एक हाथ से दिया गया दान हज़ारों हाथों से लौटता है। जानें दान का महत्व

प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।

जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥

धर्म के चार चरण (सत्य, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं, जिनमें से कलि में एक (दान रूपी) चरण ही प्रधान है। जिस किसी प्रकार से भी दिए जाने पर दान कल्याण ही करता है॥ जो हम देते हैं वो ही हम पाते हैं, दान के विषय में यह बात हम सभी जानते हैं। दान, अर्थात देने का भाव, अर्पण करने की निष्काम भावना।

हिन्दू धर्म में दान चार प्रकार के बताए गए हैं, अन्न दान, औषध दान, ज्ञान दान एवं अभयदान एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अंगदान का भी विशेष महत्व है। इनके विषय मे विस्तार से आगे बताया जा रहा है। दान एक ऐसा कार्य, जिसके द्वारा हम न केवल धर्म का पालन करते हैं बल्कि समाज एवं प्राणी मात्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन भी करते हैं। दान उन्नति का बीज है जैसे भूमि में फसल लगाने के लिये बीज बोने पड़ता है उसी प्रकार सभी प्रकार की उन्नति अथवा ताप के शमन के लिये भी दान रूपी बीज बोने की आवश्यकता पड़ती है।

किन्तु दान की महिमा तभी होती है जब वह निस्वार्थ भाव से किया जाता है अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। यहाँ समझने वाली बात यह है कि देना उतना जरूरी नहीं होता जितना कि ‘देने का भाव’। अगर हम किसी को कोई वस्तु दे रहे हैं लेकिन देने का भाव अर्थात इच्छा नहीं है तो वह दान झूठा हुआ, उसका कोई अर्थ नहीं।

इसी प्रकार जब हम देते हैं और उसके पीछे यह भावना होती है, जैसे पुण्य मिलेगा या फिर परमात्मा इसके प्रत्युत्तर में कुछ देगा, तो हमारी नजर लेने पर है देने पर नहीं तो क्या यह एक सौदा नहीं हुआ ?

दान का अर्थ होता है देने में आनंद, एक उदारता का भाव प्राणी मात्र के प्रति एक प्रेम एवं दया का भाव है किन्तु जब इस भाव के पीछे कुछ पाने का स्वार्थ छिपा हो तो क्या वह दान रह जाता है? गीता में भी लिखा है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो हमारा अधिकार केवल अपने कर्म पर है उसके फल पर नहीं।

हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है यह तो संसार एवं विज्ञान का साधारण नियम है इसलिए उन्मुक्त ह्रदय से श्रद्धा पूर्वक एवं सामर्थ्य अनुसार दान एक बेहतर समाज के निर्माण के साथ साथ स्वयं हमारे भी व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध होता है और सृष्टि के नियमानुसार उसका फल तो कालांतर में निश्चित ही हमें प्राप्त होगा।

आज के परिप्रेक्ष्य में दान देने का महत्व इसलिये भी बढ़ गया है कि आधुनिकता एवं भौतिकता की अंधी दौड़ में हम लोग देना तो जैसे भूल ही गए हैं। हर सम्बन्ध को हर रिश्ते को पहले प्रेम समर्पण त्याग सहनशीलता से दिल से सींचा जाता था लेकिन आज! आज हमारे पास समय नहीं है क्योंकि हम सब दौड़ रहे हैं और दिल भी नहीं है क्योंकि सोचने का समय जो नहीं है!

