पूजा के लिए कैसा हों आसन, माला एवं दीप इस क्रम में हम आज आसन के बारे में और उसके महत्त्व के बारे में जानते हैं भगवान की पूजा किसी भी तरह से की जा सकती है। लेकिन सार्थक पूजा के लिए शास्त्र सम्मत विधान की जानकारी होनी आवश्यक है। पूजा के लिए माला, आसन, दीप आदि का आकार-प्रकार कैसा हो,यह जानना अत्यंत आवश्यक है हमारे महर्षियों के अनुसार जिस स्थान पर प्रभु को बैठाया जाता है, उसे दर्भासन कहते हैं और जिस पर स्वयं साधक बैठता है, उसे आसन कहते हैं। योगियों की भाषा में यह शरीर भी आसन है और प्रभु के भजन में इसे समर्पित करना सबसे बड़ी पूजा है। जैसा देव वैसा भेष वाली बात भक्त को अपने इष्ट के समीप पहुचा देती है 

कभी जमीन पर बैठकर पूजा नहीं करनी चाहिए, ऐसा करने से पूजा का पुण्य भूमि को चला जाता है। नंगे पैर पूजा करना भी उचित नहीं है। हो सके तो पूजा का आसन व वस्त्र अलग रखने चाहिए जो शुद्ध रहे। लकड़ी की चैकी, घास फूस से बनी चटाई, पत्तों से बने आसन पर बैठकर पूजन भक्त को मानसिक अस्थिरता, बुद्धि विक्षेप, चित्त विभ्रम, उच्चाटन, रोग शोक आदि उत्पन्न करते हैं। अपना आसन, माला आदि किसी को नहीं देने चाहिए, इससे पुण्य क्षय हो जाता है। निम्न आसनों का विशेष महत्व है।

कंबल के आसन पर बैठकर पूजा करना सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। लाल रंग का कंबल मां भगवती, लक्ष्मी, हनुमान जी आदि की पूजा के लिए तो सर्वोत्तम माना जाता है। आसन हमेशा चैकोर होना चाहिए, कंबल के आसन के अभाव में कपड़े का या रेशमी आसन चल सकता है।

कुश का आसन

योगियों के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ है। यह कुश नामक घास से बनाया जाता है, जो भगवान के शरीर से उत्पन्न हुई है। इस पर बैठकर पूजा करने से सर्व सिद्धि मिलती है। विशेषतः पिंड श्राद्ध इत्यादि के कार्यों में कुश का आसन सर्वश्रेष्ठ माना गया है, स्त्रियों को कुश का आसन प्रयोग में नहीं लाना चाहिए, इससे अनिष्ट हो सकता है। किसी भी मंत्र को सिद्ध करने में कुश का आसन सबसे अधिक प्रभावी है।

मृग चर्म आसन ब्रह्मचर्य, ज्ञान, वैराग्य, सिद्धि, शांति एवं मोक्ष प्रदान करने वाला सर्वश्रेष्ठ आसन है। इस पर बैठकर पूजा करने से सारी इंद्रियां संयमित रहती हैं। कीड़े मकोड़ों, रक्त विकार, वायु-पित्त विकार आदि से साधक की रक्षा करता है। यह शारीरिक ऊर्जा भी प्रदान करता है।

व्याघ्र चर्म आसन

इस आसन का प्रयोग बड़े-बड़े यति, योगी तथा साधु-महात्मा एवं स्वयं भगवान शंकर करते हैं। यह आसन सात्विक गुण, धन-वैभव, भू-संपदा, पद-प्रतिष्ठा आदि प्रदान करता है।

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आसन पर बैठने से पूर्व आसन का पूजन करना चाहिए या एक एक चम्मच जल एवं एक फूल आसन के नीचे अवश्य चढ़ाना चाहिए। आसन देवता से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि मैं जब तक आपके ऊपर बैठकर पूजा करूं तब तक आप मेरी रक्षा करें तथा मुझे सिद्धि प्रदान करें। (पूजा में आसन विनियोग का विशेष महत्व है)। पूजा के बाद अपने आसन को मोड़कर रख देना चाहिए, किसी को प्रयोग के लिए नहीं देना चाहिए। आसन विनियोग के बाद भक्त को सबसे पहले पूर्व या उत्तर की ओर भगवान के सम्मुख दीपक जलाना चाहिए और दीपक जलाते समय यह मंत्र अवश्य बोलना चाहिए

अग्नि ज्योतिः परं ब्रह्मा दीपो ज्योतिर्जनार्दनः । 

दीपो हरतु मे पापं, दीप ज्योतिःनमोऽस्तुते। 

तंत्र साधना में आसन का अत्यधिक महत्त्व है |इसमें कुछ जगह इसके नीचे वामाचारी साधना में मुंडों का भी प्रयोग होता है शक्ति साधना में इसके नीचे यन्त्र चित्रित किये जाते हैं विभिन्न पदार्थ के मिश्रण से इन आसनों पर बैठकर की गई साधना विशेष परिणाम देती है किन्तु यहाँ असावधानी और गलती के लिए भी विशेष ध्यान रखना पड़ता है

डिसक्लेमर

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