33 करोड़ या 33 कोटि देवी देवता कौन-कौन से है ? इसे लेकर सनातनधर्मियों में ही भ्रम की स्थिति है है जिसे इस पोस्ट द्वारा स्प्ष्ट करने का प्रयास होगा।। सनातन धर्म विश्व का सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक आधार युक्त धर्म भी है जिसमें अकारण कुछ नहीं अपितु सभी कुछ कारण सहित मौजूद है । दुर्भाग्य ये है कि हम ये तो जानते हैं कि तिलक लगाना है पर उसका कारण नहीं जानते , शिखा रखनी है पर उसका कारण नहीं जानते । जबकि सभी को वैज्ञानिक कारण सहित ही इन्हें सनातन ने अपनाया है । अब आज के विषय पर आते हैं ।
देवी देवता, 33 प्रकार के या 33 करोड़ ?
सनातन धर्म मनुष्य के मन में उठ रहे हर उस आशंका का समाधान करता है, जिसका समाधान वो जानना चाहता है। लेकिन ज्ञान के आभाव में हम सनातन धर्म के वैज्ञानिक अर्थ को ना समझकर उसे रूढ़िवादी और अवैज्ञानिक तथ्यों के रूप जानने लगे है। जबकि वास्तविकता में सनातन धर्म तर्कों के आधार पर स्वयं को सिद्ध करने वाला धर्म है।
जानें 33 करोड़ या 33 कोटि देवी देवता कौन-कौन से है ?
हमें अपने धर्म ग्रंथो के विषय मे काफी भ्रामक जानकारियाँ है, हम शायद उनके वास्तवकि अर्थ को ना तो समझ पाये है और ना ही उनहे सही तरीके से पारिभाषित ही कर पाये है। एक छोटा सा विषय ही लेते है हमारे धर्मग्रंथो मे 33 कोटि देवताओ का वर्णन है, जहाँ कोटि शब्द को लेकर काफी भ्रामक प्रचार है। अधिकतर हम लोग कोटि को करोड़ से ही परिभाषित करते है।
कोटि के प्रायः दो अर्थ है एक “प्रकार” और दूसरा “करोड़” और शायद इसीलिए हम “33 कोटि” देवतओं को “33 करोड़” देवता कहते है। जबकि हमारे धर्मग्रंथो मे ’84 लाख’ योनियों का जिक्र है जब योनिया ही केवल ’84 लाख’ है तो सोचिए देवता कैसे ’33 करोड़’ हो सकते है। इस पर शायद हमने कभी विचार ही नहीं किया, इस अल्पज्ञान से “33 कोटि देवताओं” का अर्थ ही भिन्न हो जाता है। वास्तव मे यहाँ कोटि शब्द का प्रयोग प्राय “प्रकार” से है अथार्त ’33 प्रकार’ के देवता।
सनातन धर्म में वर्णित 33 कोटि देवताओं का योग इस प्रकार है
इस तरह कुल हुए 12+8+11+2 = 33 कोटि देवी-देवता।
33 कोटि देवता = 8 (वसु ) + 12 (आदित्य ) + 11 (रूद्र ) + 2 (अश्वनीकुमार ) = 33
इन ’33 कोटि’ देवताओं को मुख्यत: 4 श्रेणियों मे विभाजित किया गया है।
1 वसु
2 आदित्य
3 रूद्र
4 अश्वनीकुमार
वसु देवता
वसु को शास्त्रों में इस प्रकार परिभाषित किया है अर्थात जहाँ कोई वास करता हो जैसे जीवात्मा हमारे शरीर मे निवास करती है। हमारा शरीर इन 8 वसुओं का ही बना होता है ये इस प्रकार है –
1 अपस – इसका अर्थ होता है जल
2 ध्रव – ध्रुव तारा
3 सोम – इसका अर्थ है चन्द्रमा
4 धरा – इसका अर्थ है पृथ्वी
5.अनिल – इसका अर्थ है वायु
6 अनल – इसका अर्थ है अग्नि
7 प्रत्यूष – इसका अर्थ है अंतरिक्ष
8 प्रभाष – इसका अर्थ है अरुणोदय या सूर्योदय
आदित्य देवता
आदित्य का अर्थ यहाँ भगवान सूर्य से है। सूर्य भगवान प्रत्येक राशि मे एक माह के लिए विचरण करते है फिर दूसरी राशि मे प्रवेश करते है। इस प्रकार 12 माह मे 12 राषियो मे चक्कर लगाते है। इसी आधार पर हमारा हिन्दू कलैण्डर बनाया जाता है इसलिए इन्हे 12 प्रकार से व्यक्त किया जाता है इन्हे हमारी आयु हरने वाला भी कहा जाता है क्योकि जैसे – जैसे दिन बढ़ते है। हमारी आयु भी कम होती जाती है ये इस प्रकार है-
1 अंशुमान – यह प्राण वायु का प्रतिनिधित्व करते है।
2 अर्यमन – यह प्रातः और रात्रि के चक्र को दर्शाते है।
3 इंद्र – यह देवो के राजा है समस्त इन्द्रियों पर इन्ही का अधिकार है।
4 त्वष्टा – यह वनस्पति और औषधियों का प्रतिनिधत्व करते है।
5 धाता – यह प्रजापति के रूप है इन्हे सृष्टिकर्ता भी कहाँ जाता है।
6 पर्जन्य – यह मेघों का प्रतिनिधित्व करते है जो वर्षा के कारक है।
7 पूषा – यह अन्न का प्रतीक है तथा उसमे उपस्थित ऊर्जा, स्वाद और रस को दर्शाते है।
