क्या मासिक धर्म के दौरान क्या पूजा पाठ की जा सकती हैं ?

इस प्रशन का एक ऐसा जवाब है जो आपको सोचने पर मजबूर कर देगा जिस प्रकार आप कभी भी अपने प्रेम, क्रोध और घृणा को प्रकट कर सकते हैं, जिस प्रकार आप कभी भी अपने मस्तिष्क में शुभ-अशुभ विचार ला सकते हैं, जिस प्रकार आप कभी भी अपनी जुबान से कड़वे या मीठे बोल बोल सकते हैं, उसी प्रकार आप कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थिति में प्रभु का ध्यान, उनका चिंतन, उनका स्मरण, उनका सिमरन या मानसिक जप कर सकते हैं।

हांलकी परंपराएं और कर्मकांड, प्रतिमा के स्पर्श, मंदिर जाने या धार्मिक आयोजनों में शामिल होने की सलाह नहीं देती हैं। यदि हम काम, क्रोध, लोभ, मोह, घृणा, द्वेष इत्यादि को मासिक धर्म के दौरान अंगीकार कर सकते हैं, तो भला शुभ चिंतन में क्या आपत्ति हैं यदि कोई महिला उपवास करती हैं, तो इस दौरान उपवास कर सकती हैं, लेकिन पूजा नही करे, जबकि मन मे जप कर सकती हैं । कई धर्म इस वक्त भगवान का नाम लेना भी गलत समझते हैं ।

एक बात जो मेरे दिमाग मे बार बार आती हैं, उसके अनुसार जब तक महिला मासिक धर्म मे नही होती हैं, तब तक वो माँ बनने लायक नही हो सकती इस अनुसार जब मासिक धर्म नही होगा तो प्रकृति का नियम भंग होगा । मतलब मासिक धर्म प्रकृति की देंन हैं फिर यदि मासिक धर्म नही होगा तो क्या हम जन्म ले पाएंगे ?

मै ये मानता हूं कि महिलाएं जीवन भर परिवार के कामकाज, बच्चो का ख्याल, पति, सास ससुर आदि की देखभाल मे थक जाती हैं, स्वाभाविक रूप से उन्हें माह मे कुछ दिन आराम की आवश्यकता जरूरी होगी शायद इसे सोचकर ही परम्परा डाली गई होगी

आजकल की पीढ़ी आगे बढ़ गयी हैं, परिवार सीमित हो गए हैं, भागा दौड़ की जिंदगी मे इन नियमो का पालन कर पाना भी दूभर हो गया हैं जंहा एक और महिला स्पेस मे जा चुकी हो, जेट विमान की और बढ़ चुकी हो, दूसरी तरफ मासिक धर्म के नियम पालना आज के युग मे बेमानी लगता हैं।

अब ये तो वो बात हुई की किसी महिला का आज इंटरव्यू हो, और वो मासिक धर्म का बहाना लेकर देने नही जाए ?

धर्म के कुछ नियम जो हमने पुरानी रूढ़िवादिता के कारण अपना रखे हैं, आज अभी इसी वक्त से हमे बदलना होगा ।

मै जानता हूं कि इस विषय पर सबकी राय अलग अलग होगी पर आप खुद सोचिये की क्या मासिक धर्म औरतो की सजा हैं, या आराम ?

आप सभी विचारों का स्वागत हैं। पर हिन्दू दर्शन हिन्दू धर्म मे

मासिक धर्म से युक्त स्त्री/ रजस्वला युक्त स्त्री, को पूजा नही करनी चाहिये अगर करती है तो विरह उनके साथ हो जाएगा

स्त्री के मासिक धर्म प्रारम्भ होने के दिन से नियमानुसार अधिकतम सात दिन एवं नही तो कम से कम पाच दिन जब तक वो स्त्री अपने केश ना धुल ले उस दिन तक पूजा करना निषेध है, इस नियम से व्रत उपवास मे पूजा नही करना चाहिये अगर इस दौरान कोई एसा ब्रत पड रहा हो जिसको ना करने से ब्रत खंडित हो सकता है तब एसी अवस्था मे केवल खुद के हृदय मे भक्ति रख कर ब्रत पूरा करना या रखना चाहिए

