सूर्य का ज्योतिष शास्त्र में महत्व और विभिन्न ग्रहों के साथ इसका प्रभाव Significance of Sun in astrology and its effect with various planets in Hindi 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सम्पूर्ण विश्व राशि-नक्षत्र और ग्रहों से प्रभावित होता है। इसमें सूर्य एक महान नक्षत्र और ग्रहों के राजा कहे गये हैं। अतः सूर्य का ज्योतिष शास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान है। यह शास्त्र आकाश में ग्रहों की दृश्य स्थिति का निर्देशक है-उसके अनुसार सूर्य अन्य ग्रहों की भाँति किसी-न-किसी राशि में दृष्टिगोचर होते हैं, अतएव ज्योतिष में सूर्य को एक ग्रह माना गया है। पृथिवी से देखने पर विभिन्न समयों में सूर्य राशि-चक्र के विभिन्न भागों में दृष्टिगोचर होते हैं। इसको सूर्यद्वारा विभिन्न राशियों का भोग कहते हैं। एक राशि पर सूर्य एक मास रहते हैं। इस समय को सौर-मास कहा जाता है। अक्षांश और देशान्तर भेद से भिन्न-भिन्न स्थानों का उदयकाल एवं दिनमान अलग-अलग होता है।

सूर्य जीवात्मा के अधिष्ठाता है, अतः जातक का आत्मबल सूर्य से देखा जाता है। उनके जगत-पिता होने के कारण जातक का पितृ सुख भी जन्म कुण्डली में सूर्य की स्थिति से देखते हैं। काल-पुरुष के शीर्ष-भाग पर सूर्य का आंधिपत्य माना गया है। सूर्य पित्त के अधिपति भी हैं। ये पुरुषग्रह, पूर्व दिशा के स्वामी, अग्नि-तत्त्व वाले क्षत्रिय वर्ण तथा ताम्र रंग वाले क्रूर ग्रह है। सिंहराशि के स्वामी हैं। मेष सूर्य की उच्च और तुला नीच राशि है। मेष के दस अंश तक परमोच्च एवं तुला के दस अंश तक परम नीच माने जाते हैं। सिंह राशि के बीस अंश तक सूर्य का मूल त्रिकोण तथा उसके बाद इक्कीस से तीस अंश तक स्वराशि होती है। चन्द्र, मंगल और गुरु सूर्य के मित्र, बुध सम तथा शुक्र-शनि शत्रु होते हैं।

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य का महत्व importance of sun in astrology in Hindi 

तो आपने देखा कि सृष्टि पर सूर्य ग्रह का असर व्यापक रूप में देखने को मिलता है। सूर्य के प्रकाश के बिना जीवन संभव ही नहीं है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार देखा जाए तो जातक की कुंडली में सूर्य के एक अच्छी स्थिति में होने पर जातक को यश, मान, कीर्ति और प्रतिष्ठा वगैरह प्राप्त होता है। मानन शरीर में पेट, आंख, हड्डियों, हृदय व चेहरे पर इसका आधिपत्य माना जाता है। कुंडली में खराब सूर्य के लक्षण तो सरदर्द, बुखार, हृदय से जुड़ी समस्या और आँखों की समस्या आदि हो सकती है।

ज्योतिष में सूर्य का पारिभाषिक संक्षिप्त विवरण Brief description of Sun in astrology in Hindi 

सूर्य ग्रहराज है। सदा मार्गी (अनुक्रम-सीधी गति से चलने वाले हैं, वे कभी वक्री नहीं होते। ये सिंह राशि के स्वामी हैं। इनका मूलत्रिकोण भी सिंह राशि ही है। सिंह (चक्र के पांचवे स्थान) में स्वगृही कहे जाते हैं। इनकी उच्च राशि मेष और नीच राशि तुला है। ये एक राशि पर १ मास रहते हैं। सूर्य क्षत्रिय वर्ण सत्वगुणी, लाल-कृष्णवर्ण के एवं स्थिर स्वभाव के गोल (चक्राकार) पुरुषग्रह है। ये राजविद्या के अधिष्ठाता, जगत के पिता, जीवात्मा के अधिकारी माने गये हैं। इनका रत्न माणिक्य और धातु ताँबा है।