हाँ, लेकिन हमारे पास पैसा और बुद्धि बहुत है, इसलिए अब हम लोग हर चीज़ में इन्वेस्ट अर्थात निवेश करते हैं, चाहे वे रिश्ते अथवा सम्बन्ध ही क्यों न हो! तो हम लोग निस्वार्थ भाव से देना भूल गए हैं। देंगे भी तो पहले सोच लेंगे कि मिल क्या रहा है और इसीलिए परिवार टूट रहे हैं, समाज टूट रहा है।

जब हम अपनों को उनके अधिकार ही नहीं दे पाते तो समाज को दान कैसे दे पाएंगे? अगर दान देने के वैज्ञानिक पक्ष को हम समझें, जब हम किसी को कोई वस्तु देते हैं तो उस वस्तु पर हमारा अधिकार नहीं रह जाता है, वह वस्तु पाने वाले के आधिपत्य में आ जाती है।

अत: देने की इस क्रिया से हम कुछ हद तक अपने मोह पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। दान देना हमारे विचारों एवं हमारे व्यक्तित्व पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है इसलिए हमारी संस्कृति हमें बचपन से ही देना सिखाती है न कि लेना। हमें अपने बच्चों के हाथों से दान करवाना चाहिए ताकि उनमें यह संस्कार बचपन से ही आ जाएं।

दान धन का ही हो, यह कतई आवश्यक नहीं, भूखे को रोटी, बीमार का उपचार, किसी व्यथित व्यक्ति को अपना समय, उचित परामर्श, आवश्यकतानुसार वस्त्र, सहयोग, विद्या यह सभी जब हम सामने वाले की आवश्यकता को समझते हुए देते हैं और बदले में कुछ पाने की अपेक्षा नहीं करते, यह सब दान ही है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि परहित के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को कष्ट देने के समान कोई पाप नहीं है।

दानों में विद्या का दान सर्वश्रेष्ठ दान होता है क्योंकि उसे न तो कोई चुरा सकता है और न ही वह समाप्त होती है बल्कि कालांतर में विद्या बढ़ती ही है और एक व्यक्ति को शिक्षित करने से हम उसे भविष्य में दान देने लायक एक ऐसा नागरिक बना देते हैं जो समाज को सहारा प्रदान करे न कि समाज पर निर्भर रहे।

इसी प्रकार आज के परिप्रेक्ष्य में रक्त एवं अंगदान समाज की जरूरत है। जो दान किसी जीव के प्राणों की रक्षा करे उससे उत्तम और क्या हो सकता है? हमारे शास्त्रों में ॠषि दधीची का वर्णन है जिन्होंने अपनी हड्डियाँ तक दान में दे दी थीं, कर्ण का वर्णन है जिसने अपने अन्तिम समय में भी अपना स्वर्ण दंत याचक को दान दे दिया था।

देना तो हमें प्रकृति रोज सिखाती है, सूर्य अपनी रोशनी, फूल अपनी खुशबू, पेड़ अपने फल, नदियाँ अपना जल, धरती अपना सीना छलनी कर के भी दोनों हाथों से हम पर अपनी फसल लुटाती है।

इसके बावजूद न तो सूर्य की रोशनी कम हुई, न फूलों की खुशबू, न पेड़ों के फल कम हुए न नदियों का जल, अत: दान एक हाथ से देने पर अनेकों हाथों से लौटकर हमारे ही पास वापस आता है बस शर्त यह है कि निस्वार्थ भाव से श्रद्धा पूर्वक समाज की भलाई के लिए किया जाए।

बाबा तुलसी ने भी रामचरितमानस में लिखा है

सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी॥ धन्य घरी सोइ जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥

भावार्थ:- वह धन धन्य है, जिसकी पहली गति होती है (जो दान देने में व्यय होता है) वही बुद्धि धन्य और परिपक्व है जो पुण्य में लगी हुई है। वही घड़ी धन्य है जब सत्संग हो और वही जन्म धन्य है जिसमें ब्राह्मण की अखण्ड भक्ति हो॥

(धन की तीन गतियाँ होती हैं- दान, भोग और नाश। दान उत्तम है, भोग मध्यम है और नाश नीच गति है। जो पुरुष न देता है, न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।)

