हिन्दू धर्म में मान्यता है की भगवान शिव इस संसार में आठ रूपों में समाए है जो है शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव। इसी आधार पर धर्मग्रंथों में शिव जी की मूर्तियों को भी आठ प्रकार का बताया गया है । आईए भगवान शिव के इन आठ मूर्ति स्वरुप के बारे में थोड़ा विस्तार से जानते है।

महादेव की अष्ट मूर्तियों के रहस्य 

शिवजी की अष्टमूर्तियों के नाम क्या हैं ? 

मनुष्य के शरीर में अष्टमूर्तियाँ कहाँ कहाँ हैं ? 

अष्ट मूर्तियों के तीर्थ कहाँ – कहाँ हैं ? 

(1) अष्टमूर्तियों के नाम 

भगवान शिव के विश्वात्मक रूप ने ही चराचर जगत को धारण किया है। यही अष्टमूर्तियाँ क्रमश: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, जीवात्मा सूर्य और चन्द्रमा को अधिष्ठित किये हुए हैं। किसी एक मूर्ति की पूजा अर्चना से सभी मूर्तियों की पूजा का फल मिल जाता है।

1. शर्व 

क्षितिमूर्ति (शर्व) शिव की शर्वी मूर्ति का अर्थ है कि पूवरे जगत को धारण करने वाली पृथ्‍वीमयी प्रतिमा के स्वामी शर्व है। शर्व का अर्थ भक्तों के समस्त कष्टों को हरने वाला।

2. भव 

जलमूर्ति (भव) शिव की जल से युक्त भावी मूर्ति पूरे जगत को प्राणशक्ति और जीवन देने वाली कही गई है। जल ही जीवन है। भव का अर्थ संपूर्ण संसार के रूप में ही प्रकट होने वाला देवता।

3. रूद्र 

अग्निमूर्ति (रूद्र) संपूर्ण जगत के अंदर-बाहर फैली समस्त ऊर्जा व गतिविधियों में स्थित इस मूर्ति को अत्यंत ओजस्वी मूर्ति कहा गया है जिसके स्वामी रूद्र है। यह रौद्री नाम से भी जानी जाती है। रुद्र का अर्थ भयानक भी होता है जिसके जरिये शिव तामसी व दुष्ट प्रवृत्तियों पर नियंत्रण रखते हैं।

4. उग्र 

वायुमूर्ति (उग्र) वायु संपूर्ण संसार की गति और आयु है। वायु के बगैर जीवन संभव नहीं। वायुरूप में शिव जगत को गति देते हैं और पालन-पोषण भी करते हैं। इस मूर्ति के स्वामी उग्र है, इसलिए इसे औग्री कहा जाता है। शिव के तांडव नृत्य में यह उग्र शक्ति स्वरूप उजागर होता है।

5. भीम 

आकाशमूर्ति (भीम) तामसी गुणों का नाश कर जगत को राहत देने वाली शिव की आकाशरूपी प्रतिमा को भीम कहते हैं। आकाशमूर्ति के स्वामी भीम हैं इसलिए यह भैमी नाम से प्रसिद्ध है। भीम का अर्थ विशालकाय और भयंकर रूप वाला होता है। शिव की भस्म लिपटी देह, जटाजूटधारी, नागों के हार पहनने से लेकर बाघ की खाल धारण करने या आसन पर बैठने सहित कई तरह उनका भयंकर रूप उजागर होता है।

6. पशुपति 

यजमानमूर्ति (पशुपति) यह पशुवत वृत्तियों का नाश और उनसे मुक्त करने वाली होती यजमानमूर्ति है। इसलिए इसे पशुपति भी कहा जाता है। पशुपति का अर्थ पशुओं के स्वामी, जो जगत के जीवों की रक्षा व पालन करते हैं। यह सभी आंखों में बसी होकर सभी आत्माओं की नियंत्रक भी मानी गई है।

7. महादेव 

चन्द्रमूर्ति (महादेव) चंद्र रूप में शिव की यह मूर्ति महादेव के रूप में प्रसिद्ध है। महादेव का अर्थ देवों के देव होता है। यानी सारे देवताओं में सबसे विलक्षण स्वरूप व शक्तियों के स्वामी शिव ही हैं। चंद्र रूप में शिव की यह साक्षात मूर्ति मानी गई है।

8. ईशान 

सूर्यमूर्ति (ईशान) शिव का एक नाम ईशान भी है। यह सूर्य जगत की आत्मा है जो जगत को प्रकाशित करता है। शिव की यह मूर्ति भी दिव्य और प्रकाशित करने वाली मानी गई है। शिव की यह मूर्ति ईशान कहलाती है। ईशान रूप में शिव को ज्ञान व विवेक देने वाला बताया गया है।

(2) मनुष्यों के शरीर में अष्ट मूर्तियों का निवास

1. आँखों में “रूद्र” नामक मूर्ति प्रकाशरूप है जिससे प्राणी देखता है

2. “भव” ऩामक मूर्ति अन्न पान करके शरीर की वृद्धि करती है यह स्वधा कहलाती है।

3. “शर्व” नामक मूर्ति अस्थिरूप से आधारभूता है यह आधार शक्ति ही गणेश कहलाती है।

4. “ईशान” शक्ति प्राणापन वृत्ति को प्राणियों में जीवन शक्ति है।

5. “पशुपति” मूर्ति उदर में रहकर अशित- पीत को पचाती है जिसे जठराग्नि कहा जाता है।

6. “भीमा” मूर्ति देह में छिद्रों का कारण है।

7. “उग्र” नामक मूर्ति जीवात्मा के ऐश्वर्य रूप में रहती है।

8. “महादेव” नामक मूर्ति संकल्प रूप से प्राणियों के मन में रहती है।

इस संकल्प रूप चन्द्रमा के लिए

नवो नवो भवति जायमान: कहा गया है

अर्थात संकल्पों के नये नये रूप बदलते हैं

(3) अष्टमूर्तियों के तीर्थ स्थल

1. सूर्य सूर्य ही दृश्यमान प्रत्यक्ष देवता हैं। सूर्य और शिव में कोई अन्तर नही है सभी सूर्य मन्दिर वस्तुत: शिव मन्दिर ही हैं फिर भी काशीस्थ “गभस्तीश्वर” लिंग सूर्य का शिव स्वारूप है।

2. चन्द्र सोमनाथ का मन्दिर है।

3. यजमान नेपाल का पशुपतिनाथ मन्दिर है।

4. क्षिति लिंग तमिलनाडु के शिव कांची में स्थित आम्रकेश्वर हैं।

5. जल लिंग तमिलनाडु के त्रिचिरापल्ली में जम्बुकेश्वर मन्दिर है।

6. तेजो लिंग अरूणांचल पर्वत पर है।

7. वायु लिंग आन्ध्रप्रदेश के अरकाट जिले में कालहस्तीश्वर वायु लिंग है।

8. आकाश लिंग तमिलनाडु के चिदम्बरम् मे स्थित है।

भवं भवानी सहितं नमामि 

आप की माया आप को ही समर्पित है मुझ अज्ञानी में इतना सामर्थ्य कहाँ है जो आप की माया का वर्णन कर सकूँ।

ऊँ पूर्णं शिवं धीमहि

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