सूर्य के द्वारा होने वाले रोगों की सम्पूर्ण व्याख्या और विशेष उपाय Complete explanation and special remedies for diseases caused by the sun in Hindi 

जन्म कुंडली मे वैसे तो हर ग्रह महत्त्वपूर्ण होता है। लेकिन जातक को शारीरिक रूप से स्वस्थ्य रखने के लिये लग्नेश के साथ पुरुष के लिये सूर्य का व स्त्री के लिये चंद्र का शुभ व बलि होना आवश्यक है। किसी पुरुष जातक की पत्रिका में उदित सूर्य जैसे लग्न, एकादश, दशम, नवम व अष्टम में शुभ है इसमे भी नवम, दशम व एकादश में अतिउत्तम ऐसे जातक प्रायः स्वस्थ्य ही रहते है परन्तु किसी पाप ग्रह की दृष्टि के कारण थोड़ा कष्ट हो सकता है। यह स्थिति सूर्य के उदय काल की होती है। सूर्यास्त से रात्रि काल तक कि स्थिति जैसे सप्तम, षष्ठ, पंचम, चतुर्थ, तृतीय व दृतिय, के सूर्य होने पर लग्नेश अथवा किसी पाप ग्रह की दृष्टि होने पर दोष को समाप्त करती है। जैसा हमने गत लेख में बताया सूर्य एक पुरुष व अग्नि ग्रह है।

इसलिये स्वास्थ्य की दृष्टि से यह अग्नि राशि (मेष,सिंह व धनु) में बहुत अच्छा प्रभाव देता हैं। क्योकि यह अग्नि राशि के साथ सूर्य की मित्र भी है। ऐसे जातक सुंदर व स्वस्थ शरीर के स्वामी होते है। रोगोंसे बचे रहते है। इनमे विशेष रोगप्रतिरोधक क्षमता होती है। यदि कभी किसी मौसम के रोग की चपेट में आ भी जाएं तो शीघ्र ही स्वस्थ हो जाते है। इनमे एक मुख्य समस्य यह होती है कि इन्हें कभी कोई छोटा अथवा सामान्य रोग नही होता है अपितु बड़े रोग ही होते है। वैसे तो सूर्य मिथुन राशि मे शुभ ही होता है क्योकि मिथुन वायु तत्त्व राशि है तथा अग्नि तत्त्व की मित्र राशि भी है। परन्तु यहाँ का सूर्य पत्रिका में शनि व चंद्र के अशुभ अथवा बलहीन होने पर मानसिक तनाव व स्नायुतंत्र को प्रभावित करता है।

इसलिये ऐसे जातको को आराम करना जरूरी है। धार्मिक एवं शुभसंगत के साथ किसी ना किसी मनोरंजक व धार्मिक साहित्य का अध्ययन करते रहना चाहिए। सूर्य अपने उदय काल मे अच्छा प्रभाव देता है तथा रात्रि का सूर्य मध्यम प्रभाव देता है।

सूर्य यदि अग्नि राशि (मेष, सिंह, धनु) में हो तो सर्वोत्तम, मिथुन में अकेला हो तो उत्तम, वायु तत्त्व राशि (मिथुन, तुला, कुम्भ) व पृथ्वी राशि (वृष, कन्या, मकर) में मध्यम व जल तत्त्व राशि (कर्क, वृश्चिक मीन) में निर्बल इनमे भी कर्क व मीन राशि मे विशेष निर्बल होता है। इसमे सूर्य त्रिक (6, 8, 12) में निर्बल होता है। इसलिये पत्रिका में सूर्य जिस भाव का स्वामी है व जिस भाव का कारक है। उन से संबंधित सभी बातों का अशुभ प्रभाव होगा।सूर्य का पित्त, अस्थि, नेत्र, हृदय, प्राणवायु व मणिपुर चक्र तथा रीढ़ की हड्डी पर आधिपत्य होता है।इसलिये पत्रिका में सूर्य यदि अशुभ, पीड़ित या निर्बल स्थिति में हो तो इन बातों का अशुभ परिणाम आएगा।

इसके साथ ही ज्वर, हृदय रोग, पित्त विकार, अपस्मार, शरीर मे अत्यधिक जलन, नेत्र रोग, चर्मरोग, हड्डियों का बार बार टूटना, कोढ़, अग्नि व विष भय, पशुहानि का भय, चोरी होना , देवताओं का प्रकोप, भूत प्रेत बाधा, आधी के द्वारा भी जातक को कष्ट हो सकता है। सूर्य की दशा में अथवा सूर्य के अशुभ गोचर में अथवा सूर्य जब स्वयं राशि मे होता है तो उपरोक्त फल मिलते है। मतांतर से इनमे विद्वानों के अलग अलग मत है।