ज्योतिष एवं दान का महत्व 

हिंदू धर्म में दान का महत्व कर्तव्यों का विशद विवेचन धर्मसूत्रों तथा स्मृतिग्रंथों में मिलता है। वेद, पुराण, गीता और स्मृतियों में उल्लेखित चार पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक सनातनी (हिंदू या आर्य) को कर्तव्यों के प्रति जाग्रत रहना चाहिए ऐसा ज्ञानीजनों का कहना है। कर्तव्यों के पालन करने से चित्त और घर में शांति मिलती है। चित्त और घर में शांति मिलने से मोक्ष व समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

कर्तव्यों के कई मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कारण और लाभ हैं। जो मनुष्य लाभ की दृष्‍टि से भी इन कर्तव्यों का पालन करता है वह भी अच्छाई के रास्ते पर आ ही जाता है। दुख: है तो दुख से मुक्ति का उपाय भी कर्तव्य ही है। प्रमुख कर्तव्य निम्न है:- संध्योपासन, व्रत, तीर्थ, उत्सव, सेवा, दान, यज्ञ और संस्कार।

यहाँ हम जानते हैं दान के महत्व को 

वेदों में तीन प्रकार के दाता कहे गए हैं- 

1. उक्तम, 2. मध्यम और 3. निकृष्‍ट। 

धर्म की उन्नति रूप सत्यविद्या के लिए जो देता है वह उत्तम। कीर्ति या स्वार्थ के लिए जो देता है तो वह मध्यम और जो वेश्‍यागमनादि, भांड, भाटे, पंडे को देता वह निकृष्‍ट माना गया है।

पुराणों में अनोकों दानों का उल्लेख मिलता है जिसमें अन्नदान, विद्यादान, अभयदान और धनदान को ही श्रेष्ठ माना गया है, यही पुण्‍य भी है।

दान का महत्व : दान से इंद्रिय भोगों के प्रति आसक्ति छूटती है। मन की ग्रथियाँ खुलती है जिससे मृत्युकाल में लाभ मिलता है। मृत्यु आए इससे पूर्व सारी गाँठे खोलना जरूरी है, ‍जो जीवन की आपाधापी के चलते बंध गई है। दान सबसे सरल और उत्तम उपाय है। वेद और पुराणों में दान के महत्व का वर्णन किया गया है।

मनोवैज्ञानिक कारण किसी भी वस्तु का दान करते रहने से विचार और मन में खुलापन आता है। आसक्ति (मोह) कमजोर पड़ती है, जो शरीर छुटने या मुक्त होने में जरूरी भूमिका निभाती है। हर तरह के लगाव और भाव को छोड़ने की शुरुआत दान और क्षमा से ही होती है। दानशील व्यक्ति से किसी भी प्रकार का रोग या शोक भी नहीं चिपकता है।बुढ़ापे में मृत्यु सरल हो, वैराग्य हो इसका यह श्रेष्ठ उपाय है और इसे पुण्य भी माना गया है।

हिन्दू धर्म के अनुसार दान धर्म से बड़ा ना तो कोई पूण्य है ना ही कोई धर्म। दान, भीख. जो भी बदले में कुछ भी पाने की आशा के बिना किसी ब्राह्मण, भिखारी, जरूरतमंद, गरीब लोगों को दिया जाता है उसे दान कहा जाता है. “दान-धर्मत परो धर्मो भत्नम नेहा विद्धते”।

दान के प्रकार

सात्विक दान किसी भी देश में जिस समय पर जिन चीज़ो की कमी हैं उसे बिना किसी भी उम्मीद के जरूरतमंद लोगों को देना ही सात्विक दान है।

पद्म पुराण में, विष्णु फलक से कहते हैं – “दान के लिए तीन समय होते हैं – नित्या (दैनिक) किया गया दान, नैमित्तिक दान कुछ प्रयोजन के लिए किया गया दान, और काम्या दान किसा इच्छा के पूरी होने के लिए किया गया दान। इसके अलावा चौथी बार दान प्रायिक दान होता है जो मृत्यु से संबंधित है।“

