परमा एकादशी पूजा विधि महत्व व्रत कथा आरती और नियम 

अधिक मास या पुरुषोत्तम मास में कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी परमा एकादशी के नाम से जानी जाती है। यह एकादशी परम दुर्लभ सिद्धियों की दाता होने के कारण ही परमा के नाम से प्रसिद्ध है, धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को परमा एकादशी व्रत का महत्व और कथा का वर्णन सुनाया था। इस एकादशी व्रत की विधि कठिन है, इस व्रत में पांच दिनों तक पंचरात्रि व्रत किया जाता है। जिसमें एकादशी से अमावस्या तक जल का त्याग किया जाता है। केवल भगवत चरणामृत लिया जाता है। इस पंचरात्र का भारी पुण्य और फल होता है। यह एकादशी धन की दाता और सुख-ऐश्वर्य की जननी परम पावन है एवं दुख-दरिद्रता का अंत करने वाली है।

परमा एकादशी व्रत का महत्व (Importance of Parma Ekadashi fast in Hindi) 

अधिकमास में पड़ने वाली परमा एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि यह तीन साल में एक बार आती है। इस तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना और उपासना करने से सुख व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है और दुख व दरिद्रता का नाश होता है। साथ ही सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इस एकादशी को दुर्लभ सिद्धियों की दाता भी बताया गया है इसलिए इसे परमा एकादशी कहा जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि इस तिथि का व्रत और कथा सुनने मात्र से 100 यज्ञों के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है और शंख, चक्र व गदाधारी भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन में सुख संपन्नता बनी रहती है।

परमा एकादशी पूजा विधि (Parma Ekadashi Puja Method in Hindi) 

अधिक मास या पुरुषोत्तम मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पुरुषोत्तमा अथवा परमा एकादशी भी कहा जाता है। एकादशी व्रत में जिन नियमों का पालन किया जाता है परमा एकादशी में उन नियमों की पालना तो की ही जाती है साथ ही परमा एकादशी का उपवास पांच दिनों तक रखने का विधान भी है। इस व्रत का पालन कठिन बताया जाता है। एकादशी के दिन स्नानादि के पश्चात स्वच्छ होकर भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष बैठकर हाथ में जल व फूल ले संकल्प लिया जाता है। भगवान विष्णू का पूजन किया जाता है। पांच दिनों तक व्रत का पालन किया जाता है। पांचवे दिन ब्राह्मण भोज करवाने व उन्हें दान-दक्षिणा देकर विदा करने के पश्चात व्रत का पारण करने चाहिए। हालांकि सामर्थ्य के अनुसार आप इस उपवास का पारण द्वादशी के दिन भी कर सकते हैं।

इस दिन नरोत्तम भगवान विष्णु की पूजा से दुर्लभ सिद्धियों की प्राप्ति होती है। जिस प्रकार संसार में चार पैरवालों में गौ, देवताओं में इन्द्रराज श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार मासों में पुरुषोत्तम मास उत्तम है। इस मास में पंचरात्रि अत्यन्त पुण्य देनेवाली है। अधिक (पुरुषोत्तम) मास में दो एकादशी होती है जो परमा एकादशी और पद्मिनी एकादशी के नाम से जानी जाती है।

इस महीने में पुरुषोत्तम एकादशी श्रेष्ठ है। उसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्यमय लोकों की प्राप्ति होती है। इस दिन व्रत और दान को उत्तम बताया गया है।

परमा एकादशी व्रत के नियम (Rules of Parma Ekadashi fast in Hindi) 

1. इस व्रत के दिन भगवान विष्णु का ध्यान करके उनके निमित्त व्रत रखना चाहिए।

2. एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को एकाद्शी के दिन प्रात: उठना चाहिये।

3. प्रात:काल की सभी क्रियाओं से मुक्त होने के बाद उसे स्नान कार्य में मिट्टी, तिल, कुश और आंवले के लेप का प्रयोग करना चाहिए।

4. इस दिन सम्भव हो तो स्नान किसी पवित्र नदी, तीर्थ या सरोवर अथवा तालाब पर करना चाहिए।

5. स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए व्रत करने वाले को घी का दीपक जलाकर फल, फूल, तिल, चंदन एवं धूप जलाकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।

6. इस व्रत में विष्णु सहस्रनाम एवं विष्णु स्तोत्र के पाठ का बड़ा महत्व है। व्रत करने वाले को जब भी समय मिले इनका पाठ करना चाहिए।

7. सात्विक भोजन करना चाहिए। सात्विक भोजन में मांस, मसूर, चना, शहद, शाक और मांगा हुआ भोजन नहीं करना चाहिए।

परमा एकादशी व्रत महात्मय एवं कथा (Parama Ekadashi Vrat Mahatmya and Story in Hindi) 

अर्जुन बोले: हे जनार्दन आप अधिक (लौंद/मल/पुरुषोत्तम) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम तथा उसके व्रत की विधि बतलाइये। इसमें किस देवता की पूजा की जाती है तथा इसके व्रत से क्या फल मिलता है ?