प्रत्येक राशिस्थ सूर्य कृत रोग diseases caused by the sun in each zodiac sign in Hindi 

मेष राशि मे सूर्य यहाँ उच्च का होता है। सूर्य व मेष राशि दोनो ही अग्नि तत्त्व प्रधान है। इसलिये इस स्थिति में जातक के अंदर रोगों से लड़ने की विशेष शक्ति होती है। जातक अच्छे डील डौल वाला होता है। परन्तु किसी भी कारण से इस स्थिति में सूर्य पीड़ा हो अथवा यह योग 2, 6, 8,12 वे भाव मे स्थिति हो तो जातक को नेत्र रोग, नेत्र ज्योति कम होती है। चश्मे का प्रयोग आवश्यक होता है। यह योग कम आयु से ही प्रभावी हो जाता है। इस योग में सूर्य केतु की युति हो तो मोतियाबिंद होता है। इस योग में शुभ चंद्र अथवा लग्नेश की युति हो तो यह फल अधिक आयु में घटित होता है। परन्तु होता अवश्य है।

वृष राशि मे इस राशि का सूर्य भी मजबूत शरीर देता है परन्तु पीड़ित अथवा पापी होने की स्थिति में जातक को मिर्गी, मूर्छा, हिस्टीरिया, व हृदय रोग की संभावना बढ़ जाती है।

मिथुन राशि मे जन्म कुंडली मे सूर्य के मिथुन राशि मे स्थिति होने पर तथा त्रिक भाव (6, 8, 12) में होने पर अथवा पीड़ित होकर गोचर में इन भावो में आये तो रक्तविकार, फेंफड़ो के रोग, प्लूरसी, अथवा स्नायु विकार होता है।

कर्क राशि में सूर्य के लिये यह बहुत ही कमजोर राशि मानी गई है। ऐसे जातको का शरीर बहुत ही दुबला पतला होता है। पाचन क्रिया ठीक नही होती। यहाँ चंद्र भी स्थिति हो तो टी बी होती है। शनि की दृष्टि हो तो जोड़ो में दर्द, स्नायु रोग व वात विकार जैसे रोग होते है। रोग जल्दी ठीक नही होता। काफी उपचार के बाद भी कम आराम मिलता है।

सिंह राशि मे👉 यह सूर्य की स्वयं राशि है ऐसे जातक मोटे शरीर के होते है। इसलिये सूर्य पर शनि की दृष्टि हो अथवा युति होने व चतुर्थ भाव व उसके स्वामी भी पीड़ित हो तो हृदय रोग जल्दी होता है। इसलिये ऐसे जातको को श्रमसाध्य कार्य अथवा पैदल चलना व घूमना अवश्य चाहिये। वैसे ऐसा लोगों को रोग कम सताते है यदि हो भी जाये तो शीघ्र ठीक हो जाते है। ऐसे लोगो का आयुर्वेदिक दवाई बहुत लाभ देती है। इन्हें आयुर्वेद का प्रयोग ही करना चाहिये।

कन्या राशि मे इस राशि का सूर्य जातक को चिड़चिड़े स्वभाव का बनाता है। पाचनतंत्र भी बिगडा रहता है। नेत्र रोग की संभावना भी अधिक बनती है।

तुला राशि मे यह सूर्य की नीच राशि है। इस राशि मे सूर्य के और अधिक पीड़ित अथवा पापी होने से मूत्र संस्थान के रोग जैसे मूत्र में जलन, किडनी खराब, मधुमेह व कमर में दर्द रहता है।

वृश्चिक राशि में इस राशि मे सूर्य होने पर जातक में रोग से लड़ने की शक्ति अधिक होती है। परन्तु पापी व पीड़ित होने पर हृदय रोग, पित्त रोग, गले मे समस्या व मूत्र रोग होता है।

धनु राशि मे इस राशि का सूर्य पापी होने पर स्नायु विकार, फेंफड़ो के रोग व दुर्घटना में बड़ी व भयानक चोट का योग बनाता है। इसमे भी यदि यह अष्टम भाव मे हो तो विकराल रूप की संभावना होती है।

मकर राशि मे इस राशि का स्वामी शनि सूर्य का शत्रु है इसलिये यहाँ सूर्य के होने पर शरीर बहुत ही कमजोर होता है। रोगों से लड़ने की क्षमता भी कम होती है। इसलिये इस स्थिति में शनि के कारक रोग जैसे पैरों व जोड़ो में दर्द, कोष्ठबद्धता, मानसिक रोग व मन उदास रहना जैसी समस्या होती है।

