ज्योतिष शास्त्र में २७ नक्षत्रों के अनुसार रोगों का वर्णन किया गया है। अपनी कुंडली में अपने नक्षत्र के अनुसार परिणाम देख सकते हैं और उपाय भी कर सकते हैं।

१. अश्विनी नक्षत्र : जातक को वायुपीड़ा, ज्वर, मतिभ्रम आदि से कष्ट।

उपाय : दान-पुण्य, दीन-दु:खियों की सेवा से लाभ होता है।

२. भरणी नक्षत्र : जातक को शीत के कारण कंपन, ज्वर, देह पीड़ा से कष्ट, देह में दुर्बलता, आलस्य व कार्यक्षमता का अभाव।

उपाय : गरीबों की सेवा करें, लाभ होगा।

३. कृतिका नक्षत्र : जातक आंखों संबंधित बीमारी, चक्कर आना, जलन, निद्रा भंग, गठिया घुटने का दर्द, हृदय रोग, घुस्सा आदि।

उपाय : मंत्र जप, हवन से लाभ।

४. रोहिणी नक्षत्र : ज्वर, सिर या बगल में दर्द, चित्त में अधीरता।

उपाय : चिरचिटे की जड़ भुजा में बांधने से मन को शांति मिलती है।

५. मृगशिरा नक्षत्र : जातक को जुकाम, खांसी, नजला से कष्ट।

उपाय : पूर्णिमा का व्रत करें, लाभ होगा।

६. आर्द्रा नक्षत्र : जातक को अनिद्रा, सिर में चक्कर आना, आधासीसी का दर्द, पैर, पीठ में पीड़ा।

उपाय : भगवान शिव की आराधना करें, सोमवार का व्रत करें, पीपल की जड़ दाहिनी भुजा में बांधें, लाभ होगा।

७. पुनर्वसु नक्षत्र : जातक को सिर या कमर में दर्द से कष्ट।

उपाय : रविवार को पुष्य नक्षत्र में आक के पौधे की जड़ अपनी भुजा पर बांधने से लाभ होगा।

८. पुष्य नक्षत्र : जातक निरोगी व स्वस्थ होता है। कभी तीव्र ज्वर से दर्द व परेशानी होती है।

उपाय : कुशा की जड़ भुजा में बांधने तथा पुष्प नक्षत्र में दान-पुण्य करने से लाभ होता है।

९. आश्लेषा नक्षत्र : जातक की दुर्बल देह प्राय: रोगग्रस्त बनी रहती है। देह के सभी अंगों में पीड़ा, विष प्रभाव या प्रदूषण के कारण कष्ट।

उपाय : नागपंचमी का पूजन करें। पटोल की जड़ बांधने से लाभ होता है।

१०. मघा नक्षत्र : जातक को आधासीसी या अर्द्धांग पीड़ा, भूत-पिशाच से बाधा।

उपाय : कुष्ठ रोगी की सेवा करें। गरीबों को मिष्ठान्न खिलाएं।

११. पूर्व फाल्गुनी : जातक को बुखार, खांसी, नजला, जुकाम, पसली चलना, वायु विकार से कष्ट।

उपाय : पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधें। नवरात्रों में देवी मां की उपासना करें।

१२. उत्तराफाल्गुनी : जातक को ज्वर ताप, सिर व बगल में दर्द, कभी बदन में पीड़ा या जकड़न।

उपाय : पटोल या आक की जड़ बाजू में बांधें। ब्राह्मण को भोजन कराएं।

१३. हस्त नक्षत्र : जातक को पेटदर्द, पेट में अफारा, पसीने से दुर्गंध, बदन में वात पीड़ा आदि।

उपाय : आक या जावित्री की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा।

१४. चित्रा नक्षत्र : जातक जटिल या विषम रोगों से कष्ट पाता है। रोग का कारण बहुधा समझ पाना कठिन होता है। फोड़े-फुंसी, सूजन या चोट से कष्ट होता है।

उपाय : असगंध की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होता है। तिल, चावल व जौ से हवन करें।

