (Auspicious time, place for cow donation in Hindi)
सभी नहाने वाले पवित्र स्थल सन्त-ब्राह्मणों के निवास स्थान सूर्य, चन्द्र ग्रहण नये चाँद वाले दिन थोड़ी सम्पत्ति, धन अपने हाथों से दान में दी हुई का प्रभाव सदा ही रहता है। धन, सम्पत्ति, पत्नी, परिवार, सब विनाश होने वाले हैं इस लिए पुण्य कर्मों को संचित करो। पुण्य – दान, छोटे-बड़े से मेरे को कोई फर्क नहीं पड़ता ।
लालच के कारण जो पापी लोग, बीमारीओं में पुण्य दान नहीं करते, वह सदा दुखी ही रहते हैं.।
पुत्र, पौत्र, भाई, बन्धु, मित्र, जो मरणासन्न व्यक्ति के लिए, दान पुण्य नहीं करते, उन्हें ब्रह्म हत्या तुल्य पाप लगता है ।
इन बताए गये सभी प्रकार के दानों में प्राणी की श्रद्धा और अश्रद्धा से आई हुई दान की अधिकता और कमी के कारण उस के फल में श्रेष्ठता और लघुता आती है ।
भूमि पर बने इस मंडल में ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, लक्ष्मी तथा अग्नि देवता विराजमान हो जाते हैं। अत: मंडल का निर्माण अवश्य करना चाहिए। मंडलवहींन भूमि पर प्राणत्याग करने पर, उसे अन्य योनी नहीं प्राप्त होती। उस की जीव आत्मा वायु के साथ भटकती रहती है।
तिल मेरे पसीने से उत्पन्न हुए हैं। इसका प्रयोग करने पर असुर, दानव, दैत्ये भाग जाते हैं। एक ही तिल का दाना स्वर्ण के बत्तीस सेर तिल के बराबर हैं।
कुश मेरे शरीर के रोमों से उत्पन्न हुए हैं। कुश के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु, तथा अग्र भाग में शिव को जानना चाहिए। इसलिए देवताओं की त्रप्ति के लिए मुख्य रूप से कुश को, और पितरों की तृप्ति के लिए तिल का महत्व है।
हे पक्षी श्रेष्ठ, विष्णु, एकादशी व्रत, गीता, तुलसी, ब्राह्मिन और गौ, यह छे, दुर्गम असार- संसार में लोगों को मुक्ति प्रदान करने के साधन हैं। अंतिम साँसों में “ओ गंगा, ओ गंगा, भागवत गीता के शलोक अथवा हरी का नाम जपने से मंगलकारी होता है।
मृतु काल में मरणासन्न के दोनो हाथों में “कुश” रखना चाहिए / इससे प्राणी विष्णु लोक को प्राप्त होता है।
लावनारस, पितरों को प्रिय होता है अथवा स्वर्ग प्रदान करता है।
उस के समीप, तुलसी का पेड़, शालग्राम की शिला (सभी पापों को नष्ट करती है), भी लाकर रखें। जिस घर में तुलसी स्थल बना कर तुलसी की पूजा होती है वह एक पवित्र नहाने का स्थान माना जाता है और यम के दूत वहां नहीं आते।
इसके बाद यथा विधान सूतकों का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से मृत्यु मुक्ति दायक होती है।
शोक न मनाते, पुत्र को सर मुंडवा कर नए वस्त्र्र धारण कर, अपने प्रियजनों के साथ लाश को नहलाना चाहिए।
इसके बाद मरे हुए व्यक्ति के शरीरगत विभिन स्थानों में (मुख, नाक के छिदर, नेत्र, कान, लिंग, ब्रह्माण्ड ) पर सोने की शालाखें रखें।
उसके शव को दो वस्त्रों से आच्छादित करके कुंकुम और अक्षत से पूजन करना चाहिए ।
घर की बहुरानी और दूसरों को लाश की परिक्रमा कर उसे पूजन चाहिए और मरण स्थल पर चावल की खील (लाइ) अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से धरती माता और दिव्य शक्तिंयां प्रसन्न होती हैं ।
पुष्पों की माला से विभूषत करके, उसे पुत्र, बंधुओं के साथ दुआर से ले जाया जाए। उस समय पुत्र को मरे हुए पिता के शव को कंधे पर रख कर स्वयं ले जाना चाहिए। यदि मनुष को मोक्ष न मिलता हो, तो पुत्र नर्क से उसका उद्दार कर देता है। जो पुत्र लाश को कन्धा देता है, उसे हर कदम पर अश्व मेघ यघ का फल मिलता है।
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