सनातन धर्म में हर तिथि किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होती है। जिस तरह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है, उसी तरह त्रयोदशी भगवान शिव समर्पित है। शुक्ल और कृष्ण पक्ष में आने वाली त्रयोदशी को भगवान शिव का प्रदोष व्रत किया जाता है। जब प्रदोष व्रत सोमवार को पड़ता है तब इसे सोम प्रदोष कहा जाता है और मंगलवार को पड़ता है तब इसे भौम प्रदोष व्रत के नाम से जाना जाता है।

पौराणिक मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव कैलाश पर्वत पर स्थित अपने रजत भवन में नृत्य करते हैं और सभी देवता उनकी स्तुति करते हैं। शास्त्रों में इस दिन को अधिक उपायोगी बनाने के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं, जिससे आपकी समस्याएं खत्म होंगी और जिंदगी मंगलकारी बनेगी। इन उपायों को एकबार आजमाने से आपकी किस्मत चमक सकती है और भगवान शिव का आशीर्वाद भी मिलेगा। आइए जानते हैं इन उपायों से किस तरह मंगल को बनाएं मंगलकारी…

Must Read प्रदोष व्रत भगवान शिव को शीघ्र प्रसन्न करने के लिए हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता

इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।

Baum Pradosh Vrat भौम प्रदोष व्रत

भौम प्रदोष व्रत गरीबी और ऋणों से मुक्ति के लिए करें ये व्रत भौम प्रदोष व्रत के दिन शिव जी की पूजा करने से मंगल ग्रह के कारण प्राप्त होने वाले अशुभ ग्रहों के प्रभाव में कमी आती है, आरोग्य सुख की प्राप्ति होती है तथा शरीर ऊर्जावान और शक्तिशाली होता है। मंगलवार को प्रदोष व्रत होने से इस दिन संध्या के समय हनुमान चालीसा के पाठ का भी कई गुणा लाभ मिलता है।

Mangala Dosha मंगल दोष 

मंगल दोष के प्रभाव को कम करने के लिए इस दिन मसूर की दाल, लाल वस्त्र, गुड़ और तांबे का दान करना उत्तम फलदायी होता है। मंगल की शांति के लिए जो लोग प्रदोष व्रत करना चाहते हैं वे दिन भर व्रत रख कर शाम के समय भगवान शिव एवं हनुमान जी की पूजा करें। हनुमान जी को बूंदी के लड्डू अथवा बूंदी अर्पित करके लोगों में प्रसाद बांटने के बाद भोजन करें।

Pradosh Vrat benefits: प्रदोष व्रत के लाभ

सूर्य के अस्त होने के बाद और रात के आने से पहले का समय अर्थात दिन का ढलना और रात की शुरुआत प्रदोष काल होता है। इस काल में किया जाने वाला व्रत प्रदोष व्रत कहलाता है। इस व्रत में भगवान शंकर की पूजा की जाती है। प्रदोष व्रत हर माह में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन रखा जाता है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन मंगल देवता के नामों का पाठ करने वाले व्रती को कर्ज से छुटकारा मिल जाता है।

अलग-अलग वार के प्रदोष व्रत के अलग-अलग लाभ होते है ।

1. जो उपासक रविवार को प्रदोष व्रत रखते हैं, उनकी आयु में वृद्धि होती है अच्छा स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।

2. सोमवार के दिन के प्रदोष व्रत को सोम प्रदोषम या चन्द्र प्रदोषम भी कहा जाता है और इसे मनोकामनायों की पूर्ती करने के लिए किया जाता है।

3. जो प्रदोष व्रत मंगलवार को रखे जाते हैं उनको भौम प्रदोषम कहा जाता है। इस दिन व्रत रखने से हर तरह के रोगों से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ सम्बन्धी समस्याएं नहीं होती। बुधवार के दिन इस व्रत को करने से हर तरह की कामना सिद्ध होती है।

4. बृहस्पतिवार के दिन प्रदोष व्रत करने से शत्रुओं का नाश होता है।

5. वो लोग जो शुक्रवार के दिन प्रदोष व्रत रखते हैं, उनके जीवन में सौभाग्य की वृद्धि होती है और दांपत्य जीवन में सुख-शांति आती है।

6. शनिवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोषम कहा जाता है और लोग इस दिन संतान प्राप्ति की चाह में यह व्रत करते हैं। अपनी इच्छाओं को ध्यान में रख कर प्रदोष व्रत करने से फल की प्राप्ति निश्चित हीं होती है।

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Importance of Pradosh Vrat प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत को हिन्दू धर्म में बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन पूरी निष्ठा से भगवान शिव की अराधना करने से जातक के सारे कष्ट दूर होते हैं और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। पुराणों के अनुसार एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों के दान जितना होता है। इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था।

उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके द्वारा वो शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा। सबसे पहले इस व्रत के महत्व के बारे में भगवान शिव ने माता सती को बताया था, उसके बाद सूत जी को इस व्रत के बारे में महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया, जिसके बाद सूत जी ने इस व्रत की महिमा के बारे में शौनकादि ऋषियों को बताया था।

Pradosh Vrat Story प्रदोष व्रत कथा

किसी भी व्रत को करने के पीछे कोई न कोई पौराणिक महत्व और कथा अवश्य होती है। तो चलिए पढ़ते हैं इस व्रत की पौराणिक कथा के बारे में-

एक विधवा ब्राह्मणी अपने बेटे के साथ रोज़ाना भिक्षा मांगने जाती और संध्या के समय तक लौट आती। हमेशा की तरह एक दिन जब वह भिक्षा लेकर वापस लौट रही थी तो उसने नदी किनारे एक बहुत ही सुन्दर बालक को देखा लेकिन ब्राह्मणी नहीं जानती थी कि वह बालक कौन है और किसका है ?

दरअसल उस बालक का नाम धर्मगुप्त था और वह विदर्भ देश का राजकुमार था। उस बालक के पिता को जो कि विदर्भ देश के राजा थे, दुश्मनों ने उन्हें युद्ध में मौत के घाट उतार दिया और राज्य को अपने अधीन कर लिया। पिता के शोक में धर्मगुप्त की माता भी चल बसी और शत्रुओं ने धर्मगुप्त को राज्य से बाहर कर दिया। बालक की हालत देख ब्राह्मणी ने उसे अपना लिया और अपने पुत्र के समान ही उसका भी पालन-पोषण किया

कुछ दिनों बाद ब्राह्मणी अपने दोनों बालकों को लेकर देवयोग से देव मंदिर गई, जहाँ उसकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई।ऋषि शाण्डिल्य एक विख्यात ऋषि थे, जिनकी बुद्धि और विवेक की हर जगह चर्चा थी।

ऋषि ने ब्राह्मणी को उस बालक के अतीत यानि कि उसके माता-पिता के मौत के बारे में बताया, जिसे सुन ब्राह्मणी बहुत उदास हुई। ऋषि ने ब्राह्मणी और उसके दोनों बेटों को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी और उससे जुड़े पूरे वधि-विधान के बारे में बताया। ऋषि के बताये गए नियमों के अनुसार ब्राह्मणी और बालकों ने व्रत सम्पन्न किया लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि इस व्रत का फल क्या मिल सकता है।

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कुछ दिनों बाद दोनों बालक वन विहार कर रहे थे तभी उन्हें वहां कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आईं जो कि बेहद सुन्दर थी। राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की एक गंधर्व कन्या की ओर आकर्षित हो गए। कुछ समय पश्चात् राजकुमार और अंशुमती दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे और कन्या ने राजकुमार को विवाह हेतु अपने पिता गंधर्वराज से मिलने के लिए बुलाया। कन्या के पिता को जब यह पता चला कि वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार है तो उसने भगवान शिव की आज्ञा से दोनों का विवाह कराया।

राजकुमार धर्मगुप्त की ज़िन्दगी वापस बदलने लगी। उसने बहुत संघर्ष किया और दोबारा अपनी गंधर्व सेना को तैयार किया। राजकुमार ने विदर्भ देश पर वापस आधिपत्य प्राप्त कर लिया। कुछ समय बाद उसे यह मालूम हुआ कि बीते समय में जो कुछ भी उसे हासिल हुआ है वह ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के द्वारा किये गए प्रदोष व्रत का फल था। उसकी सच्ची आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे जीवन की हर परेशानी से लड़ने की शक्ति दी। उसी समय से हिदू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन शिवपूजा करेगा और एकाग्र होकर प्रदोष व्रत की कथा सुनेगा और पढ़ेगा उसे सौ जन्मों तक कभी किसी परेशानी या फिर दरिद्रता का सामना नहीं करना पड़ेगा।

