यह बिलकुल सत्य है कि दूसरों के साथ हम जैसा व्यवहार करते हैं वैसा ही व्यवहार वे हमारे साथ करते हैं। हम अकारण रूप से दूसरों के जीवन में बाधक नहीं बनेंगे तो वे भी हमारे जीवन में बाधक क्यों बनेंगे ? यह बड़ी विचित्र बात समाज में देखने को मिल रही है कि हम अपने जीवन से ज्यादा दूसरों के जीवन को देखने में व जानने में व्यस्त हैं।

जब हम सब उस एक ही ईश्वर की संतान हैं और सब अपनी मेंहनत और कर्म करके उन्नति कर रहे हैं तो फिर क्यों हमारे भीतर ईर्ष्या और द्वेष बढ़ता जा रहा है ? दूसरों की समृद्धि देख कर जलो नहीं अपितु उन्हें और आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करो।

यदि हमने अपना स्वभाव विनम्र, दयालु, प्रिय सत्यभाषी, परोपकारी और मधुर बना लिया तो बड़ी मात्रा में ना सही तो थोड़े अंश में ही सही दूसरों का व्यवहार भी आपको इसी रूप में प्राप्त होना शुरू हो जायेगा। सद वृत्तियों में बड़ा आकर्षण होता है। लोग आपकी तरफ खिंचे चले आएंगे।