गौवत्स द्वादशी का यह त्यौहार कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है। यह पर्व पुत्र की मंगलकामना के लिए भी किया जाता है. इसे वही स्त्रियां करती हैं जिनका पुत्र होता है। इसका महत्व बहुत ज्यादा है. कहा जाता है कि केवल गौमाता के दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी ज्यादा लाभ प्राप्त हो जाता है. चलिए जानतें है।
मान्यताओं के अनुसार इस दिन गौ माता और उनके बछड़ों की पूजा और सेवा की जाती है। यही वजह है कि इस दिन ग्वाले गाय का दूध नहीं निकालते और न ही इस दिन दूध पीया जाता है। इस दिन सिर्फ गाय का बछड़ा ही दूध पी सकता है। दीपावली से 2 दिन पहले मनाई जाने वाली यह द्वादशी धार्मिक दृष्टि से बहुत ही खास और महत्वपूर्ण मानी गई है। आइए आपको बताते हैं इस पर्व का महत्व और मान्यताएं।
गोवत्स द्वादशी का महत्व Significance of Govtsa Dwadashi
गोवत्स द्वादशी के दिन गाय की विशेष रूप से पूजा की जाती है। मान्यता है कि गाय में देवताओं का वास होता है। इस दिन कुछ लोग उपवास भी रखते हैं। इस दिन लोग पूरे भक्ति भाव से गौ माता और गोवंश की पूजा करते हैं। संतान की दीर्घायु के लिए माताएं यह व्रत करती हैं। गोवत्स द्वादशी धनतेरस के एक दिन पहले पड़ती है। महाराष्ट्र में इस पर्व को वासु बरस के नाम से जानते हैं और वहीं गुजरात में गोवत्स द्वादशी को वाघ बरस के नाम के जाना जाता है। महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य में इसकी चर्चा की है और बताया है कि राजा दिलीप को गौमाता की सेवा करने के बाद ही संतान की प्राप्ति हुई थी।
गोवत्स द्वादशी व्रत की विधि Govats Dwadashi fasting method
इस दिन गीली मिट्टी से गाय, बछड़ा, बाघ और बाघिन की मूर्तियां बनाकर लकड़ी पटले पर रखी जाती है। अगर आपके यहां गाय और बछड़ा नही है तो आप किसी दूसरे की गाय और बछड़े की पूजा कर सकते हैं। यदि गांव में भी गाय न हो तो मिट्टी के गाय बनाकर उनकी पूजा कर सकते हैं।
उन पर दही, भीगा हुआ बाजरा, आटा, घी आदि चढ़ाएं। इनका रोली से तिलक करें और चावल-दूध चढ़ाएं। इसके बाद मोठ, बाजरा पर रुपया रखकर बयान अपनी सास को दे दें, इस दिन बाजरे की ठंडी रोटी खाई जाती है।
इस दिन गाय का दूध या इससे बनी दही न खाएं, साथ ही गेहूं व चावल भी न खाएं, अपने कुंवारे लड़के की कमीज पर सांतियां बनाकर और उसे पहनाकर कुएं को पूजा जाता है, इससे आपके बच्चे की जीवन की रक्षा होती है, साथ ही वो बुरी नजर से भी बचा रहता है, जो महिलाएं व्रत करती हैं वो सुबह स्नान आदि कर निवृत्त हो जाएं।
इसके बाद गाय को उसके बछडे़ समेत स्नान करएं और नए वस्त्र ओढ़ाएं. दोनों को फूलों की माला पहनाएं, फिर गाय-बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं, फिर तांबे का एक पात्र लें, इसमें अक्षत, तिल, जल, सुगंध तथा फूलों को रख लें। इसके बाद नीचे दिए मंत्र का उच्चारण करें, फिर गौमाता के पैरों में लगी मिट्टी को अपने माथे पर तिलक की तरह लगाएं, बछ बारस की कथा जरूर सुनें, दिनभर व्रत करें और गौमाता की आरती कर भोजन ग्रहण करें,
पूजन मंत्र worship mantra
ॐ सर्वदेवमये देवि लोकानां शुभनन्दिनि।
मातर्ममाभिषितं सफलं कुरु नन्दिनि।।
ॐ माता रुद्राणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानाममृतस्य नाभि:
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट नमो नम: स्वाहा।
कैसे हुआ गोवत्स द्वादशी व्रत का आरंभ ? How did Govats Dwadashi fast start ?
गोवत्स द्वादशी के विषय में एक कथा अनुसार राजा उत्तानपाद और उनकी पत्नी सुनीति ने पृथ्वी पर इस व्रत को आरंभ किया. इस व्रत के प्रभाव से राजा-रानी को बालक ध्रुव की प्राप्ति हुई. दस नक्षत्रों से युक्त ध्रुव आज भी आकाश में दिखाई देते है. शास्त्रानुसार ध्रुव तारे को देखने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है. संतान सुख की कामना रखने वालों के लिए यह व्रत शुभ फल दायक होता है. गोवत्स द्वादशी के दिन किए जाने वाले कर्मों में सात्त्विक गुणों का होना जरूरी है.
गोवत्स द्वादशी की कथा The story of Govats Dwadashi
प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नगर में देव दानी राजा राज्य करता था. उसके सवत्स एक गाय और भैंस थी. राजा की दो रानियाँ थी. एक का नाम गीता तो दूसरी का नाम सीता था. सीता भैंस से सहेली सा प्यार करती थी तो गीता गाय व बछड़े से सहेली सा प्रेम करती थी. एक दिन भैंस सीता से कहती है कि गीता रानी गाय व बछड़ा होने से मुझसे ईर्ष्या करती है. सीता ने सब सुनकर कहा कि कोई बात नहीं मैं सब ठीक कर दूंगी. सीता रानी ने उसी दिन गाय के बछड़े को काटकर गेहूँ के ढ़ेर में गाड़ दिया. किसी को भी इस बात का पता नहीं चल पाया.
राजा जब भोजन करने बैठा तब मांस की वर्षा होने लगी. महल में चारों ओर मांस तथा खून दिखाई देने लगा. थाली में रखा सारा भोजन मलमूत्र में बदल गया. यह सब देख राजा को बहुत चिन्ता हुई. उसी समय आकाशवाणी हुई कि हे राजन ! तुम्हारी रानी सीता ने गाय के बछड़े को मारकर गेहूँ के ढेर में छिपा दिया है. इसी कारण यह सब अनर्थ हो रहा है. कल गोवत्स द्वादशी है इसलिए भैंस को बाहर कर गाय व बछड़े की पूजा करो. कटे हुए फल और दूध का सेवन नहीं करना इससे तुम्हारे पाप नष्ट हो जाएंगे और बछड़ा भी जीवित हो जाएगा।
संध्या समय में गाय के घर आने पर राजा ने उसकी पूजा की और जैसे ही बछड़े को याद किया वह गेहूँ के ढेर से बाहर निकलकर गाय के पास आकर खड़ा हो गया. यह सब देख राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने राज्य में सभी को गोवत्स द्वादशी का व्रत करने का आदेश दिया।
Must Read Puja Tips: जानें पूजा में यंत्रों का महत्त्व क्यों ?
Leave A Comment