Spiritual Significance of Pradosh Kaal प्रदोष काल का आध्यात्मिक महत्त्व 

1. प्रदोष काल का अर्थ है सूर्यास्त के समय का एक पवित्र पर्व काल जो भगवान शिव की साधना के लिये अत्यंत अनुकुल होता है।

2. प्रदोष काल निर्धारित करने की तीन प्रचलित मान्यताये है। आप अपने क्षेत्र और रिती रिवाज से या अपने विवेक से इनमे से किसी एक का अनुसरण करे।

3. एक मान्यता के अनुसार प्रदोष काल सूर्यास्त के समय से आगे चार घटी अर्थात लगभग 96 मिनिटो का होता है।

4. दुसरी मान्यता के अनुसार सूर्यास्त के समय से दुसरे दिन के सूर्योदय तक का काल लेकर उसके पांच भाग करे.. सूर्यास्त के समय से आगे पहला भाग प्रदोष काल माना जायेगा.. यह समय सूर्यास्त से आगे 144 मिनिटो का रहेगा।

5. तीसरी मान्यता नुसार सूर्यास्त से पहले देड घंटा और सूर्यास्त के बाद देड घंटे तक प्रदोष काल माना जायेगा।

6. प्रत्येक क्षेत्र की मान्यता अनुसार यह अलग अलग है लेकिन तिनो मान्यताओ मे एक बात समान है वह ये की सूर्यास्त के बाद देड घंटा प्रदोष काल होगा ही। तो आप यही सही मानकर सूर्यास्त के समय से आगे देड घंटा मानकर चले। आपके क्षेत्र का सूर्यास्त का समय पता कर इसे निर्धारित करे।

Difference between Pradosh Kaal and Pradosh Tithi प्रदोष काल और प्रदोष तिथी मे अंतर 

प्रदोष काल जैसे हमने उपर बताया की रोज सूर्यास्त के बाद देड घंटे तक होता है।

और प्रदोष तिथी का अर्थ है हर महिने की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की तेरहवी तिथी यानि त्रयोदशी तिथी जो उस दिन के सूर्यास्त के समय हो। जिस दिन सूर्यास्त समय पर त्रयोदशी तिथी हो वह प्रदोष दिन माना जायेगा। कभी कभी द्वादशी सूर्यास्त से पहले खत्म होती है और सूर्यास्त के समय त्रयोदशी तिथी होती है तो वही प्रदोष तिथी होती है। इसमे सूर्योदय की त्रयोदशी से ज्यादा सूर्यास्त की त्रयोदशी का महत्त्व है। हर कॅलेंडर या पंचांग मे हर महिने की दो प्रदोष तिथीया अंकित की जाती है। इस प्रदोष तिथी पर सूर्यास्त के समय से जो देड घंटे का प्रदोष काल होगा वही प्रदोष पर्व काल है।

इस पर्व काल मे सुषुम्ना नाडी कुछ खुल जाती है। इस पर्व काल मे साधना ध्यान कर सुषुम्ना मे प्राण प्रवाहित करना आसान होता है।

Pradosh’s relation to Shiva प्रदोष का शिव से संबंध

पुराण की मान्यता नुसार देव दानव के समुद्र मंथन मे जो विष उत्पन्न हुवा था वह भगवान महादेव ने इसी प्रदोष काल मे प्राशन किया था। भगवती पार्वती ने अपने सामर्थ्य से उस विष को शिवजी के कंठ तक ही रोक दिया इसलिये भोलेनाथ “नीलकंठ” नाम से जाने गये। भगवान शिव जी ने समस्त सृष्टी को इस भयंकर विष के प्रभाव से बचाया इस पवित्र प्रदोष काल मे इसीलिए इसे शिव उपासना के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसि काल मे भगवान महादेव ने अपना तांडव नृत्य किया था। भगवान महादेव ने विष का प्राशन कर समस्त सृष्टी को उस भयंकर विष के प्रभाव से मुक्त किया इसलिए जब सभी देव दानव महादेव के पास गये और उनकी स्तुती की जिससे भोलेनाथ अत्यंत प्रसन्न हुये वह दिन प्रदोष तिथी ही थी।

