पूजन कर्म में स्त्री हो या पुरुष, दोनों को कुमकुम, चंदन आदि का तिलक लगाने की परंपरा है। सभी पंडित पुरुषों के मस्तक या माथे पर तिलक लगाते हैं लेकिन स्त्रियों के संबंध में कुछ पंडित या ब्राह्मण माथे पर नहीं चुडिय़ों पर तिलक लगाते हैं। इसके पीछे कुछ खास कारण मौजूद है।
शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के विधिवत पूजन कर्म ब्राह्मण या पंडितों द्वारा ही कराए जाने चाहिए। यदि कोई पति-पत्नी कोई धार्मिक कार्य करवाते हैं तब उन दोनों का पूजन में सम्मिलित होना अनिवार्य माना गया है। इस प्रकार के आयोजन में ब्राह्मण द्वारा यजमान को कई बार तिलक लगाया जाता है। कई वेदपाठी ब्राह्मण स्त्रियों की चुडिय़ों पर ही तिलक लगाते हैं मस्तक पर नहीं। इसकी वजह यह है कि विवाहित स्त्री को पति के अलावा किसी अन्य पुरुष का स्पर्श करना निषेध माना गया है।
वेद-पुराण के अनुसार किसी भी विवाहित स्त्री को स्पर्श करने का अधिकार अन्य महिलाओं के अतिरिक्त केवल उसके पति को ही प्राप्त है। अन्य पुरुषों का स्पर्श होने से उसका पतिव्रत धर्म प्रभावित होता है। इसी वजह से वेदपाठी ब्राह्मण महिलाओं की चुडिय़ों पर तिलक लगाते हैं, माथे पर नहीं ताकि उन्हें स्पर्श न हो सके। स्त्री के बीमार होने पर या संकट में होने पर कोई वैद्य या डॉक्टर स्पर्श कर सकता है, इससे स्त्री का पतिव्रत धर्म नष्ट नहीं होता है।
ऐसी मान्यता है कि धार्मिक कर्म में चुडिय़ों पर तिलक लगाने से विवाहित स्त्री पतिव्रत धर्म हमेशा पवित्र रहता है और पति की उम्र लंबी होने के साथ स्वस्थ और सुखी जीवन रहता है। पति और पत्नी दोनों के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती हैं, उन्हें धन आदि की भी कमी नहीं होती।
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