8 भग – यह शरीर में चेतना, ऊर्जा शक्ति, काम शक्ति तथा जीवंतता की अभिव्यक्ति को दर्शाते है।
9 मित्र – यह सृष्टि के विकास के कर्म को दर्शाते है।
10 वरुण – यह जल का प्रतिनिधित्व करते है तथा भाग्य को भी दर्शाते है।
11 विवस्वान – यह तेज और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करते है।
12 विष्णु – यह ब्रह्माण्डीय कानून और उसके संचालन का प्रतिनिधत्व करते है।
रूद्र देवता
यहाँ पर ये रूद्र शरीर के अव्यव है। जब तक ये शरीर मे विद्यमान है, हमारा शरीर गतिमान है। किन्तु जब ये अव्यव शरीर से प्लायन कर जाते है तब येही रूद्र अर्थात रोदन कराने वाले होते है। जब हमारा शरीर मृत हो जाता है तब हमारे सगेसंबंधी हमारी मृत देह पर रोदन करते है। इसीलिए इन्हे रूद्र अर्थात रुलाने वाला कहा गया है इनमे प्रथम पांच “प्राण” और दूसरे पांच “उपप्राण” है 11 वा रूद्र ही जीवात्मा है। ये सभी शरीर के अलग-अलग भागों में स्थित होते हैं तथा अलग-अलग अंगों व क्रियाओं को संचालित करते हैं। ये इस प्रकार है
1 प्राण:- प्राण गले से लेकर हृदय तक के अंगों एवं स्वर तंत्र, श्वसन तंत्र, भोजन नली, श्वास नली, फेफड़े-हृदय आदि को स्वस्थ रखता है। यह हृदय में स्थित होता है।
2 अपान:- अपान का कार्य मल-मूत्र त्याग, प्रसव आदि क्रियाओं को संचालित करता है। यह गुदा और मूत्रेन्द्रियों के बीच स्थित होता है।
3 व्यान:- यह शरीर में रक्त संचार करता है। इसका स्थान मष्तिष्क का मध्य भाग है।
4 उदान:- उदान गले के ऊपर के अंगों मुंह, दांत, नाक, आंख, कान, माथा, मस्तिष्क आदि का संचालन करता है। उदान विविध वस्तुएँ बाहर से शरीर के भीतर ग्रहण करता है। यह कंठ में स्थित होता है।
5 समान:- इसका स्थान नाभि में होता है, पाचक रसों का उत्पादन और उनका स्तर उपयुक्त बनाये रहना इसी का काम है।
6 नाग:- नाग का कार्य वायु सञ्चार, डकार, हिचकी, गुदा वायु का उत्तसर्जन करना। यह “प्राण” का “उपप्राण” है तथा यह भी हृदय में स्थित होता है।
7 कूर्म्म:- कूर्म से पलक मारने और बन्द होने की क्रिया होती है। यह “अपान” का “उपप्राण” है तथा यह भी गुदा और मूत्रेन्द्रियों के बीच स्थित होता है।
8 कृकल:- कृकल का कार्य भूख-प्यास को संचारित करना है। यह “समान” का “उपप्राण” है यह भी नाभि में स्थित होता है।
9 देवदत्त:- यह छींक आने और अंगड़ाई आने की क्रिया है। यह “उदान” का “उपप्राण” है इसका स्थान भी कंठ में होता है।
10 धनञ्जय:- धनञ्जय जीवित अवस्था में शरीर का पोषण करता है और मरने पर देह सड़ा-गला कर शीघ्र नष्ट करने का प्रबन्ध करता है। इसका प्रधान केन्द्र मस्तिष्क का मध्य भाग है। यह “व्यान” का “उपप्राण” है इसका स्थान भी मष्तिष्क का मध्य भाग होता है।
11 जीवात्मा:- इसके निकलते ही शरीर क्रिया करना बंद कर देता है।
अश्वनी कुमार
अश्वनीकुमार त्वष्टा की पुत्री और सूर्य देव की संतान है जिन्हे आयूर्वेद का आदि आचार्य माना जाता है इनके नाम इस प्रकार है
1 नासत्य
2 दस्त्र
इस प्रकार हिन्दू धर्म में वर्णित 33 कोटि देवताओं का योग इस प्रकार है –
33 कोटि देवता = 8 (वसु ) + 12 (आदित्य ) + 11 (रूद्र ) + 2 (अश्वनीकुमार ) = 33
अंत मे निष्कर्ष
अधूरा ज्ञान हमेशा घातक होता है, और यही अधूरा ज्ञान हमे सत्यता से दूर कर देता है। ऐसे कुछ अधूरे तथ्य जो वैदिक सभ्यता का भ्रामक रूप प्रस्तुत करते है, जबकि वास्तव मे वैदिक सभ्यता एक गणनात्मक विश्लेषण पर आधारित है और अपनी सत्यता को आज भी प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत करती है बस जरुरत है उसकी सत्यता को जानने की जिससे हम सही तथ्यों को प्राप्त कर सके। इसलिए “33 करोड़ या 33 कोटि देवी देवता कौन-कौन से है ?” इस पर आपका संदेह अवश्य मिट गया होगा।
इस प्रकार हिन्दू धर्म में वर्णित 33 कोटि देवताओं का योग इस प्रकार है –
33 कोटि देवता = 8 (वसु ) + 12 (आदित्य ) + 11 (रूद्र ) + 2 (अश्वनी कुमार ) = 33
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