इसीलिए प्रदोष के दिन सूर्यास्त के समय प्रदोष काल मे भगवान शिव की उपासना कर उन्हे प्रसन्न किया जा सकता है। यह अत्यंत पुण्यदायी पर्व काल होता है।

प्रदोष यानी सभी दोषो से मुक्ती प्रदान करने वाला पुण्यकाल। मनुष्य के जीवन मे रोग , कर्जे , शत्रू , ग्रहबाधा , संकट , पूर्वजन्म के पाप आदि यह सब एक प्रकार का विष ही है और प्रदोष काल के शिव पूजन से भगवान भोलेनाथ की कृपा से हम इस विष के प्रभाव से मुक्त हो सकते है।

इसलिए कहा गया है की “त्रयोदशी व्रत करे जो हमेशा तन नाहि राखे रहे कलेशा”

प्रदोष के दिन आप अगर संभव हो तो दिन भर उपवास रखे और शाम को प्रदोष काल मे शिवपूजन, रुद्राभिषेक, शिवस्तोत्रों का पाठ, शिव मंत्र का जाप, 108 बेल के पत्तो से बिल्वार्चन, ध्यान आदि प्रकार से साधना कर सकते है।

वार अनुसार प्रदोष के फल 

1. सोमवार को अगर प्रदोष हो तो उसे सोम प्रदोष कहते है। यह सर्व प्रकारके पापो का शमन करनेवाला होता है।

2. मंगलवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भौम प्रदोष कहते है। यह दरिद्रता दूर करनेवाला, ऋणमुक्ती के लिये और आर्थिक उन्नती के लिये लाभदायी है।

3. बुधवार को अगर प्रदोष हो तो उसे बुध प्रदोष या सौम्य प्रदोष कहते है. संतान सुख प्राप्ति और विद्याप्राप्ती के लिये लाभदायी।

4. गुरुवार को अगर प्रदोष हो तो यह आध्यात्मिक उन्नती एवं पितृ दोष निवारण के लिये लाभदायी।

5. शुक्रवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भृगु प्रदोष कहते है। शत्रु बाधा निवारण के लिये लाभदायी।

6. शनिवार को प्रदोष हो तो उसे शनि प्रदोष कहते है। यह अत्यंत दुर्लभ और लाभदायी होता है। शनि बाधा, साडेसाती, धनप्राप्ति, ऋणमुक्ति, राज्यपद आदि के लिये लाभदायी।

7. रविवार को अगर प्रदोष हो तो उसे भानुप्रदोष कहते है। यह आरोग्य प्राप्ति के लिये लाभदायी और परम कल्याण कारी होता है।

इनमे से सोमप्रदोष (सोमवार के दिन आने वाला प्रदोष), भौम प्रदोष (मंगलवार के दिन आनेवाला प्रदोष) और शनि प्रदोष (शनिवार के दिन आने वाला प्रदोष) यह तीन प्रदोष आध्यात्मिक दृष्टीकोण से महत्त्वपूर्ण है। और इन तीनो मे शनि प्रदोष अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।

स्कंद पुराण मे प्रदोष स्तोत्रम 

इसका पाठ प्रदोष काल मे करना चाहिये। प्रदोष काल के शिवपूजन से दरिद्रता दूर होती और आर्थिक उन्नती प्राप्त होती है।

“ये वै प्रदोष समये परमेश्वरस्य

कुर्वंति अनन्य मनसोsन्गि सरोजपूजाम

नित्यं प्रबद्ध धन धान्य कलत्र पुत्र

सौभाग्य संपद अधिकारस्त इहैव लोके”

अर्थ जो लोग प्रदोष काल मे अनन्य भक्ति से महादेव के चरण कमलों का पूजन करते है उन्हे इस लोक मे धन धान्य कलत्र पुत्र सौभाग्य एवं संपत्ती की प्राप्ति होती है।

“अत: प्रदोषे शिव एक एव पूज्योsथ नान्ये हरिपद्मजाद्या:

तस्मिन महेशे विधिज्यमाने सर्वे प्रसीदंति सुराधिनाथा:”

अर्थ प्रदोष काल मे विष्णु एवं ब्रम्हा का पूजन न करे और केवल एक शिवजी का पूजन करे। प्रदोष काल मे महादेव के पूजन से ईतर सभी देवता प्रसन्न हो जाते है।

