Sankashti Chaturthi भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी है। इस चतुर्थी को बहुला चतुर्थी या बहुला चौथ के नाम से जाना जाता है। इस दिन गणेशजी की पूजा के साथ-साथ श्री कृष्ण और गायों का पूजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर भगवान श्री कृष्ण और गणेश जी की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। साथ ही साधक को बल, बुद्धि, विद्या और धन-धान्य का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन संकष्टी चतुर्थी के साथ-साथ बहुला चतुर्थी का व्रत भी रखा जाता है। इसीलिए इसे कृष्ण चतुर्थी या बहुला चौथ के नाम से जाना जाता है।
मान्यता है की इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आने वाला कष्ट शीघ्र ही समाप्त हो जाता है। तथा यह तिथि भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय है। ज्योतिष में भी श्रीगणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है। इसे संतान की रक्षा का व्रत भी कहा जाता है। भाद्रपद चतुर्थी तिथि को पुत्रवती स्त्रिया अपने संतान की रक्षा के लिए उपवास रखती है। इस दिन चन्द्रमा के उदय होने तक बहुला चतुर्थी का व्रत करने का बहुत ही महत्त्व है। वस्तुतः इस व्रत में गौ तथा सिंह की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा करने का विधान प्रचलित है। इस व्रत को गौ पूजा व्रत भी कहा जाता है।
जिस प्रकार गौ माता अपना दूध पिलाकर अपनी संतान के साथ-साथ, सम्पूर्ण मानव जाति की रक्षा करती है, उसी प्रकार स्त्रियां अपनी संतान को दूध पिलाकर रक्षा करती है। यह व्रत निःसंतान को संतान तथा संतान को मान-सम्मान एवं ऐश्वर्य प्रदान करने वाला है। ऐसे में आइए जानते हैं बहुला चौथ की पूजा का शुभ मुहूर्त और महत्व…
बहुला चतुर्थी महत्व (Bahula Chaturthi Significance in Hindi)
धार्मिक मान्याताओं के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस दिन भगवान गणेश की उपासना के साथ ही गौ माता की भी उपासना की जाती है। मान्यता है कि बहुला चतुर्थी के दिन गाय माता की पूजा और सेवा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। साथ ही संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश और चंद्र देव की उपासना करने से जीवन में आ रही कई प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं।
बहुला चतुर्थी व्रत की पूजा विधि Worship method of Bahula Chaturthi in Hindi
1. बहुला चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें।
2. शाम के समय भगवान गणेश, भगवान श्री कृष्ण और गौ माता की उपासना करें।
3. पूजा के लिए भगवान श्रीकृष्ण के किसी ऐसे चित्र या प्रतिमा को पूजा स्थान पर स्थापित करें, जिसमें उनके साथ गाय भी हो।
4. सबसे पहले भगवान को कुमकुम तिलक लगाएं और हार-फूल अर्पित करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद अबीर-गुलाल आदि चीजें चढ़ाएं।
5. कृष्ण और गणेश जी की पूजा के बाद गाय सहित बछडे़ की पूजा करें।
इस दिन पुरे दिन उपवास रखने के बाद संध्या के समय गणेश गौरी, योगेश्वर श्रीकृष्ण एवं सवत्सा गौ माता का विधिवत पूजन करना चाहिए । पूजा से पूर्व हाथ में गंध, अक्षत (चावल), पुष्प, दूर्वा, द्रव्य, पुंगीफल और जल लेकर गोत्र, वंशादि के नाम का का उच्चारण कर विधिपूर्वक संकल्प अवश्य ही लेना चाहिए अन्यथा पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है।
स्थान विशेष के अनुसार विधि विधान में अंतर हो जाता है अतः क्षेत्र विशेष में जिस विधि से पूजा प्रचलित है उसी विधि के अनुसार पूजा करनी चाहिए। कई स्थानों पर शंख में दूध, सुपारी, गंध तथा अक्षत (चावल) से भगवान श्रीगणेश और चतुर्थी तिथि को भी अर्ध्य दिया जाता है। रात्रि में चन्द्रमा के उदय होने पर भी अर्ध्य दिया जाता है।
पूजा के समय निम्न मंत्र का शुद्धोच्चारण करना चाहिए।
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने नमः
प्रणतः क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः ।।
कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनन्दनाय च।
नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नमः।।
त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।
त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे।।
उपर्युक्त मंत्र का शुद्धोच्चारण के बाद निम्न मंत्र का 108 बार जप करना चाहिए।
याः पालयन्त्यनाथांश्च परपुत्रान् स्वपुत्रवत्।
ता धन्यास्ताः कृतार्थश्च तास्त्रियो लोकमातरः ।।
इस दिन पुखे (कुल्हड़) पर पपड़ी आदि रखकर भोग लगाकर पूजन के बाद ब्राह्मण भोजन कराकर उसी प्रसाद में से स्वयं भी भोजन करना चाहिए। बहुला चतुर्थी व्रत की कथा अवश्य ही पढ़ना या सुनना चाहिए। कथा सुनने के बाद ब्राह्मण को भोजन करानी चाहिए तथा उसके बाद स्वयं भोजन करनी चाहिए।
