योगिनी एकादशी सांसारिक सुख के साथ मोक्षदात्री है यह एकादशी हिंदू धर्म में आस्था रखने वालों के लिये हर मास आने वाली कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का महत्व बहुत अधिक है। पौराणिक ग्रंथों में हर एकादशी का अपना अलग महत्व बताया गया है। इन्हीं विशेषताओं के कारण इनके नाम भी भिन्न भिन्न रखे गये हैं। कुल मिलाकर साल भर में चौबीस एकादशियां होती हैं मल मास की एकादशियों को मिलाकर इनकी संख्या 26 हो जाती है। इन्हीं एकादशियों में एक एकादशी का व्रत ऐसा भी है जिसके करने से समस्त पाप तो नष्ट होते ही हैं साथ ही इस लोक में भोग और परलोक मुक्ति भी इस एकादशी का उपवास रखने से मिलती है। यह है आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे योगिनी एकादशी कहते हैं।

YOGINI EKADASHI VRAT KATHA योगिनी एकादशी व्रत कथा

योगिनी एकादशी का यह व्रत काफी प्रचलित है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार तो तीनों लोकों में इस एकादशी को बहुत महत्व दिया गया है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार ही योगिनी एकादशी व्रत की कथा कुछ इस प्रकार है।

महाभारत काल की बात है कि एक बार धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से एकादशियों के व्रत का माहात्म्य सुन रहे थे। उन्होंनें भगवान श्री कृष्ण से कहा कि भगवन आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या महत्व है और इस एकादशी का नाम क्या है? भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे राजन इस एकादशी का नाम योगिनी है। समस्त जगत में जो भी इस एकादशी के दिन विधिवत उपवास रखता है

प्रभु की पूजा करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। वह अपने जीवन में तमाम सुख-सुविधाओं, भोग-विलास का आनंद लेता है और अंत काल में उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। योगिनी एकादशी का यह उपवास तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। तब युद्धिष्ठर ने कहा प्रभु योगिनी एकादशी के महत्व को आपके मुखारबिंद से सुनकर मेरी उत्सुकता और भी बढ़ गई है कृपया इसके बारे थोड़ा विस्तार से बतायें। अब भगवान श्री कृष्ण कहने लगे हे धर्मश्रेष्ठ मैं पुराणों में वर्णित एक कथा सुनाता हूं उसे ध्यानपूर्वक सुनना।

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स्वर्गलोक की अलकापुरी नामक नगर में कुबेर नाम के राजा राज किया करते थे। वह बड़े ही नेमी-धर्मी राजा था और भगवान शिव के उपासक थे। आंधी आये तूफान आये कोई भी बाधा उन्हें भगवान शिव की पूजा करने से नहीं रोक सकती थी। भगवान शिव के पूजन के लिये उनके लिये हेम नामक एक माली फूलों की व्यवस्था करता था। वह हर रोज पूजा से पहले राजा कुबेर को फूल देकर जाया करता। हेम अपनी पत्नी विशालाक्षी से बहुत प्रेम करता था, वह बहुत सुंदर स्त्री थी।

एक दिन क्या हुआ कि हेम पूजा के लिये पुष्प तो ले आया लेकिन रास्ते में उसने सोचा अभी पूजा में तो समय है क्यों न घर चला जाये उसने आते-आते अपने घर की राह पकड़ ली। घर आने बाद अपनी पत्नी को देखकर वह कामास्कत हो गया और उसके साथ रमण करने लगा। उधर पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प न आने से व्याकुल हुए जा रहे थे। जब पूजा का समय बीत गया और हेम पुष्प लेकर नहीं पंहुचा तो राजा ने अपने सैनिकों को भेजकर उसका पता लगाने की कही।

सैनिकों ने लौटकर बता दिया कि महाराज वह महापापी है महाकामी है अपनी पत्नी के साथ रमण करने में व्यस्त था। यह सुनकर तो कुबेर का गुस्सा सांतवें आसमान पर पंहुच गया। उन्होंनें तुरंत हेम को पकड़ लाने की कही। अब हेम कांपते हुए राजा कुबेर के सामने खड़ा था। कुबेर ने हेम को क्रोधित होते हुए कहा कि हे नीच महापापी तुमने कामवश होकर भगवान शिव का अनादर किया है मैं तूझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा।