हर महिने मे दो बार प्रदोष आता है। एक शुक्ल पक्ष मे और एक कृष्ण पक्ष मे। परंतु माघ महिने मे कृष्ण पक्ष मे जो प्रदोष आता है उसे महाप्रदोष कहते है। यह महाशिवरात्री के वक्त आता है। माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथी को जब मध्यरात्री मे चतुर्दशी तिथी हो तब वह रात्री महाशिवरात्री कहलाती है और माघ मास की कृष्ण त्रयोदशी तिथी को सूर्यास्त को त्रयोदशी होने से महाप्रदोष तिथी होती है। तो हमेशा महाशिवरात्र की एक दिन पूर्व प्रदोष होता है।

Pradosh vrat vidhi प्रदोष व्रत विधि

प्रदोष व्रत करने के लिए उपासक को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए। नित्यकर्मों से निवृत्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें। इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता। दिन भर उपवास रखने के पश्चात सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते हैं।

ईशान्य कोण की दिशा में किसी एकांत स्थल को पूजा करने के लिए प्रयोग करना विशेष शुभ रहता है। पूजा स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीप कर, मंडप तैयार किया जाता है। इस मंडप में पद्म पुष्प की आकृति पांच रंगों का उपयोग करते हुए बनाई जाती है।

प्रदोष व्रत की आराधना करने के लिए कुश के आसन का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार पूजन क्रिया की तैयारियां कर उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ कर भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए। पूजन में भगवान शिव के मंत्र ॐ नम: शिवाय’ का जाप करते हुए शिवजी को जल का अर्घ्य देना चाहिए।

ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृत्य करते हैं। जिनको भगवान भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उनको त्रयोदशी तिथि में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए।

यह व्रत उपवास को धर्म, मोक्ष से जोड़ने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला है। भगवान शिव की आराधना करने वाले भक्तों को गरीबी, मृत्यु, दुख और ऋणों से मुक्ति मिलती है।

1. प्रदोष व्रत करने के लिए सबसे पहले आप त्रयोदशी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं।

2. स्नान आदि करने के बाद साफ़ वस्त्र पहन लें।

3. उसके बाद आप बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि से भगवान शिव की पूजा करें।

4. इस व्रत में भोजन ग्रहण नहीं किया जाता है।

5. पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफ़ेद रंग का वस्त्र धारण करें।

6. आप स्वच्छ जल या गंगा जल से पूजा स्थल को शुद्ध कर लें।

7. अब आप गाय का गोबर लें और उसकी मदद से मंडप तैयार कर लें।

8. पांच अलग-अलग रंगों की मदद से आप मंडप में रंगोली बना लें।

9. पूजा की सारी तैयारी करने के बाद आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं।

10. भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करें और शिव को जल चढ़ाएं।

धार्मिक दृष्टिकोण से आप जिस दिन भी प्रदोष व्रत रखना चाहते हों, उस वार के अंतर्गत आने वाली त्रयोदशी को चुनें और उस वार के लिए निर्धारित कथा पढ़ें और सुनें ।

Pradosh Vrat Udyapan  प्रदोष व्रत का उद्यापन

जो उपासक इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशी तक रखते हैं, उन्हें इस व्रत का उद्यापन विधिवत तरीके से करना चाहिए।

1. व्रत का उद्यापन आप त्रयोदशी तिथि पर ही करें।

2. उद्यापन करने से एक दिन पहले श्री गणेश की पूजा की जाती है। और उद्यापन से पहले वाली रात को कीर्तन करते हुए जागरण करते हैं।

3. अगले दिन सुबह जल्दी उठकर मंडप बनाना होता है और उसे वस्त्रों और रंगोली से सजाया जाता है।

4. ऊँ उमा सहित शिवाय नम: मंत्र का 108 बार जाप करते हुए हवन करते हैं।

5. खीर का प्रयोग हवन में आहूति के लिए किया जाता है।

6. हवन समाप्त होने के बाद भगवान शिव की आरती और शान्ति पाठ करते हैं।

7. और अंत में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने इच्छा और सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देते हुए उनसे आशीर्वाद लेते हैं।

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