सूर्य अन्य ग्रहों की भाँति अपने स्थान से सातवें में स्थित ग्रहों की पूर्णतः देखते हैं, किंतु तृतीय और दशम में स्थित ग्रह को एकपाद, पंचम एवं नवम में स्थित को द्विपाद, चतुर्थ-अष्टम में स्थित ग्रह को त्रिपाद-दृष्टि से देखते हैं। ये उत्तरायण में बलवत्तर होते हैं। इनके पुत्र शनि सब ग्रहों से निर्बल माने गये है; पर वे सूर्य के बल को नष्ट करने में समर्थ होते हैं। सूर्य के चन्द्र, मंगल, बृहस्पति मित्र, बुध सम और शुक्र-शनि शत्रु कहलाते हैं। सूर्य के मारक (प्रभाव को नष्ट करने वाले) शनि और राहु है। परंतु सूर्य अन्य सब ग्रहों के दोषों का शमन करते हैं। सूर्य की राशिगत और भावगत स्थिति से फल का विचार होता है। भाव लग्न से चलते हैं जो संक्षेप में तनु धन इत्यादि नाम से बारह है।

विभिन्न भावगत सूर्य का फलः  Fruit of the Sun in different moods in Hindi 

सूर्य यदि चारों केन्द्रों तथा दोनों त्रिकोणों में से किसी एक भाव के स्वामी होकर त्रिकोण, केन्द्र तथा लाभ स्थान में स्थित होते हैं तो वे लाभ देते हैं। द्वितीय, तृतीय, षष्ठ, अष्टम, तथा द्वादश भाव के स्वामी सूर्य हों तो अकारक होते हैं तथा अपनी दशा में हानि करते हैं। इसके अतिरिक्त सिंह और मेष राशि के सूर्य बलवान् तथा तुला राशि के सूर्य दुर्बल माने जाते हैं।

यदि लग्न प्रथम भाव में सूर्य बैठे हों तो जातक कठोर सिरदर्द का रोग, स्त्री और सहोदर से कलह करने वाला होता है, उसके शरीर में पित्त वातजन्य पीड़ा और परदेश में व्यापार से धन-हानि होती है। सूर्य यदि मेष राशि के हैं तो विद्या और धनदाता तथा सिंह राशि के हैं तो शरीर सुख के साथ रतौंधी करते हैं। तुला के सूर्य शारीरिक कष्ट के साथ जातक को राजपत्रित अधिकारी बनाते हैं।

द्वितीय भाव में सिंह के सूर्य लाभदायक तथा तुला के सूर्य भयंकर रूप से धन हानि करते हैं। अन्य के राशियों के सूर्य भी धन हानि एवं कुटुम्ब हानि करते हैं।

तृतीय भाव में सूर्य जातक को पराक्रमी बनाते हैं। कुम्भ राशि के सूर्य भाग्यशाली भी बनाते है।

चतुर्थ भाव में सूर्य सुख में बाधा डालते हैं। तुला के सूर्य बार-बार स्थानान्तर करवाते हैं। सिंह के सूर्य जमीन-जायदाद तथा मातृ-सुख देने वाले होते हैं।

पंचम भाव में सूर्य उदर रोग और संतान-कष्ट देते हैं, पर जातक में सूझ-बूझ अच्छी होती है।

पष्ठ भाव में सूर्य शत्रु पर विजय दिलवाते हैं।

सप्तम भाव में सूर्य हों तो स्त्री से संताप, शरीर में पीड़ा तथा दुष्ट लोगों द्वारा मन में चिन्ता होती है।