श्रीकृष्ण बोले: हे पार्थ इस एकादशी कानाम परमा है ।इसके व्रत से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं तथा मनुष्य को इस लोक में सुख तथा परलोक में मुक्ति मिलती है।इस व्रत में भगवान विष्णु की धूप, दीप, नैवेध, पुष्पआदि से पूजा करनी चाहिए। महर्षियों के साथ इस एकादशी की जो मनोहर

कथा काम्पिल्य नगरी में हुई थी, कहता हूँ । ध्यानपूर्वक सुनो 

काम्पिल्य नगरी में सुमेधा नाम का अत्यंत धर्मात्माब्राह्मण रहता था। उसकी स्त्री अत्यन्त पवित्र तथापतिव्रता थी।पूर्व के किसी पाप के कारण यह दम्पति अत्यन्त दरिद्र थी। उस ब्राह्मण की पत्नी अपने पति की सेवा करती रहती थी तथा अतिथि को अन्न देकर स्वयं भूखी रह जाती थी ।

एक दिन सुमेधा अपनी पत्नी से बोला: ‘शहे प्रिये गृहस्थी धन के बिना नहीं चलती इसलिए मैं परदेशजाकर कुछ उद्योग करुँ

उसकी पत्नी बोली: हे प्राणनाथ पति अच्छा और बुरा जो कुछ भी कहे, पत्नी को वही करना चाहिए। मनुष्य को पूर्वजन्म के कर्मों का फल मिलता है। विधाता ने भाग्य में जो कुछ लिखा

है, वह टाले से भी नहीं टलता हे प्राणनाथ आपको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं, जो भाग्य में होगा, वह यहीं मिल जायेगा ।

पत्नी की सलाह मानकर ब्राह्मण परदेश नहीं गया।एक समय कौण्डिन्य मुनि उस जगह आये। उन्हें देखकर सुमेधा और उसकी पत्नी ने उन्हें प्रणाम किया और बोले: आज हम धन्य हुए। आपके दर्शन से हमारा जीवन सफल हुआ। मुनि को उन्होंने आसन तथा भोजन दिया।

भोजन के पश्चात् पतिव्रता बोली: हे मुनिवर मेरे भाग्य से आप आ गये हैं।मुझे पूर्ण विश्वास है कि अब मेरी दरिद्रता शीघ्र ही नष्ट होने वाली है।आप हमारी दरिद्रता नष्ट करने के लिए उपाय बतायें ।’

इस पर कौण्डिन्य मुनि बोले : अधिक मास (मलमास) की कृष्णपक्ष की परमा एकादशी के व्रत से समस्त पाप, दु:ख और दरिद्रता आदि नष्ट हो जाते हैं। जो मनुष्य इस व्रत को करता है, वह धनवान हो जाता है।इस व्रत में कीर्तन भजन आदि सहित रात्रिजागरण करना चाहिए ।महादेवजी ने कुबेर को इसी व्रत के करने से धनाध्यक्ष बना दिया है ।

फिर मुनि कौण्डिन्य ने उन्हें परमा एकादशी के व्रत की विधि कह सुनायी । मुनि बोले: हे ब्राह्मणी इस दिनप्रात: काल नित्यकर्म से निवृत्त होकर विधिपूर्वक पंचरात्रि व्रत आरम्भ करना चाहिए । जो मनुष्य पाँच दिन तक निर्जल व्रत करते हैं, वे अपने माता पिता और स्त्री सहित स्वर्गलोक को जाते हैं । हे ब्राह्मणी तुमअपने पति के साथ इसी व्रत को करो । इससे तुम्हेंअवश्य ही सिद्धि और अन्त में स्वर्ग की प्राप्ति होगी।

कौण्डिन्य मुनि के कहे अनुसार उन्होंने परमा एकादशी का पाँच दिन तक व्रत किया । व्रत समाप्त होने पर ब्राह्मण की पत्नी ने एक राजकुमार को अपने यहाँ आते हुए देखा। राजकुमार ने ब्रह्माजी की प्रेरणा से उन्हें आजीविका के लिए एक गाँव और एक उत्तम घर जोकि सब वस्तुओं से परिपूर्ण था, रहने के लिए दिया।दोनों इस व्रत के प्रभाव से इस लोक में अनन्त सुख भोगकर अन्त में स्वर्गलोक को गये।

हे पार्थ जो मनुष्य परमा एकादशी का व्रत करता है, उसे समस्त तीर्थों व यज्ञों आदि का फल मिलता है।जिस प्रकार संसार में चार पैरवालों में गौ, देवताओं में इन्द्रराज श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार मासों में अधिक मास उत्तम है। इस मास में पंचरात्रि अत्यन्त पुण्य देने वाली है। इस महीने में पद्मिनी एकादशी भी श्रेष्ठ है। उसके व्रत से भी समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और पुण्यमय लोकों की प्राप्ति होती है ।

भगवान जगदीश जी की आरती 

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे

भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट

क्षण में दूर करे, ओम जय…

जो ध्यावे फल पावे, दुख बिनसे मन का

स्वामी दुख बिनसे मन का

सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का, ओम जय…

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी

स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी

तुम बिन और न दूजा, आश करूँ किसकी, ओम जय…

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतरयामी

स्वामी तुम अंतरयामी

परम ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी, ओम जय…

तुम करुणा के सागर, तुम पालन करता

स्वामी तुम पालन करता

दीन दयालु कृपालु, कृपा करो भरता, ओम जय…

तुम हो एक अगोचर सबके प्राण पति

स्वामी सबके प्राण पति

किस विधि मिलूँ दयामी, तुमको मैं कुमति, ओम जय…

दीन बंधु दुख हरता, तुम रक्षक मेरे

स्वामी तुम रक्षक मेरे

करुणा हस्त बढ़ाओ, शरण पड़ूं मैं तेरे, ओम जय…

विषय विकार मिटावो पाप हरो देवा

स्वामी पाप हरो देवा

श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ संतन की सेवा, ओम जय…

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