उल्लू कैसे बना माता लक्ष्मी का वाहन पौराणिक कथा 

लुप्त हो रहा है उल्लू। पश्चिमी मान्यता अनुसार किस व्यक्ति को मूर्ख बनाना अर्थात उल्लू बनाना कहा जाता है। इसका यह मतलब की मूर्ख व्यक्ति को उल्लू समझा जाता है, लेकिन यह धारणा गलत है। उल्लू सबसे बुद्धिमान‍ निशाचारी प्राणी होता है। उल्लू को भूत और भविष्‍य का ज्ञान पहले से ही हो जाता है।

उल्लू को भारतीय संस्कृति में शुभता और धन संपत्ति का प्रतीक माना जाता है। हालांकि अधिकतर लोग इससे डरते हैं। इस डर के कारण ही इसे अशुभ भी माना जाता है। अधिकतर यह माना जाता है कि यह तांत्रिक विद्या के लिए कार्य करता है। उल्लू के बारे में देश-विदेश में कई तरह की विचित्र धारणाएं फैली हुई है।

अधिक संपन्न होने के चक्कर में लोग दुर्लभ प्रजाति के उल्लुओं के नाखून, पंख आदि को लेकर तांत्रिथक कार करने हैं। कुछ लोग तो इसकी दीपावली की रात को बलि भी चढ़ाते हैं जिसके कारण इस पक्षी पर संकट गहरा गया है। हालांकि ऐसे करने से रही सही लक्ष्मी भी चली जाती है और आदमी पहले से अधिक गहरे संकट में फंस जाता है।

रहस्यमी प्राणी उल्लू :

जब पूरी ‍दुनिया सो रही होती है तब यह जागता है। यह अपनी गर्दन को 170 अंश तक घुमा लेता है। यह रात्री में उड़ते समय पंख की आवाज नहीं निकालता है और इसकी आंखें कभी नहीं झपकती है। उल्लू का हू हू हू उच्चारण एक मंत्र है।‌

Owl has five main qualities उल्लू में पांच प्रमुख गुण होते हैं :

उल्लू की दृष्टि तेज होती है। दूसरा गुण उसकी नीरव उड़ान। तीसरा गुण शीतऋतु में भी उड़ने की क्षमता। चौथी उसकी योग्यता है उसकी विशिष्ट श्रवण-शक्ति। पांचवीं योग्यता अति धीमे उड़ने की भी योग्यता। उल्लू के ऐसे ऐसे गुण हैं जो अन्य किसी पक्षियों में नहीं है। उसकी इसकी योग्यता को देखकर अब वैज्ञानिक इसी तरह के विमान बनाने में लगे हैं।

OWL उल्लू एक ऐसा पक्षी है जो किसानों के लिए अच्छा साबित हो सकता है। इसके होने के कारण खेत में चूहे, सांप, बिच्छी आदी नहीं आ सकते। इसके आलाव छोटे मोटे किड़े के लिए उल्लू एक दमनकारी पक्षी है। भारत में लगभग साठ जातियों या उपजातियों के उल्लू पाए जाते हैं।

उल्लू कैसे बना लक्ष्मी का वाहन :

प्राणी जगत की संरचाना करने के बाद एक रोज सभी देवी-देवता धरती पर विचरण के लिए आए। जब पशु-पक्षियों ने उन्हें पृथ्वी पर घुमते हुए देखा तो उन्हें अच्छा नहीं लगा और वह सभी एकत्रित होकर उनके पास गए और बोले आपके द्वारा उत्पन्न होने पर हम धन्य हुए हैं। हम आपको धरती पर जहां चाहेंगे वहां ले चलेंगे। कृपया आप हमें वाहन के रूप में चुनें और हमें कृतार्थ करें।

देवी-देवताओं ने उनकी बात मानकर उन्हें अपने वाहन के रूप में चुनना आरंभ कर दिया। जब लक्ष्मीजी की बारी आई तब वह असमंजस में पड़ गई किस पशु-पक्षी को अपना वाहन चुनें। इस बीच पशु-पक्षियों में भी होड़ लग गई की वह लक्ष्मीजी के वाहन बनें। इधर लक्ष्मीजी सोच विचार कर ही रही थी तब तक पशु पक्षियों में लड़ाई होने लगी गई।

इस पर लक्ष्मीजी ने उन्हें चुप कराया और कहा कि प्रत्येक वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन मैं पृथ्वी पर विचरण करने आती हूं। उस दिन मैं आपमें से किसी एक को अपना वाहन बनाऊंगी। कार्तिक अमावस्या के रोज सभी पशु-पक्षी आंखें बिछाए लक्ष्मीजी की राह निहारने लगे। रात्रि के समय जैसे ही लक्ष्मीजी धरती पर पधारी उल्लू ने अंधेरे में अपनी तेज नजरों से उन्हें देखा और तीव्र गति से उनके समीप पंहुच गया और उनसे प्रार्थना करने लगा की आप मुझे अपना वाहन स्वीकारें।

लक्ष्मीजी ने चारों ओर देखा उन्हें कोई भी पशु या पक्षी वहां नजर नहीं आया। तो उन्होंने उल्लू को अपना वाहन स्वीकार कर लिया। तभी से उन्हें उलूक वाहिनी कहा जाता है।

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