अष्टम भावस्थ सूर्य नेत्र विकासप्रद एवं धन तथा आत्मबल का अभाव करते हैं।

नवम भाव के सूर्य लाभप्रद होते हैं। सिंह तथा मेष राशि के सूर्य विशेष लाभ देने वाले होते हैं। तुला राशि के सूर्य स्त्री-कष्ट देते हैं।

दशम भाव के सूर्य सरकार से लाभ दिलवाते हैं। यदि मेष राशि के सूर्य दशम भाव में हो तो वह व्यक्ति राजा के समान होता है। तुला के सूर्य सरकार से हानि तथा पिता की हानि कराते हैं।

एकादश भाव में सूर्य हों तो राजाओं की कृपा से धन की प्राप्ति, पुत्र से संताप तथा वाहन का सुख देते हैं।

द्वादश भाव में सूर्य हों तो बांये नेत्र में कष्ट तथा हानि करते हैं। इस प्रकार सूर्यदेव अन्य ग्रहों के साथ भूमण्डलवासी व्यक्तियों को प्रभावित करते रहते हैं।

ज्योतिषशास्त्र में सूर्य सम्बन्धी योग Sun related yoga in astrology: 

सूर्य आत्मा, पिता, पराक्रम, तेज, क्रोध, हिंसक कार्य तथा शासन के कारक ग्रह हैं। एकादश भाव में विशेषकारक माने जाते हैं। किसी भी जन्मपत्री का फलादेश बतलाते समय सूर्य से सम्बद्ध अग्रसारित योगों पर सावधानीपूर्वक अवश्य विचार कर लेना चाहिए।

1. वेशियोग

चन्द्रमा के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रह सूर्य से द्वितीय भाव में स्थित हों तो वेशियोग बनता है। द्वितीय भाव में शुभ ग्रह हो तो शुभवेशि तथा पापग्रह हों तो पापवेशि कहलाता है। शुभवेशि योग में प्रादुर्भूत व्यक्ति सुन्दर, अच्छा वक्ता, नेतृत्वकार्य में चतुर तथा जनता का श्रद्धाभाजन होता है। वह आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होता है, उसके शत्रु पराजित होते हैं तथा वह जातक प्रसिद्धि प्राप्त करता है। अशुभ वेशियोग में जन्म लेने वाला व्यक्ति दुष्टों की संगति करता है, उसके मस्तिष्क में कुचक्र घूमते रहते हैं तथा आजीविका के लिये वह परेशान रहता एवं कुख्यात होता है।

2. वासीयोग

चन्द्रमा के अतिरिक्त अन्य ग्रह सूर्य से बारहवें भाव में स्थित हो तो वासीयोग बनता है। इस योगवाला व्यक्ति अपने कार्यों में दक्ष होता है। यदि शुभग्रह हों तो जातक प्रसन्नचित्त.. निपुण, विद्वान, गुणी और चतुर होता है। पारिवारिक दृष्टि से सुखी तथा शत्रुओं का संहार करने वाला होता है। यदि पापग्रह द्वादश भाव में हो तो जातक की निवासस्थान से दूर रहने की प्रवृत्ति होती है। वह भूलने वाला, क्रूर भावना रखने वाला तथा दुःखी होता है।

3. उभयचरीयोग

यदि जन्मकुण्डली में सूर्य के दोनों ओर (द्वितीय तथा द्वादश भाव में) चन्द्रमा के अतिरिक्त अन्य ग्रह स्थित हो तो उभयचरी-योग बनता है। शुभग्रह हो तो शक्ति न्याय करने वाला तथा प्रत्येक स्थिति को सहन करने में समर्थ होता है। यदि पापग्रह हो तो जातक कपटी, झूठा न्याय करने वाला तथा पराधीन होता है।