कुम्भ राशि मे यह भी शनि की ही राशि है। इस राशि के सूर्य हृदय रोग, नेत्र विकार, मानसिक रोग अथवा कष्ट तथा रक्त संचार में बाधा जैसे देते है।

मीन राशि मे इस राशि का सूर्य शरीर को दुर्बल बनाता है। इसलिये ऐसे लोगों को छूत के रोग, रक्त विकार, पाचन संस्थान की समस्या का अधिक सामना करना पड़ता है।

सूर्य के कुछ विशेष रोग सूर्य लग्नेश के साथ त्रिक भाव मे होतो ताप रोग होता है। सूर्य छठे भाव के स्वामी के साथ लग्न अथवा आठवें भाव मे हो तो शरीर पर चोट अथवा जन्म से ही कोई निशान होता है। कर्क राशि मे सूर्य के साथ चंद्र हो अथवा दोनो एक दूसरे की राशि मे बैठे हो तो टी बी रोग के कारण शरीर दुबला पतला होता है। सूर्य यदि चतुर्थ भाव ने गुरु व शनि के साथ हो तो हृदय रोग की संभावना रहती है। आठवें भाव मे शनि छठे में मंगल, दूसरे में सूर्य व बारहवे में चंद्र हो अथवा यह चारो ग्रह एक साथ इनमे से किसी भी भाव मे हो तो वीर्य के रोग होते है।

दूसरे भाव मे सूर्य यदि छठे भाव के स्वामी के साथ हो अथवा कर्क अथवा सिंह राशि मे सूर्य के साथ राहु होने पर पशु से चोट अथवा हानि का भय होता है। लग्न में पापी सूर्य त्वचा व रतौंधी रोग देता है। मंगल के साथ होने पर मुख रोग होता है। सूर्य यदि लग्न सप्तम, अष्टम में हो तथा मंगल देखता हो तो अग्नि अथवा विस्फोट से खतरा होता है। इसमे यदि केतु भी देखता हो तो मृत्यु भी हो सकती है। सप्तम में सूर्य लग्न में चंद्र, दूसरे में मंगल व द्वादश में शनि होने पर अथवा अष्टम में सूर्य, लग्न में मंगल व चतुर्थ में शनि होने पर क्षय रोग अवश्य होता है।

सूर्य ग्रह पीड़ा से मुक्ति के उपाय Remedies to get rid of Sun planet pain in Hindi 

आज हम जन्म पत्रिका अथवा गोचर के सूर्य के अशुभ प्रभाव को समाप्त कर उन को शुभ प्रभाव में बदलने के लिए कुछ विशेष उपाय लिख रहे हैं। इनमें से कोई भी एक अथवा एक से अधिक उपाय आप निश्चिंत हो कर सकते हैं। उपाय शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से आरंभ करें।

1. प्रत्येक रविवार को गाय को गुड़ व गेहूं खिलाने से आर्थिक लाभ के साथ मान-सम्मान बढ़ता है।

2. रविवार को किसी भी मंदिर में तांबे का दीप अर्पित करने से कर्म क्षेत्र में बाधा नहीं आती जिसमें यह ध्यान रखें कि तांबे का दीपक मंदिर में ही छोड़ आए।

3. सरकारी नौकरी में यदि स्थानांतरण का भय हो तो सूर्योदय के समय तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें लाल मिर्च के 21 दाने डालकर नित्य सूर्य को अर्घ्य देने एवं प्रार्थना करने से स्थानांतरण नहीं होता।

4. प्रतिदिन तांबे के लोटे में जल के साथ कच्चा दूध लाल पुष्प लाल चंदन मिलाकर अर्घ्य देने से सूर्य कृत कष्टों में कमी आती है एवं गुप्त शत्रु निष्क्रिय होते हैं।

5. पिता व पुत्र में यदि मानसिक विरोध हो तो पिता या पुत्र रविवार को सवा किलो गुड़ अपने सर से 11 बार उतार कर बहते जल में प्रवाहित करें इससे आपसी संबंध अच्छे होते हैं ऐसा लगातार 3 रविवार करें इसके अतिरिक्त यदि कोई सूर्य कृत रोग मुकदमेबाजी शत्रु समस्या अथवा कर्म क्षेत्र में विघ्न बाधा हो तो 2 किलो गुड़ प्रवाहित करना चाहिए।

6. यदि शत्रु कष्ट अधिक हो तो रविवार को लाल बैल को गुण एवं गेहूं खिलाना चाहिए।

7. सूर्य की प्रतिनिधि वस्तुओं का दान भूलकर भी नहीं लेना चाहिए।

8. घर में विष्णु पूजा अथवा हरिवंश पुराण की कथा करवानी चाहिए प्रतिदिन स्वयं भी इसका श्रवण मनन करना चाहिए।

