किसी भी बात के चार पक्ष होते हैं और इन चारों पक्षों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए। प्रथम पक्ष है- विचार, द्वितीय पक्ष है मनन, मंथन, तीसरा पक्ष है- योजना और अंत में चौथा पक्ष है क्रिया। इसके उपरान्त फल क्या होगा? उसकी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि जब कोई क्रिया विचार, मनन, मंथन और योजना से युक्त होती है तो उसका फल हमेशा मधुर ही रहता है। लेकिन प्रायः लोग किसी कार्य को उत्साहपूर्वक आरम्भ करते हैं किन्तु फल की शीघ्रता के लिए इतने उतावले होते हैं कि थोड़े समय तक प्रतीक्षा करना या धैर्य धारण करना उन्हें सहन नहीं होता,
फलस्वरूप निराश होकर वे अनेकों अधूरे कार्य छोड़ते जाते हैं जिससे सफलता किसी में भी प्राप्त नहीं होती। अधीरता और उतावलेपन का एक ही दोष उनके सारे गुणों पर पानी फेर देता है। ध्यान रखें प्रत्येक कार्य अपने निर्धारित समय पर ही पूर्ण हो पाता है। बीज आज बोया जाए तो कल उसमें पेड़ निकल आए और परसों वह फल देने लगे ऐसा संभव नहीं है। उसके लिए निर्धारित समय की प्रतीक्षा करनी ही होती है।
संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् मूल पाठ
प्रणम्यं शिरसां देवं गौरीपुत्र विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्मायु: कामार्थसिद्धये।।
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदतं द्वितीयकंम्।
तृतीयं कृष्णपिङ्गाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।।
लम्बोदरं पञ्चमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजं च धूम्रवर्णं तथाष्टमम्।।
नवमं भालचद्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननमं।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यं पठेन्नर:।
न च विघ्रभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभो।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनं।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम।।
जपेद्गणपतिस्तोत्रम षड्भिर्मासै: फलं लभेत।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्य लिखित्वा य: समर्पयेत।
तस्य विद्याभवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।
संकटनाशन गणेश स्तोत्रम् पाठ का अर्थ
इस स्त्रोत में नारद जी, श्री गणेश जी के अर्थ स्वरुप का प्रतिपादन करते हैं. नारद जी कहते हैं कि सभी भक्त पार्वती नन्दन श्री गणेशजी को सिर झुकाकर प्रणाम करें और फिर अपनी आयु , कामना और अर्थ की सिद्धि के लिये इनका नित्यप्रति स्मरण करना चाहिए
श्री गणपति जी के सर्वप्रथम वक्रतुण्ड, एकदन्त, कृष्ण पिंगाक्ष, गजवक्र, लम्बोदरं, छठा विकट, विघ्नराजेन्द्र, धूम्रवर्ण, भालचन्द्र, विनायक, गणपति तथा बारहवें स्वरुप नाम गजानन का स्मरण करना चाहिए. क्योंकि इन बारह नामों का जो मनुष्य प्रातः, मध्यान्ह और सांयकाल में पाठ करता है उसे किसी प्रकार के विध्न का भय नहीं रहता, श्री गणपति जी के इस प्रकार का स्मरण सब सिद्धियाँ प्रदान करने वाला होता है.
इससे विद्या चाहने वाले को विद्या, धना की कामना रखने वाले को धन, पुत्र की इच्छा रखने वाले को पुत्र तथा मौक्ष की इच्छा रखने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस गणपति स्तोत्र का जप छहः मास में इच्छित फल प्रदान करने वाला होता है तथा एक वर्ष में पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सकती है इस प्रकार जो व्यक्ति इस स्त्रोत को लिखकर आठ ब्राह्मणों को समर्पण करता है, गणेश जी की कृपा से उसे सब प्रकार की विद्या प्राप्त होती है.
!! जय श्री गणेश!!
मात पिता के चरण में, जग के चारों धाम।
श्रीगणेश हैं कह गये, भजो इन्हीं का नाम।।
!! जय श्री गणेश !!
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