यह नियम सभी स्त्री को मानना चाहिए मानना और न मानना आप का काम है। क्योंकि रजस्वला अवस्था मे यदि कोई पूजा की जाती है तो उसका लाभ या हानि उस स्त्री के पति को ही उठाना पडता है अत: एसी अवस्था मे पूजा करना मतलब जान बूझ कर अधर्म के आचरण मे आता है अत: पति की उम्र बढाने के बजाय, पति की उम्र घटाने का प्रयत्न नही करना चाहिये। नही तो इससे विधवा योग उत्पन्न हो जाते है।

हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के दौरान कई तरह के नियमों का पालन करने का विधान है. ऐसे में महिलाओं को भी बहुत से नियमों का ध्यान रखना जरूरी होता है. पीरियड्स के दौरान महिलाओं को पूजा-पाठ करने, मंदिर जाने आदि की मनाही होती है. ऐसे में अकसर महिलाओं के मन में कई तरह के सवाल आते हैं कि पीरियड्स के दौरान क्या व्रत किया जा सकता है या नहीं. इस दौरान पूजा-पाठ करना फल देता है या नहीं. भगवान को छूने की मनाही क्यों होती है आदि. 

इस दौरान सबसे बड़ा सवाल ये होता है कि अगर किसी ने पूरी श्रद्धा से व्रत रखा है और पीरियड्स हो जाएं तो इस स्थिति में वे क्या करें. क्या इस दौरान व्रत मान्य होगा या नहीं ? इस तरह के सवाल अकसर सभी के दिमाग में रहते हैं. तो चलिए आज हम आपकी ये उलझन दूर कर देते हैं.

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पीरियड्स के दौरान क्यों होती है पूजा की मनाही 

प्राचीन काल से चली आ रही मान्यताओं के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक तथ्य अवश्य होता है. पीरियड्स के दौरान पूजा-पाठ न करने का कारण ये था कि उस समय पूजा पद्धति मंत्रोच्चार के बिना पूरी नहीं मानी जाती थी. वहीं, पूजा के दौरान बड़े-बड़े अनुष्ठान किए जाते थे, जिसमें बहुत समय और ऊर्जा लगती थी.

मंत्रोच्चार पूरी शुद्धता के साथ किए जाते थे. पीरियड्स के दौरान हार्मोनल बदलावों के चलते काफी दर्द और थकान रहती थी. ऐसे में महिलाओं के लिए ज्यादा देर तक बैठकर मंत्रोच्चारण या अनुष्ठान करना संभव नहीं होता था. इसलिए उन्हें पूजा में बैठने की मनाही होती थी.

इसके अलावा, पूजा हमेशा शुद्धता के साथ ही की जाती है. लेकिन पहले जमाने में पीरियड्स के दौरान स्वच्छता को बनाए रखने के ज्यादा साधन उपलब्ध नहीं थे, इसलिए उन्हें पूजा करने की मनाही होती थी. इस दौरान उन्हें रहने के लिए एक कमरा दिया जाता था. लेकिन महिलाओं को मानसिक पूजा और जाप की मनाही नहीं थी. समय के साथ ये चीजें आज भी लोगों के दिमाग में हैं, लेकिन इसके पीछे के कारण को किसी ने भी जानने की कोशिश नहीं की

.व्रत के दौरान पीरियड्स आने पर क्या करें 

व्रत के बीच में ही अगर किसी महिला के पीरियड्स आ जाएं तो ऐसे में महिला को अपना व्रत पूरा करना चाहिए. पीरियड्स के दौरान भी मन में भगवान के प्रति आस्था कम न हो. भगवान के लिए मन की शुद्धता सबसे ज्यादा जरूरी है, शारीरिक शुद्धता बाद में आती है. व्रत के दौरान अगर किसी विशेष पूजा का संकल्प लिया गया है तो पीरियड्स के दौरान आप दूर बैठकर उस धार्मिक काम को किसी अन्य व्यक्ति के जरिए करवा सकती हैं.

