श्रीरुद्राष्टकं तुलसीदासकृतम् महिमा Sri Rudrashtakam Tulsidaskritam Mahima 

मन में किसी भी प्रकार का क्लेश हो, दुविधा हो, मन उचटा सा रहता हो, मन उद्वेलित हो, अनायास ही क्रोध आना, चित्त का भटकना, ऐसी स्थिति में नित्य ही रूद्राष्टकम का पाठ करें।

किसी शुभ मुहूर्त, या सोमवार, रविवार, मासिक शिवरात्री, महाशिवरात्रि, सावन मास के सोमवार आदि से आरम्भ करें।

शिवलिंग पर प्रात: चांदी या पीतल या शुद्ध स्टील के लोटे में दूध+गंगाजल मिलाकर पतली सी धार से “नमः शिवाय” जपते हुए अभिषेक करें , फिर पंचोपचार विधि से पूजन करें और नियमित ११ पाठ से अनेक कष्टों से मुक्ति प्राप्त करें।

भगवान शंकर भोलेनाथ हैं अतिशीघ्र ही अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर कृपा करते हैं।

स्मरण रहे, यह रुद्राष्टक तुलसीदासकृत “श्रीरामचरितमानस” से उद्धृत है जिसकी सभी चौपाई, दोहे, श्लोक, छ्न्द, सोरठे आदि सिद्ध मन्त्र हैं।

अस्तु , 

हर हर महादेव

नमामीशमीशाननिर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम् ॥ १॥

निराकारमोंकारमूलं तुरीयं गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।

करालं महाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारपारं नतोऽहम् ॥ २॥

तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं मनोभूतकोटिप्रभा श्रीशरीरम् ।

स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा ॥ ३॥

चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि ॥ ४॥

प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशमखण्डमजं भानुकोटिप्रकाशम् ।

त्रयः शूलनिर्मूलनं शूलपाणिं भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम् ॥ ५॥

कलातीतकल्याणकल्पान्तकारी सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।

चिदानन्दसन्दोहमोहापहारी प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥ ६॥

न यावद् उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम् ॥ ७॥

न जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।

जराजन्मदुःखौघतातप्यमानं प्रभो पाहि आपन्नमामीश शम्भो ॥ ८॥

रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये । ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥

॥ इति श्रीरामचरितमानसे उत्तरकाण्डे श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं

श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥ 

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