बहुला चतुर्थी व्रत के लाभ (Benefits of Bahula Chaturthi fast in Hindi)
1. सकट चतुर्थी व्रत करने व्यक्ति को इच्छित सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
2. इस व्रत को करने से शारीरिक तथा मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
3. यह व्रत निःसंतान को संतान का सुख देता है।
4. इस व्रत को करने से धन धन्य की वृद्धि होती है।
5. व्रत करने से व्यावहारिक तथा मानसिक जीवन से सम्बन्धित सभी संकट दूर हो जाते हैं।
6. व्रती स्त्री को पुत्र, धन, सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
7. संतान के ऊपर आने वाले कष्ट दूर हो जाते है।
8. सकट चौथ के दिन क्या नही करना चाहिए
9. इस दिन गाय के दूध से बनी हुई कोई भी खाद्य सामग्री नहीं खानी चाहिए।
10. गाय के साथ साथ उसके बछड़े का भी पूजन करना चाहिए।
11. भगवान श्रीकृष्ण और गाय की वंदना करना चाहिए श्री कृष्ण के सिंह रूप में वंदन करना चाहिए।
बहुला चतुर्थी व्रत कथा (Bahula Chaturthi fasting story in Hindi)
बहुला चतुर्थी व्रत से संबंधित एक बड़ी ही रोचक कथा प्रचलित है। जब भगवान विष्णु का कृष्ण रूप में अवतार हुआ तब इनकी लीला में शामिल होने के लिए देवी-देवताओं ने भी गोप-गोपियों का रूप लेकर अवतार लिया। कामधेनु नाम की गाय के मन में भी कृष्ण की सेवा का विचार आया और अपने अंश से बहुला नाम की गाय बनकर नंद बाबा की गौशाला में आ गई।
भगवान श्रीकृष्ण का बहुला गाय से बड़ा स्नेह था। एक बार श्रीकृष्ण के मन में बहुला की परीक्षा लेने का विचार आया। जब बहुला वन में चर रही थी तब भगवान सिंह रूप में प्रकट हो गए। मौत बनकर सामने खड़े सिंह को देखकर बहुला भयभीत हो गई। लेकिन हिम्मत करके सिंह से बोली, ‘हे वनराज मेरा बछड़ा भूखा है। बछड़े को दूध पिलाकर मैं आपका आहार बनने वापस आ जाऊंगी।’
सिंह ने कहा कि सामने आए आहार को कैसे जाने दूं, तुम वापस नहीं आई तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा। बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेकर कहा कि मैं अवश्य वापस आऊंगी। बहुला की शपथ से प्रभावित होकर सिंह बने श्रीकृष्ण ने बहुला को जाने दिया। बहुला अपने बछड़े को दूध पिलाकर वापस वन में आ गई।
बहुला की सत्यनिष्ठा देखकर श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए और अपने वास्तविक स्वरूप में आकर कहा कि ‘हे बहुला, तुम परीक्षा में सफल हुई। अब से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ-माता के रूप में तुम्हारी पूजा होगी। तुम्हारी पूजा करने वाले को धन और संतान का सुख मिलेगा।
श्री गणेश अवतरण कथा (Sri Ganesh Avatar Story in Hindi)
शिवपुराण अनुसार भगवान गणेश जी के जन्म लेने की कथा का वर्णन प्राप्त होता है जिसके अनुसार देवी पार्वती जब स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक का निर्माण करती हैं और उसे अपना द्वारपाल बनाती हैं वह उनसे कहती हैं ‘हे पुत्र तुम द्वार पर पहरा दो मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ अत: जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर नहीं आने देना।
जब भगवान शिवजी आए तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया और उन्हें भितर न जाने दिया इससे शिवजी बहुत क्रोधित हुए और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर देते हैं, इससे भगवती दुखी व क्रुद्ध हो उठीं अत: उनके दुख को दूर करने के लिए शिवजी के निर्देश अनुसार उनके गण उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आते हैं और शिव भगवान ने गज के उस मस्तक को बालक के धड़ पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर देते हैं.
पार्वती जी हर्षातिरेक हो कर पुत्र गणेश को हृदय से लगा लेती हैं तथा उन्हें सभी देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद देती हैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान देते हैं. चतुर्थी को व्रत करने वाले के सभी विघ्न दूर हो जाते हैं सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
भगवान गणेश जी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पारवती, पिता महादेवा…।
एकदन्त, दयावन्त, चारभुजाधारी,
माथे पर सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा,
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा
माता जाकी पारवती, पिता महादेवा…।
अंधन को आँख देत, कोढ़िन को काया,
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा,
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा…
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा…
माता जाकी पारवती, पिता महादेवा…।
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