पीरियड्स के दौरान भी व्रत के सभी नियमों का पालन करना चाहिए. ऐसे में प्रभु के मंत्रों का ज्यादा से ज्यादा मनन करें. किसी विशेष पाठ का जाप करना चाहती हैं, तो फोन के जरिए पाठ पढ़ सकती हैं. पीरियड्स के दौरान बस स्वच्छता का ख्याल रखना बेहद जरूरी है. स्नान के बाद साफ वस्त्र पहनकर ही मंत्र और पाठ करें.

मासिक धर्म के नियम 

प्रकृति ने स्त्री को ऐसा बनाया है कि उसे हर महीने मासिक धर्म के चक्र से गुजरना होता है। इसको लेकर धार्मिक और सामाजिक जीवन में कई तरह की भ्रांतियां हैं। जबकि इसी चक्र के कारण स्त्री पुरुषों से अधिक शुद्ध, शक्तिशाली और प्रभावशाली बनती हैं। इसके बारे में देवी पार्वती ने शिव पुराण में कहा है कि अगर मासिक धर्म के कुछ नियमों का पालन किया जाए तो स्त्री अपने सुहाग की आयु बढ़ा सकती है साथ ही अपने वैवाहिक जीवन को अधिक आनंदित, सुखी और संपन्न बना सकती हैं।

1. मासिक धर्म समाप्त होने पर क्या करें

मासिक धर्म समाप्त होने के बाद स्त्री को शुद्धता पूर्वक स्नान करना चाहिए और संपूर्ण ऋंगार करके देवी लक्ष्मी, पार्वती की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद पति को देखना चाहिए। अगर पति मौजूद न हों तो सूर्य देव के दर्शन करने चाहिए। इससे पति की उम्र लंबी होती है और वैवाहिक जीवन में आनंद बढ़ता है।

2. मासिक धर्म के दौरान रखें ध्यान

पुराणों में कहा गया है कि मासिक धर्म के समय स्त्री को घरेलू कार्यों को नहीं करना चाहिए। इस समय स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए आराम करना चाहिए। अगर ऐसा कर पाना संभव न हो तो स्नान करके ही भोजन तैयार करना चाहिए। यह परिवार के सदस्यों और स्वयं उनकी सेहत के लिए भी लाभकारी होता है।

3. देव-पितृ कार्यों से मुक्त

मासिक धर्म के समय स्त्री को भगवान की मूर्ति का स्पर्श नहीं करना चाहिए। इस समय किसी को दान दक्षिणा भी नहीं देना चाहिए ऐसा शिव पुराण में बताया गया है। दरअसल इस समय शरीर की शुद्धि की प्रकिया चल रही होती है। जिससे शास्त्रों में स्त्री को इस समय सभी सांसारिक कार्यों और देव-पितृ कार्यों से मुक्त किया गया है। इस समय मानसिक जप करना मन और शरीर दोनों के लिए लाभप्रद माना गया है।

4. सुहाग की उम्र लंबी

मासिक धर्म के समय को छोड़कर हर दिन सुहागन स्त्री को काजल लगाना चाहिए और केशों को संवारना चाहिए। सुहाग के प्रतीक चिह्न जो भी ऋंगार हैं उन्हें भी धारण करना चाहिए। मां पार्वती को सिंदूर लगाकर फिर अपनी मांग भरना चाहिए। इससे सुहाग की उम्र लंबी होती है और परिवार में खुशहाली एवं प्रेम बढ़ता है।

5. ऋंगार विहीन ना रहें

पति के घर पर रहते हुए पत्नी को कभी भी ऋंगार विहीन नहीं रहना चाहिए। बिखरे बाल, मलीन वस्त्र, उदास चेहरा और दुख का भाव पारिवारिक जीवन के आनंद को कम करता है साथ ही यह सौभाग्य के लिए अच्छा शगुन नहीं माना जाता है।

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डि‍सक्‍लेमर: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है. RadheRadheje वेबसाइट या पेज अपनी तरफ से इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है.