शास्त्रों में वर्णित सूर्य कवच के पाठ से हर आपदा से बचा जा सकता है। यह कवच व्यक्ति के अंग-प्रत्यंग की रक्षा करता है। यह कवच संपूर्ण रूप से सौभाग्य और दिव्यता प्रदान करता है। यश और पराक्रम देता है। 

श्री सूर्य कवच (आरोग्य एवं विजय प्राप्त्यर्थ ) 

अथ् विनियोग :- 

ॐ अस्य श्री सूर्य-कवचस्य ब्रह्मा ऋषि:, अनुष्टप् छन्दः, श्री सूर्यो देवता: । आरोग्य च विजय प्राप्त्यर्थं, अहम्, पुत्रो श्री, पौत्रो श्री, गोत्रे जन्मौ, श्रीसूर्य-कवच-पाठे विनियोगः।

अर्थ एवं विधान : 

(अपने शुद्ध दाएँ हाथ में आचमनी में जल भरकर लें, बाएँ हाथ से दायीं भुजा को स्पर्श करते हुए निम्न प्रकार से विनियोग करें )

“इस श्री सूर्य कवच के ऋषि ब्रह्मा हैं, छन्द अनुष्टुप् है एवं श्री सूर्य देवता हैं । आरोग्य एवम् विजय की प्राप्ति हेतु मैं – पुत्र श्री – पौत्र श्री –गोत्र में जन्मा हुआ~ श्री सूर्य -कवच के पाठ के निमित्त स्वयं को नियोजित करता हूँ ”

ऐसा कहकर आचमनी के जल को~ हाथ को सीधा अर्थात् ऊपर की ओर रखते हुए ही~तीन बार थोड़ा-थोड़ा करके पृथ्वी पर छोड़ दें । उसके बाद निम्नलिखित श्री सूर्य कवच का अपने अभीष्ट अंगों को स्पर्श करते हुए जाप करें ।

श्री सूर्य कवचं : Shree Surya Kavach 

श्रीसूर्यध्यानम्

रक्तांबुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं

भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।

पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जैः

माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्॥

श्री सूर्यप्रणामः

जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।

ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥

याज्ञवल्क्य उवाच-

श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् ।

शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम् ।। 1।।

याज्ञवल्क्य जी बोले- हे मुनि श्रेष्ठ!

सूर्य के शुभ कवच को सुनो, जो शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है।

देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम। 

ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्र मेततु दीरयेत् ।।2।।

चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण (सूर्य) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।

शिरों में भास्कर: पातु ललाट मेडमित दुति:। 

नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर:।।3।। 

मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें। नेत्र (आंखों) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें।

ध्राणं धर्मं धृणि: पातु वदनं वेद वाहन:। 

जिव्हां में मानद: पातु कण्ठं में सुर वन्दित: ।।4।। 

मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।

सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्ज पत्रके। 

दधाति य: करे तस्य वशगा: सर्व सिद्धय:।।5।। 

सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती हैं।

सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योधिते स्वस्थ: मानस:। 

सरोग मुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विदंति ।।6।। 

स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है।

वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है।

इति श्री माद्याज्ञवल्क्यमुनिविरचितं सूर्यकवचस्तोत्रं संपूर्णं  

विशेष :

शुद्ध सूती अथवा ऊनी आसन पर पूर्वाभिमुख होकर प्रातःकाल इस कवच का प्रतिदिन कम से कम एक बार जाप अवश्य करना चाहिए

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