पक्ष अथवा पखवाड़ा सामान्य व्यवहार में 15 दिनों के अंतराल को कहा जाता है। सुविधानुसार आधा महीना या दो सप्ताह के समय को भी एसा कह दिया जाता है। हालाँकि ज्योतिष शास्त्र, भारतीय पंचांग या काल गणना की हिन्दू पद्धति के अनुसार तकनीकी रूप से पक्ष की परिभाषा है – चंद्रमा द्वारा कलाचक्र में एक से दूसरी स्थिति (अमावस्या से पूर्णिमा अथवा पूर्णिमा से अमावस्या) तक जाने के लिया जाने वाला समय। इसी के अनुसार पक्ष दो प्रकार के परिभाषित किए जाते हैं – शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष।
कृष्ण अथवा शुक्लपक्ष में प्राय: 15 दिन होते हैं’। परंतु किसी पक्ष में कोई तिथि-क्षय हो जाने की स्थिति में 14 दिन अथवा तिथि-वृद्धि होने पर 16 दिन भी हो जाते हैं। पक्ष में तिथि की हानि या वृद्धि न होने की स्थिति में 15 दिन ही होते हैं
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष Krishna Paksha and Shukla Paksha
वैश्वीकरण की वजह से पूरी दुनिया में दिनों, तारीखों को लेकर कोई भ्रम की स्थिति उत्पन्न न हो जाये इसके लिए सभी देशों ने एक कैलेंडर के हिसाब से अपना कार्य करना शुरू कर दिया है अब सभी देश ग्रेगोरियन कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं जिसमें एक वर्ष में जनवरी से दिसंबर तक 12 महीने होते हैं यह एक सौर कैलेंडर है जिसका मतलब है कि हमारी पृथ्वी जो समय सूरज का एक चक्कर लगाने में लेती है उसे ही 12 महीनों में बाँट दिया जाता है
भारत में प्राचीन काल से जो ‘विक्रम संवत’ (कैलेंडर) या ‘पंचांग’ काल गणना के लिए उपयोग किया जाता है वह चन्द्रसौर कैलेंडर है जिसका मतलब एक साल के समय की गणना के लिए यह चन्द्रमा और सूर्य दोनों की महत्वता रखता है इन्हीं पंचांग से हम तिथि, त्यौहार के साथ चंद्रमा,सूरज और ग्रहों की दिशा, दशा ज्ञात करते हैं
चन्द्रसौर कैलेंडर का एक महीना 29.53059 दिनों का होता है अर्थात जो समय चन्द्रमा पृथ्वी का 1 चक्कर करने में लेती है, उसे हम चंद्र सौर कैलेंडर का एक माह कहते हैं अगर आज पूर्णिमा है तो ठीक 29.53 तिथियों बाद फिर पूर्णिमा का समय होगा| एक अमावस्या से अगली अमावस्या का समय चंद्र कैलेंडर के हिसाब से एक मास कहलाता है पूर्णिमा के अगली तिथि से चन्द्रमा की कलाएं कम होने लगती हैं और 15 तिथियों बाद अमावस्या आ जाती है इस घटती हुई चन्द्रमा की कलाओं को हम कृष्ण पक्ष कहते हैं, ठीक उसी तरह बढ़ती हुई कलाओं को शुक्ल पक्ष कहा जाता है इसलिए एक माह में दो पक्ष होते हैं
कृष्ण पक्ष
पूर्णिमा से अमावस्या के बीच के काल खंड को हम कृष्ण पक्ष कहते हैं चंद्र कैलेंडर के हर एक मॉस में एक तिथि आती जब चन्द्रमा की आकृति सूरज के प्रकाश से पृथ्वी से पूरी तरह चमकती हुई दिखती है, इस तिथी को हम पूर्णिमा (Full Moon) कहते हैं उसी तिथि की अगली तिथि से कृष्ण पक्ष की शुरुआत होती है जो 15 तिथियों बाद आने वाली अमावस्या तक रहता है
कृष्ण पक्ष में नहीं होते शुभ कार्य