नित्य दान 

जो प्राणी नित्य सुबह उठ कर अपने नित्या कर्म में देवता के ही एक स्वरूप उगते सूरज को जल भी अर्पित कर दे उसे ढेर सारा पुण्य मिलता है। उस समय जो स्नान करता है , देवता और पितर की पूजा करता है, अपनी क्षमता के अनुसार अन्न, पानी, फल, फूल, कपड़े, पान, आभूषण, सोने का दान करता है, उसके फल असीम है।

जो भी दोपहर में भोजन कि वस्तु दान करता है, वह भी बहुत से पुण्य इकट्ठा कर लेता है। इसलिए एक दिन के तीनों समय कुछ दान ज़रूर करना चाहिए। कोई भी दिन दान से मुक्त नही होना चाहिए। जो कुछ भी नहीं दान नही कर पाता है, उसे कई व्रत रखने चाहिए

दान का अर्थ 

अपनी किसी वस्तु का स्वामी किसी दूसरे को बना देना। दान लेने की स्वीकृति मन से, वचन से या शरीर से दी जा सकती है। दान को स्वीकार करना प्रतिग्रहण है। यह सिर्फ किसी चीज को लेना नहीं है। जिस चीज को लेने से अदृष्ट आध्यात्मिक पुण्य प्राप्त हो और जिसे देते समय पवित्र मंत्र पढ़े जाएं, वहीं दान है। भिखारी को भीख दी जाती है- वह शास्त्र के अनुसार दान नहीं

जानें दान के अंग 

दान के छह अंग हैं- दाता, प्रतिग्रहीता (दान देने वाला), श्रध्दा, धर्मयुक्त देय (उचित ढंग से हासिल किया गया धन), उचित काल (सही पर्व योग या संस्कार के समय किया गया दान) और उचित देश (तीर्थ स्थान वगैरह)।

दान के पदार्थ 

इसके बारे में अनेक नियम बनाए गए हैं। महाभारत के अनुसार दानी वहीं है जो अपने सबसे अधिक मूल्यवान पदार्थ को देता है। यह पदार्थ सुपात्र को दिया जाना चाहिए। दान उसी चीज का हासिल किया जा सकता है, जो बिना किसी को सताए हासिल किया गया हो। दान छोटा है या बड़ा-इस पर उसका पुण्य नहीं आंका जाता। श्रध्दा और स्नेह भावना से सुपात्र को जो कुछ दिया जाता है, वहीं अच्छा दान है

नैमित्तिक दान 

नैमित्तिक दान के लिए कुछ विशेष नैमित्तिक अवसर और समय होते हैं। अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी, संक्रांति, माघ, अषाढ़, वैशाख और कार्तिक पूर्णिमा, सोमवती अमावस्या, युग तिथि, गजच्छाया, अश्विन कृष्ण त्रयोदशी ; व्यतीपात और वैध्रिती नामक योग ,पिता की मृत्यु तिथि आदि को नैमित्तिक समय दान के लिए कहा जाता है। जो भी देवता के नाम से कुछ भी दान करता है उसे सारे सुख मिलते हैं।

काम्या दान 

जब एक दान व्रत और देवता के नाम पर कुछ इच्छा की पूर्ति के लिए किया जाता है, उसे दान के लिए काम्या दान कहा जाता है

अभ्युदायिक दान 

अभ्युदायिक दान का समय सभी शुभ अवसरों, शादी के समय, एक नवजात शिशु के मंदिर में अभिषेक संस्कार के समय, अच्छी तरह से अपनी क्षमता के अनुसार दान किया जाता है उसे दान के लिए अभ्युदायिक समय कहा जाता है। इस दान को करने वाला सभी प्रकार की सिद्धि को प्राप्त करता है।मनुष्य को मरते समय शरीर को नश्वर जानकर दान करना चाहिए। इस दान से यम लोक रास्ते में आप सभी प्रकार की आराम को प्राप्त करते हैं।

