जानें सिंदूर तृतीया का महत्व और माता को सिंदूर चढ़ाने के लाभ 

हर साल नवरात्रि के तीसरे दिन सिंदूर तृतीया का उत्सव मनाते हैं। इस साल यह पर्व 05 अक्टूबर, शनिवार के दिन मनाया जायेगा। सिंदूर तृतीया के दिन का नवरात्रि में विशेष महत्व होता है। 03 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। नवरात्रि के नव दिनों में देवी के 9 रूपों की पूजा की जाती है। तीसरे दिन भक्त देवी के चंद्रघंटा रूप की पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी दुर्गा पृथ्वी पर निवास करती हैं। ऐसे में उन्हें सिंदूर लगाने का परंपरा होती है। पुराणों के अनुसार देवी की उपासना में लाल सिंदूर का इस्तेमाल करना बेहद जरूरी होता है। सिंदूर तृतीया का यह विशेष उत्सव भारत के दक्षिणी और उत्तरी राज्यों समेत देश की कई जगहों पर नवरात्रि के दौरान मनाया जाता है। सिंदूर लगाने की रस्म नवरात्रि उत्सव के पहले तीन दिनों के समापन का प्रतीक होता है।

सिंदूर तृतीया का महत्व 

हिन्दू पंचांग के अनुसार तृतीया तिथि के दिन सिंदूर तृतीया मनाई जाती है। सिंदूर तृतीया को महा तृतीया नवरात्रि दुर्गा पूजा, सौभाग्य तीज और गौरी तीज, जैसे अन्य कई नामों से भी पुकारा जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं माता को सिंदूर चढ़ा-कर बाकी बचे सिंदूर को उनका प्रसाद समझकर अपने पास रख लेती हैं। कहा जाता है कि इसी सिंदूर से अपने घर के मुख्य दरवाज़े पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए ताकि घर में सुख और समृद्धि का प्रवेश हो। यह दिन देवी चंद्रघण्टा के विवाहित रूप माँ पार्वती को दर्शाता है।

वैसे तो महालया के दिन से देवी आदि शक्ति की पूजा शुरू कर दी जाती है। पितृपक्ष शुरू होने के बाद और नवरात्रि की शुरुआत में जो अमावस्या आती है, उसे महालया कहा जाता है। नवरात्रि के सभी दिन खास होते हैं, लेकिन माँ चन्द्रघंटा की पूजा वाले नवरात्रि के तीसरे दिन की महत्ता भी कम नहीं होती है। इसी दिन लोग सिंदूर तृतीया मनाते हैं। माँ चन्द्रघंटा की पूजा से मनुष्य को हर तरह के भय से मुक्ति मिलती है। जो भी भक्त पूरे सच्चे मन से देवी की पूजा करता हैं उसकी सभी इच्छा माता अवश्य ही पूर्ण करती हैं।

माता को सिंदूर चढ़ाने के लाभ 

सिंदूर तृतीया का यह उत्सव नवरात्रि के तीसरे दिन बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। सिंदूर एक ऐसी चीज़ है, जिसके इस्तेमाल के बिना हिन्दू धर्म में किसी भी अनुष्ठान को अधूरा माना जाता है। सिंदूर को महिलाओं के सुहाग की निशानी माना गया है। हिन्दू परिवार की महिलाएं इसे अपने पति की खुशी से जोड़ती हैं, इसीलिए उनके लिए सिंदूर अन्य किसी भी वस्तुओं से बढ़कर होता है। शादीशुदा होकर भी सिंदूर नहीं लगाना अशुभ माना जाता है। मां दुर्गा को भी सिंदूर लगाने का बड़ा महत्व‍ है। कहा जाता है कि सिंदूर मां दुर्गा के शादीशुदा होने का प्रतीक है, इसलिए देवी दुर्गा और अन्य सभी देवियों की पूजा करते समय यह बहुत महत्वपूर्ण होता है।

देवी की पूजा में सिंदूर का प्रयोग करने से कई लाभ भी मिलते हैं। नवरात्रि के समय में माता को नियमित रूप से सिंदूर चढ़ाने से जातक के जीवन से क्लेश मिटता है और सुख-शांति एवं समृद्धि में वृद्धि होती है। जो सिंदूर देवी पर चढ़ाया जाता है, वो सौभाग्य वृद्धि करने वाला होता है, इसीलिए सुहागन स्त्रियों को इसे माता के प्रसाद के रूप में घर में रखना चाहिए और नियमित तौर पर लगाना चाहिए। सिंदूर तृतीया के दिन सिंदूर चढ़ाने से उस महिला को माता का आशीर्वाद मिलता है और उसके सुहाग की उम्र लंबी होती है। इसीलिए हर साल लाखों महिलाएं सिंदूर तृतीया के दिन धूम-धाम से माता की पूजा करती है और उन पर कृपा बनाए रखने की प्रार्थना करती हैं।

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