१५. स्वाति नक्षत्र : वात पीड़ा से कष्ट, पेट में गैस, गठिया, जकड़न से कष्ट।

उपाय : गौ तथा ब्राह्मणों की सेवा करें, जावित्री की जड़ भुजा में बांधें।

१६. विशाखा नक्षत्र : जातक को सर्वांग पीड़ा से दु:ख। कभी फोड़े होने से पीड़ा।

उपाय : गूंजा की जड़ भुजा भुजा पर बांधना, सुगंधित वास्तु से हवन करना लाभदायक होता है।

१७. अनुराधा नक्षत्र : जातक को ज्वर ताप, सिरदर्द, बदन दर्द, जलन, रोगों से कष्ट।

उपाय : चमेली, मोतिया, गुलाब की जड़ भुजा में बांधने से लाभ।

१८. ज्येष्ठा नक्षत्र : जातक को पित्त बढ़ने से कष्ट। देह में कंपन, चित्त में व्याकुलता, एकाग्रता में कमी, काम में मन नहीं लगना।

उपाय : चिरचिटे की जड़ भुजा में बांधने से लाभ। ब्राह्मण को दूध से बनी मिठाई खिलाएं।

१९. मूल नक्षत्र : जातक को सन्निपात ज्वर, हाथ-पैरों का ठंडा पड़ना, रक्तचाप मंद, पेट-गले में दर्द, अक्सर रोगग्रस्त रहना।

उपाय : 32 कुओं (नलों) के पानी से स्नान तथा दान-पुण्य से लाभ होगा।

२०. पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र : जातक को देह में कंपन, सिरदर्द तथा सर्वांग में पीड़ा।

उपाय : सफेद चंदन का लेप, आवास कक्ष में सुगंधित पुष्प से सजाएं। कपास की जड़ भुजा में बांधने से लाभ।

२१. उत्तराषाढ़ा नक्षत्र : जातक संधिवात, गठिया, वात, शूल या कटि पीड़ा से कष्ट, कभी असह्य वेदना।

उपाय : कपास की जड़ भुजा में बांधें, ब्राह्मणों को भोज कराएं, लाभ होगा।

२२. श्रवण नक्षत्र : जातक अतिसार, दस्त, देह पीड़ा, ज्वर से कष्ट, दाद, खाज, खुजली जैसे चर्मरोग कुष्ठ, पित्त, मवाद बनना, संधिवात, क्षयरोग से पीड़ा।

उपाय : अपामार्ग की जड़ भुजा में बांधने से रोग का शमन होता है।

२३. धनिष्ठा नक्षत्र : जातक मूत्र रोग, खूनी दस्त, पैर में चोट, सूखी खांसी, बलगम, अंग-भंग, सूजन, फोड़े या लंगड़ेपन से कष्ट।

उपाय : भगवान मारुति की आराधना करें। गुड़-चने का दान करें।

२४. शतभिषा नक्षत्र : जातक जलमय, सन्निपात, ज्वर, वात पीड़ा, बुखार से कष्ट, अनिद्रा, छाती पर सूजन, हृदय की अनियमित धड़कन, पिंडली में दर्द से कष्ट।

उपाय : यज्ञ-हवन, दान-पुण्य तथा ब्राह्मणों को मिठाई खिलाने से लाभ होगा।

२५. पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र : जातक को उल्टी या वमन, देह पीड़ा, बैचेनी, हृदयरोग, टखने की सूजन, आंतों के रोग से कष्ट होता है।

उपाय : भृंगराज की जड़ भुजा में भुजा पर बांधें, तिल का दान करने से लाभ होता है।

२६. उत्तराभाद्रपद नक्षत्र : जातक अतिसार, वातपीड़ा, पीलिया, गठिया, संधिवात, उदरवायु, पाव सुन्न पड़ना से कष्ट हो सकता है।

उपाय : पीपल की जड़ भुजा पर बांधने तथा ब्राह्मणों को मिठाई खिलाने से लाभ होगा।

२७. रेवती नक्षत्र : जातक को ज्वर, वात पीड़ा, मतिभ्रम, उदार विकार, मादक द्रव्य के सेवन से उत्पन्न रोग, किडनी के रोग, बहरापन या कान के रोग, पांव की अस्थि, मांसपेशी खिंचाव से कष्ट।

उपाय : पीपल की जड़ भुजा में बांधने से लाभ होगा।

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