जहां ब्राह्मण उपलब्ध नहीं हैं, वहां मूर्तियों में रहने वाले देवता को दान करना चाहिए। मूर्तियों में रहने वाले देवता से दान का फल बहुत देर से मिलता है, तो मनुष्य को ब्राह्मण, जरूरतमंद, गरीब को दान करना चाहिए जिसका फल तुरन्त ही अवश्य मिलता है।

ग्रहो के दान 

किसी भी ग्रह की अनुकूलता प्राप्त करने के लिये उस ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान किया जाता है। जातक की कुण्डली में यदि कोई ग्रह दशा, महादशा व गोचर में अनिष्टकारी चल रहा हो, तो उस ग्रह को अनुकूल बनाने के लिये ग्रहों का उनके वार के अनुसार दान करना होता है। ग्रहों से संबंधित वस्तुएॅं उस ग्रह से संबंधित वस्त्र में बांधकर उस ग्रह के सम्मुख या उस ग्रह के संबंधित उपासक देवता के सम्मुख रखा जाता है। ग्रहों के दान की ये प्रक्रिया 11 या 21 के क्रम में वार के हिसाब से लगातार करना चाहिए। नवग्रहों के सम्पूर्ण दान का विवरण इस प्रकार है

यदि कोई ग्रह आपकी कुंडली में अशुभ फल दे रहा है अर्थात अस्त है या नीच का है तो उस ग्रह कि शांति के लिए, शुभ फलों कि प्राप्ति के लिए दान अवश्य ही करने चाहिए । हमारे शास्त्रों के अनुसार नौ में से पांच ग्रह बुध, शुक्र, शनि, राहु व केतु ऐसे है जो दान के बिना प्रसन्न ही नहीं होते और न ही जातकों पर अपनी कृपा दृष्टि रखते हैं। कुंडली के कमजोर ग्रहों के अशुभ फलों को शांत करने के लिए दान हम आपको यहाँ पर बता रहे है

रविवार के दान 

गेंहू, लाल कपड़ा, गुड़, स्वर्ण, तांबा, रक्तचंदन, लाल फुल, लाल फल, मसूर दाल, केसर, कुमकुम, नारियल, दक्षिणाद्व सुपारी, रविवार व्रत कथा की पुस्तक, पशु-लाल सवत्स गाय, लाल चंदन, लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, सोना, माणिक्य, घी व केसर का दान किसी भी रविवार को सूर्योदय के समय करना विशेष लाभप्रद होता है।

सोमवार के दान 

चन्द्र ग्रह कि कृपा प्राप्त करने के लिए दूध, चावल, चीनी, चांदी, मोती, सफेद चंदन, शंख, कर्पूर, दही, मिश्री आदि का दान संध्या के समय करने से विशेष फल प्राप्त होता है।चावल, कपूर, सफेद कपड़ा, घी, चांदी, सफेद फुल, सफेद फल, चीनी, नारियल, दक्षिणा, सुपारी, सोमवार व्रत कथा की पुस्तक, पशु-श्वेत सवत्स गाय।

मंगल ग्रह के शुभ फलों को प्राप्त करने के लिए स्वर्ण, गुड़, घी, लाल मसूर की दाल, कस्तूरी, केसर, लाल वस्त्र, मूंगा, ताम्बे के बर्तन आदि का दान सूर्यास्त से आधे,पौन घंटे से पूर्व ही करना चाहिए।

मंगलवार के दान 

गेहूॅं, मसूर दाल, गुड़, स्वर्ण, लाल कपड़ा, लाल फुल, लाल फल, तांबा, केसर, कुमकुम, नारियल, दक्षिणा, सुपारी, मंगलवार व्रत कथा की पुस्तक, पशु-लाल बैल।

बुधवार के दान 

बुध ग्रह के फलों को अपने अनुकूल प्राप्त करने के लिए साबुत मूंग, फल, कांसे का पात्र, पन्ना, स्वर्ण आदि का दान दोपहर में करें अवश्य ही लाभ प्राप्त होगा।