4. भास्करयोग 

यदि सूर्य से द्वितीय भाव में बुध हो और से एकादश भाव चन्द्रमा हो तथा चन्द्रमा से पाँचवें या नवें भाव में गुरु हो तो भास्करयोग बनता है। इस योग का जातक अत्यन्त धनी, अनेक शास्त्रों का ज्ञाता, बलशाली, कलाप्रेमी तथा सबका प्रिय होता है।

5. बुधादित्ययोग 

कुण्डली के किसी भी भाव में सूर्य और बुध एक साथ स्थित तो बुधादित्ययोग बनता है। इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति बुद्धिमान्, चतुर, प्रसिद्ध तथा ऐश्वर्य भोगने वाला होता है।

6. राजराजेश्वर योग

जन्मकुण्डली में सूर्य मीन राशि में तथा चन्द्रमा कर्क लग्न में स्वगृही हों तो राजराजेश्वर योग बनता है। यह एक प्रबल राजयोग है। इस योगवाला व्यक्ति सुखी, धनी तथा ऐश्वर्यवान होता है।

7. राजभंगयोग

सूर्य तुला राशि में दस अंश के अर्न्तगत हो तो राजभंग योग बनता है। इस योगवाला व्यक्ति दुःखी, उद्विग्न, मानसिक चिन्ताओं से ग्रस्त तथा दरिद्री होता है। ऐसा व्यक्ति राजसुख नहीं भोगता।

8. अन्धयोग

सूर्य और चन्द्रमा- ये दोनों ग्रह बारहवें भाव में हो तो अन्धयोग बनता है। ऐसे योग में उत्पन्न व्यक्ति अन्धा भी हो सकता है।

9. उन्मादयोग

यदि लग्न में सूर्य तथा सप्तम भाव में मंगल हो तो उन्मादयोग बनता है। ऐसा व्यक्ति गप्पी तथा व्यर्थ का वार्तालाप करने वाला-बातूनी होता है।

10. यदि पंचम भाव में कुम्भ राशि के सूर्य हों तो वे जातक के बड़े भाई का नाश करते हैं।

11. तृतीय भाव में स्वगृही सूर्य के साथ यदि शुक्र स्थित हो और उस पर शनि की दृष्टि पड़ती हो तो छोटे भाई तथा पिता को हानि होती है।

12. यदि सूर्य तथा चन्द्रमा नवम् भाव में स्थित हो तो पिता की मृत्यु जल में होने की सम्भावना रहती है।

13. जन्म वृष लग्न का हो तथा सूर्य निर्बल होकर राहु एवं शनि से दृष्ट अथवा युक्त हो तो व्यक्ति का कई बार स्थानान्तर होता है तथा राजकीय सेवा में कई उत्थान-पतन देखने पड़ते हैं।

14. यदि पंचम भाव में तुला राशि के सूर्य हो तो जातक हड्डियों के रोग से पीड़ित रहता है तथा उसे जीवन में कई बार चोट लगती है।

15. यदि मिथुन लग्न में अकेले केतु हो तथा सूर्य चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में हो तो व्यक्ति पराक्रमी और सूर्य जैसे तेजस्वी होता है।

16. द्वितीय भाव में कर्क राशि के सूर्य और चन्द्रमा मंगल से दृष्ट हो तो दृष्टिनाशक योग बनता है।

17. मिथुन लग्न का जन्म हो और सूर्य दशम या एकादश भाव में हो तो व्यक्ति उच्च महत्वाकांक्षी तथा श्रेष्ठतम लोगों से सम्पर्क रखने वाला होता है।

18. कर्क लग्न का जन्म हो और सूर्य दशम भाव में स्वगृही होकर मंगल के साथ स्थित हो तो जातक का राज्यपक्ष बड़ा प्रबल होता है। वह नृपतुल्य होता है।

19. दशम भाव में मेष राशि के उच्च सूर्य जातक को राजा के समान प्रभावशाली बनाते हैं।