पूर्णिमा के बाद चन्द्रमा की घटती कलाओं के कारण उसका प्रकाश कमजोर होने लगता है इसमें हर तिथि के आगे होने से रात में अन्धकार बढ़ता रहता है इसलिए मान्यता है कि जब भी कृष्ण पक्ष होता है, उस समय शुभ कार्य करना उचित नहीं होता
‘कृष्ण’ शब्द का तात्पर्य संस्कृत में काले से है इसलिए “कृष्ण पक्ष” चंद्र माह के पक्ष को कहते हैं जब काला अन्धकार हर बढ़ती तिथि के साथ बढ़ता है कृष्ण पक्ष को ‘वैद्य पक्ष’ भी कहते हैं
शुक्ल पक्ष
हर माह में एक बार आने वाली अमावस्या (New Moon) के दिन पृथ्वी से चन्द्रमा दिखाई नहीं देता क्यूंकि इस दिन जो चन्द्रमा का भाग पृथ्वी की तरफ होता है उसमें सूरज का प्रकाश नहीं पड़ता फिर अमावस्या की अगली तिथि से हर बढ़ती तिथि के साथ चन्द्रमा की कलाएं भी बढ़ने लगती हैं इन बढ़ती हुई कलाओं को चन्द्रसौर कैलेंडर में शुक्ल पक्ष कहा जाता है यह 15 तिथि तक बढ़ती हुई पूर्णिमा तक रहता है, जिसके बाद फिर माह का दूसरा पक्ष कृष्ण पक्ष शुरू हो जाता है
शुक्ल पक्ष के समय में चद्र बलशाली होकर अपने पुरे आकार, पूर्णिमा की तरफ बढ़ता है, यही कारण है कि कोई भी शुभ काम करने के लिए इस पक्ष को उपयुक्त और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है ‘शुक्ल’ शब्द से संस्कृत में तात्पर्य सफ़ेद या चमकदार से है इसे “गौरा पक्ष” भी कहा जाता है
कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष से जुडी कथाएं
पौराणिक कथाओं में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के संबंध में कथाएं प्रचलित हैं
कृष्ण पक्ष की शुरआत
शास्त्रों में वर्णित कथा के अनुसार भगबान ब्रह्मा के पुत्र ऋषि दक्ष की 27 पुत्रियाँ थीं अपनी सभी बेटियों का विवाह प्रजापति दक्ष ने चन्द्रमा से किया दक्ष की 27 पुत्रियां असल में 27 नक्षत्र थी चन्द्रमा सभी में सबसे अधिक प्रेम रोहिणी से करते थे ऐसे में बाकी सभी स्त्रियों ने चन्द्रमा की शिकायत अपने पिता दक्ष से करी कि चन्द्रमा हमसे रुखा हुआ व्यवहार करते हैं
इसके बाद प्रजापति दक्ष ने चन्द्रमा को डांट लगाते हुए कहा कि वे सभी से समान व्यवहार करें पर इसके बाद भी चन्द्रमा का रोहिणी के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ और वह बाकी पत्नियों को नजरअंदाज करते रहे इस पर प्रजापति दक्ष क्रोधित हो गए और चन्द्रमा को क्षय रोग का शाप दे दिया इसी शाप से चलते चन्द्रमा का तेज धीरे-धीरे कम होता गया तभी से कृष्ण पक्ष की शुरआत मानी गयी है
शुक्ल पक्ष की शुरुआत
राजा दक्ष के शाप से चन्द्रमा का तेज़ काम होता गया और वे अंत की तरफ बढ़ने लगे तब चन्द्रमा ने भगवान् शिव की आराधना की और शिवजी ने चन्द्रमा की आराधना से प्रसन्न होकर उन्हें अपनी जटाओं में धारण कर लिया शिवजी के प्रताप से चन्द्रमा का तेज़ दोबारा लौटने लगा और इस प्रकार उन्हें जीवनदान मिला क्यूंकि दक्ष के शाप को रोका नहीं जा सकता इसलिए चन्द्रमा को 15-15 तिथियों की अवधि के लिए कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में जाना पड़ता है
इस तरह शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की शुरुआत हुई
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