मूंग (साबुत), हरा कपड़ा, कांसा, सफेद चंदन, हराफुल, हरा फल, स्वर्ण, चांदी, नारियल, दक्षिणा, सुपारी, बुधवार व्रत कथा की पुस्तक, पशु-बैल।

गुरुवार के दान 

देव गुरु कि कृपा प्राप्त करने के लिए चने की दाल, हल्दी, केसर, गुड़ , पीले फल, पीला वस्त्र, धार्मिक पुस्तकें, पुखराज, आदि का दान संन्ध्या के समय करने से गुरु बृहस्पति कि कृपा प्राप्त होती है।

चने की दाल, हल्दी, केसर, गुड़ , पीले फल, पीला वस्त्र, धार्मिक पुस्तकें, पुखराज, आदि का दान संन्ध्या के समय करने से गुरु बृहस्पति कि कृपा प्राप्त होती है।

शुक्रवार के दान 

शुक्र ग्रह कि कृपा प्राप्त करने के लिए जातक को चावल, जवार, मिश्री, दूध, दही, इत्र, सफेद चंदन, चांदी आदि का दान सुबह सूर्योदय के समय करने से लाभ प्राप्त होताचावल, सफेद कपड़ा, चंदन गांठ, सफेद फुल, सफेद फल, घी, कपूर, चांदी, नारियल, दक्षिणा. सुपारी. शुक्रवार व्रत कथा की पुस्तक. पशु-श्वेत अश्व या श्वेत सवत्स गाय.

शनिवार के दान 

भगवान शनि देव कि कृपा पाने के लिए लोहा, उड़द की दाल,काले चने सरसों का तेल, काले वस्त्र, जूते व नीलम का दान दोपहर के समय करें।उड़द (साबुत), तेल, काली तिल्ली, काला कपड़ा, लोहा, कोयला, अलसी, जूट, काला या नीला फुल, काला फल, काला कंबल, स्वर्ण, नारियल, दक्षिणा, सुपारी, शनिवार व्रतकथा की पुस्तक, पशु-काली भैंस।

राहु के दान 

राहु के दोषों को दूर करने के लिए लोहे का चाकू व छलनी,जौ, सीसा, तिल, कोयला, सरसों, सप्तधान्य, कम्बल, नीला वस्त्र, गोमेद आदि का दान रात्रि समय करना चाहिए। उड़द (साबुत), काली या सफेद तिल्ली, नीला कपड़ा, लोहा, गेहूॅं, नीला फूल, नीला फल, सरसों (साबुत), नारियल, दक्षिणा, सुपारी, पशु-कृष्ण अश्व, वार-शनिवार।

केतु के दान 

केतु कि अशुभता से बचने के लिए लोहा, तिल, तेल, दो रंगे या चितकबरे कम्बल या अन्य वस्त्र, सप्तधान, शस्त्र, बाजरी, लहसुनिया व स्वर्ण का दान निशा काल में करना चाहिए।उड़द (साबुत), काली सा सफेद तिल्ली, तेल, काला कपड़ा, काला फुल, काला फल, काजल, सात प्रकार के धान्य (अनाज), नारियल, दक्षिणा, सुपारी, पश्ुा-कृश्ण अश्व, वार-शनिवार।

किन चीज़ो का ना करे दान 

आपने अक्सर सुना होगा की यदि यह ग्रह खराब है तो इसके लिए यह दान करे, या ऐसा दान करने से इस ग्रह का शुभ फल मिलने लगेगा क्या आपको मालूम है ज्योतिष में कुछ ऐसी भी विशेष परिस्थिति है जिसमे आपको कुछ विशेष प्रदार्थ का दान करने से बचना होता है। आइये चर्चा करते है की किन परिस्थितियों में न करें ऐसा दान।