20. यदि लग्न में स्वगृही सूर्य हो तो व्यक्ति स्वाभिमानी, प्रशासन में कुशल तथा राज्य में उच्च पद का अधिकारी होता है।

21. यदि तुला राशि के सूर्य लग्न में हो तो व्यक्ति राजा से सम्मान पाने वाला अधिकारी होता है।

22. वृश्चिक लग्न का जन्म हो, सूर्य छठे या दशम भाव में हो तो जातक का पिता विख्यात कीर्तिमान् होता है।

23. धनुलग्न का जन्म हो, सूर्य दशम भाव में बृहस्पति के साथ हों तो व्यक्ति श्रेष्ठ प्रशासक होता है।

24. यदि सप्तम भाव में स्वगृही सूर्य हो तो उस पुरुष की स्त्री साहसी, लड़ाकू तथा दृढ़ विचारों वाली होती है।

25. यदि नीच (तुला) राशि के सूर्य नवम भाव में हो तो उस पुरुष की पत्नी अल्पायु होती है।

26. यदि तृतीय भाव में मेष राशि के सूर्य हों तो व्यक्ति निश्चय ही उच्च विचारों वाला तथा किसी बड़े पद का अधिकारी होता है।

27. यदि द्वितीय भाव में उच्च राशि के सूर्य हो तो जातक के मामा यशस्वी, धनी तथा कुल में श्रेष्ठ होते हैं।

28. यदि मेष लग्न का जन्म हो तथा षष्ठेश से युक्त सूर्य छठे या आठवें भाव में हो तो जातक राज योग वाला होता है।

29. यदि मेष जन्म लग्न हो एवं सूर्य तथा शुक्र लग्न या सप्तम भाव में हो तो जातक की स्त्री वन्ध्या होती है।

30. लग्न से दशम भाव में रहने वाले सूर्य पिता से धन दिलवाते हैं।

31. यदि मेष लग्न में सूर्य और चन्द्रमा एक साथ बैठे हो तो राजयोग बनता है।

32. यदि मेष लग्न में सूर्य हों तथा एकादश भाव में शनि बैठे हो तो व्यक्ति के पैरों में चोट लगती है।

33. यदि मेष लग्न में शनि तथा छठे भाव में सूर्य हो तो जातक आजन्म रोगी बना रहता है।

34. दशम भाव के मेष लग्न में स्थित सूर्य जातक को भाषण की कला में निपुण बनाते हैं ।

35. यदि जन्म-कुण्डली में सूर्य वृश्चिक में तथा शुक्र सिंह के हो तो उस व्यक्ति को ससुराल से धन प्राप्त होता है।

36. यदि चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि हो तथा उसमें सूर्य और शनि एक साथ बैठे हों तो जातक को वाहन-सुख प्राप्त होता है।

37. यदि सूर्य लग्न में स्वगृही के हों तथा सप्तम भाव में मंगल हो तो जातक को उन्माद रोग होता है।

38. वृश्चिक लग्नवाली कुण्डली के तृतीय भाव में यदि सूर्य हो, लग्न में स्थित शनि की दृष्टि पड़ती हो तो जातक को हृदय रोग होता है।

39. यदि लाभ स्थान में सूर्य नीच राशि के हों और उनके दोनों ओर ग्रह न हो तो दारिद्रय योग बनता है।

40. यदि पंचम भाव में उच्च राशिस्थ सूर्य के साथ बुध बैठे हो तो जातक धनवान होता है।

41. यदि धनु लग्न हो और उसमें सूर्य एवं चन्द्रमा साथ बैठे हो तो दारिद्रययोग बनता है।

42. कुम्भ राशि के सूर्य लग्न में हो तो व्यक्ति को दाद का रोग होता है।

43. यदि दशम भाव में कुम्भ लग्न के सूर्य हों तथा चतुर्थ भाव में मंगल हो तो जातक की मृत्यु सवारी से गिरने के कारण होती है।

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