9. सूर्य कृत कष्टों से मुक्ति के लिए सूर्य कवच स्तोत्र अथवा 108 नामों का उच्चारण करना चाहिए।

10. रविवार से आरंभ कर 40 दिन तक तांबे का सिक्का अथवा सिक्का रूपी तांबा जल में प्रवाहित करना चाहिए।

11. प्रथम भाव में सूर्य बस सप्तम भाव में शनि हो अथवा दोनों की युति हो तो बचपन में ही प्रताप की मृत्यु होने की संभावना अधिक होती है अधिक काम वेदना जीवन साथी का बीमार रहना अष्टम भाव में सूर्य से भी जीवनसाथी की मृत्यु होती है पंचम भाव में मंगल की राशि हो अथवा मंगल स्वयं हो वह साथ में सूर्य हो तो संतान कष्ट अथवा मृत्यु का भय रहता है ऐसे जातक को अपने पैतृक मकान में हैंड पंप लगवाना चाहिए रविवार के दिन मीठे शीतल जल की प्याऊ लगानी चाहिए।

12. सप्तम भाव में सूर्य व लग्न में शनि होने पर पुत्र नहीं होता होता भी है तो कुछ ना कुछ परेशानी व क्लेश अधिक रहता है रविवार को 4×4 इंच के सात तांबे के टुकड़े लेकर जातक भोजन के समय आचमन कर परोसी थाली में से थोड़ी-थोड़ी सभी सामग्री लेकर सभी सात टुकड़ो पर रखे इसके बाद निकाले हुए भोजन को अग्नि को समर्पित कर तांबे के टुकड़े जमीन में गाड़ दें काली गाय को गेहूं की रोटी पर थोड़ा गेहूं का गुड रखकर खिलाएं।

13. धन भाव में सूर्य समस्या दे रहा हो तो भी बहते जल में गुड़ बहाएं।

14. पंचम भाव में सूर्य यदि कष्ट दे रहा हो तो प्रतिदिन सूर्योदय व सूर्यास्त के समय सूर्य को प्रणाम करें तथा प्रातः एक तांबे के लोटे में जल में गुड शहद व शक्कर मिलाकर दिनभर थोड़ा थोड़ा पिये ऐसा लगातार 43 दिन तक करें।

15. अष्टम भाव के सूर्य के कारण यदि रोग कष्ट हो तो बंदर को गुड़ चने व चीटियों को शक्कर डालें।

16. पिता को यदि आपके अशुभ सूर्य से हानि हो रही हो अथवा कोई रोग हो तो आप किसी लाल बैल अथवा सांड वाले से संपर्क कर रविवार को बैल के गले में लाल धागा बंधवादे अगले रविवार को उस धागे को खुलवाकर दूसरा था का बंधवा दें तथा बैल का उतारा धागा पिता को पहना दे अगले रविवार को फिर यही करें तथा पिता का उतारा धागा विसर्जित कर दे ऐसा सात रविवार करें। अवश्य लाभ होगा।

17. नेत्र रोग अथवा चश्मा उतारने के लिए नित्य सूर्य को अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय सूर्य मंत्र का जाप करते रहें और अर्घ्य के समय यह ध्यान रखें कि जल धरती पर ना गिरे इसके लिए आप थाली अथवा गमले का उपयोग कर सकते हैं अर्घ्य देने के लिए दोनों हाथ इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि सूर्य की किरणें जल में से छनकर आप तक आए मन में यह सोचे कि सूर्य की किरणें आपके भ्रकुटी (दोनों नेत्रों के बीच का स्थान) से आपके अंदर प्रवेश कर रही है। रात में सोते समय सफेद सुरमा प्रयोग करें अगर कम नंबर का चश्मा है तो 6 माह और यदि अधिक नंबर का चश्मा है तो 1 वर्ष के अंदर चश्मा उतर जाएगा अनेक लोगों द्वारा अनुभूत है जिन्हें लाभ मिला है।

18. सूर्य के अधिक कष्ट देने की स्थिति में रविवार से अगले रविवार तक 800+800 ग्राम गुड़ व गेहूं मंदिर में दान करें।

19. किसी भी कार्य के लिए घर से निकलते समय सदैव गुड़ खाकर व पानी पीकर ही निकले।

20. आदित्य स्तोत्र, आदित्य हृदय स्तोत्र, सूर्य स्तोत्र, सूर्य स्तवन, सूर्याष्टक, सूर्य कवच, सूर्य मंत्र जाप, 108 नाम का पाठ नित्य करें।

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