झाड़ू को कभी भी दान नहीं करना चाहिए। झाड़ू को लक्ष्मी का सूचक माना जाता है, झाड़ू को दान करने से घर में धन नहीं टिकता।

शास्त्रों के अनुसार स्टील से निर्मित चीजों को भी दान नहीं करना के चाहिए। इससे घर की सुख शांति नष्ट होती है।

शनिदेव को तेल अर्पित करना शुभ माना जाता है, लेकिन ख़राब और उपयोग किया गया तेल दान करने से अशुभ फल की प्राप्ति होती है।

किसी भूखे को ताज़ा भोजन दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है वहीं बासी भोजन दान करना अशुभ होता है, ऐसा करने से विवाद और कोर्ट-कचहरी में धन खर्च होता है।

सूर्य 

आपकी कुंडली में जब सूर्य मेष राशि में स्थित हो तो उस व्यक्ति को लाल रंग की वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए।

जिनकी कुण्डली में सूर्य सिंह अथवा वृश्चिक राशि में बैठा है। ऐसे व्यक्ति के लिए लाल किताब कहता है कि इन्हें सूर्य से संबंधित वस्तुएं जैसे गेहूं, गुड़, तांबे की वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए। जो लोग इनका दान करते हैं उनका सूर्य मंदा हो जाता है और सूर्य से प्राप्त होने वाले शुभ फलों में कमी आती है।

इससे नौकरी में अधिकारी से मतभेद होता है। सरकारी कार्यों में बाधा आती है। पिता एवं पैतृक संपत्ति के सुख में कमी आती है। जिनकी जन्मपत्री में सूर्य 7वें अथवा 8वें घर में बैठा है उन्हें सुबह एवं शाम के समय दान नहीं देना चाहिए। इससे धन की हानि होती है, आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

चंद्रमा

यदि आपकी जन्मकुण्डली में चन्द्र वृष राशि में हो तो दूध, जल आदि का दान कदापि नही करना चाहिए।

जिस व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्रमा दूसरे अथवा चौथे भाव में बैठा होता है उसे माता से सुख मिलता है। सुख-सुविधाओं में वृद्धि होती है तथा शारीरिक एवं मानसिक सुख-शांति की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति चन्द्र से संबंधित वस्तु जैसे मोती, दूध, चीनी, चावल का दान करता है।

उनका चन्द्रमा मंदा हो जाता है, चन्द्र से संबंधित शुभ फलों में कमी आती है। जिनकी जन्मपत्री में चन्द्रमा छठे भाव में होता है उन्हें धर्मार्थ हैंडपंप नहीं लगाना चाहिए।

मंगल

यदि जन्मकुण्डली में मंगल मकर राशि में हो तो उस व्यक्ति को भूमि, संपत्ति या स्वर्ण, तांबे की वस्तु अथवा मंगल सम्बन्धी दान नहीं करना चाहिए।

लाल किताब में मंगल शुभ वाले व्यक्ति के लिए मिठाई का दान करना वर्जित बताया गया है। इन्हें मसूर की दान, बेसन के लड्डू एवं लाल वस्त्रों का दान नहीं करना चाहिए

बुध

यदि जन्मकुंडली में बुध की इस्थिति कन्या राशि में तो आपको हरे वस्त्र या हरी वस्तुओं का दान नहीं देना चाहिए।

बुध को बुआ, मौसी, बहन, व्यवसाय एवं बुद्धि का कारक कहा जाता है। बुध मजबूत वाला व्यक्ति बुध से संबंधित वस्तु जैसे मूंग की दाल, कलम, हरा वस्त्र, घड़ा दान करता है तो बुद्धि भ्रमित होती हैं। बुध से संबंधित रिश्तेदारों को कष्ट होता

बृहस्पति

यदि आपकी जन्मकुण्डली में बृहस्पति कर्क राशि में है तो आपको पीले वस्त्र, पीली वस्तुएं और धार्मिक पुस्तक आदि का दान नही देना चाहिए।

लाल किताब के अनुसार जिन व्यक्तियों की कुण्डली में गुरू सातवें घर में बैठा है उस व्यक्ति को नए वस्त्रों का दान नही करना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसा करता है उसे खुद ही वस्त्रों की कमी हो जाती है। गुरू नवम भाव में, सप्तम भाव में, चौथे अथवा प्रथम भाव में शुभ स्थिति में बैठा हो तो गुरू से संबंधित वस्तु जैसे हल्दी, सोना, केसर एवं पीली वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए। इससे आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

शुक्र

जिसकी जन्मकुण्डली में शुक्र मीन राशि में होता है उन्हे एश्वर्य पूर्ण वस्तुएं, मनोरंजन एवं सौंदर्य से सम्बंधित वस्तुएं किसी को दान या भेटस्वरुप नहीं देनी चाहिए।

शुक्र को भौतिक सुख-सुविधा प्रदान करने वाला ग्रह कहा जाता है। जिनकी कुण्डली में शुक्र दूसरे अथवा सातवें घर में हो, वृष अथवा तुला राशि में बैठा उन्हें रेडिमेड वस्त्र का दान नहीं करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को श्रृंगार की वस्तुओं का भी दान नहीं करना चाहिए।

शनि

यदि शनि देव की स्थिति जन्मकुण्डली में अपनी उच्च राशी में हो अर्थात तुला तुला राशि में हो तो, उसे व्यर्थ परिश्रम और भ्रमण नहीं करना चाहिए। और लोहा, सरसों का तेल, कोयला आदि का दान नहीं करना चाहिए।

शनि दोष से मुक्ति के लिए ज्योतिषशास्त्र में तेल, तिल, लोहा काले वस्त्रों का दान करने के लिए कहा जाता है। इसके विपरीत लाल किताब में कहा गया है कि कुण्डली में अगर शनि तुला राशि, मकर या कुंभ में हो तो व्यक्ति को इन वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए।

इससे शनि मंदा हो जाता है, यानी शनि के शुभ फलों में कमी आ जाती है। व्यक्ति को लाभ के बदले नुकसान उठाना पड़ता है।

राहु 

राहु यदि कन्या राशि में हो तो स्वराशि का तथा वृष(ब्राह्मण/वैश्य लग्न में) एवं मिथुन(क्षत्रिय/शूद्र लग्न में) राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है. ऎसी स्थिति में:–

नीले, भूरे रंग के पदार्थों का दान नहीं करना चाहिए.

मोरपंख, नीले वस्त्र, कोयला, जौं अथवा जौं से निर्मित पदार्थ आदि का दान किसी को न करें अन्यथा ऋण का भार चढने लगेगा.

अन्न का कभी भूल से भी अनादर न करें और न ही भोजन करने के पश्चात थाली में झूठन छोडें

केतु

केतु यदि मीन राशि में हो तो स्वगृही तथा वृश्चिक(ब्राह्मण/वैश्य लग्न में) एवं धनु (क्षत्रिय/शूद्र लग्न में) राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है. यदि आपकी जन्मपत्रिका में केतु उपरोक्त स्थिति में है तो :-

घर में कभी पक्षी न पालें अन्यथा धन व्यर्थ के कामों में बर्बाद होता रहेगा.

भूरे, चित्र-विचित्र रंग के वस्त्र, कम्बल, तिल या तिल से निर्मित पदार्थ आदि का दान नहीं करना चाहिए.

रत्न को न पहनें: माणिक अनामिका में, मूँगा तर्जनी-अनामिका में, मोती तर्जनी- अनामिका, पन्ना, कनिष्ठा में, पुखराज-तर्जनी में, हीरा तर्जनी-अनामिका में, नीलम, गोमेद व लसुनिया मध्यमा में धारण करना चाहिए। तर्जनी गुरु की, मध्यमा शनि की, अनामिका सूर्य की तथा कनिष्ठा बुध की उँगलियाँ मानी गई हैं।

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