अब कुबेर के शाप से हेम माली भूतल पर पंहुच गया और कोढ़ग्रस्त हो गया। स्वर्गलोक में वास करते-करते उसे दुखों की अनुभूति नहीं थी। लेकिन यहां पृथ्वी पर भूख-प्यास के साथ-साथ एक गंभीर बिमारी कोढ़ से उसका सामना हो रहा था उसे उसके दुखों का कोई अंत नजर नहीं आ रहा था लेकिन उसने भगवान शिव की पूजा भी कर रखी थी उसके सत्कर्म ही कहिये कि वह एक दिन घूमते-घूमते मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पंहुच गया। इनके आश्रम की शोभा देखते ही बनती थी। ब्रह्मा की सभा के समान ही मार्कंडेय ऋषि की सभा का नजारा भी था।

वह उनके चरणों में गिर पड़ा और महर्षि के पूछने पर अपनी व्यथा से उन्हें अवगत करवाया। अब ऋषि मार्केंडय ने कहा कि तुमने मुझसे सत्य बोला है इसलिये मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को योगिनी एकादशी होती है। इसका विधिपूर्वक व्रत यदि तुम करोगे तो तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगें। अब माली ने ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया और उनके बताये अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस प्रकार उसे अपने शाप से छुटकारा मिला और वह फिर से अपने वास्तविक रुप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुख से रहने लगा।

भगवान श्री कृष्ण कथा सुनाकर युधिष्ठर से कहने लगे हे राजन 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात जितना पुण्य मिलता है उसके समान पुण्य की प्राप्ति योगिनी एकादशी का विधिपूर्वक उपवास रखने से होती है और व्रती इस लोक में सुख भोग कर उस लोक में मोक्ष को प्राप्त करता है।

योगिनी एकादशी व्रत व पूजा विधि (YOGINI EKADASHI VRAT PUJA VIDHI)

योगिनी एकादशी के उपवास की शुरुआत दशमी तिथि की रात्रि से ही हो जाती है। व्रती को दशमी तिथि की रात्रि से ही तामसिक भोजन का त्याग कर सादा भोजन ग्रहण करना चाहिये और ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें। हो सके तो जमीन पर ही सोएं। प्रात:काल उठकर नित्यकर्म से निजात पाकर स्नानादि के पश्चात व्रत का संकल्प लें। फिर कुंभस्थापना कर उस पर भगवान विष्णु की मूर्ति रख उनकी पूजा करें। भगवान नारायण की मूर्ति को स्नानादि करवाकर भोग लगायें।

पुष्प, धूप, दीप आदि से आरती उतारें। पूजा स्वंय भी कर सकते हैं और किसी विद्वान ब्राह्मण से भी करवा सकते हैं। दिन में योगिनी एकादशी की कथा भी जरुर सुननी चाहिये। इस दिन दान कर्म करना भी बहुत कल्याणकारी रहता है। पीपल के पेड़ की पूजा भी इस दिन अवश्य करनी चाहिये। रात्रि में जागरण करना भी अवश्य करना चाहिये। इस दिन दुर्व्यसनों से भी दूर रहना चाहिये और सात्विक जीवन जीना चाहिये।

अपरा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें. इसके बाद स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें व्रत का संकल्‍प लें. अब घर के मंदिर में भगवान विष्‍णु और बलराम की प्रतिमा, फोटो या कैलेंडर के सामने दीपक जलाएं. इसके बाद विष्‍णु की प्रतिमा को अक्षत, फूल, मौसमी फल, नारियल और मेवे चढ़ाएं. विष्‍णु की पूजा करते वक्‍त तुलसी के पत्ते अवश्‍य रखें. इसके बाद धूप दिखाकर श्री हरि विष्‍णु की आरती उतारें. अब सूर्यदेव को जल अर्पित करें. एकादशी की कथा सुनें या सुनाएं. व्रत के दिन निर्जला व्रत करें. शाम के समय तुलसी के पास गाय के घी का एक दीपक जलाएं . रात के समय सोना नहीं चाहिए. भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए. अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें. इसके बाद अन्‍न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें

प्रत्येक वर्ष में बारह माह होते है. और एक माह में दो एकादशी होती है। अमावस्या से ग्यारहवीं तिथि, एकाद्शी तिथि, शुक्ल पक्ष की एकाद्शी कहलाती है। इसी प्रकार पूर्णिमा से ग्यारहवीं तिथि कृष्ण पक्ष की एकाद्शी कहलाती है. इस प्रकार हर माह में दो एकाद्शी होती है। जिस वर्ष में अधिक मास होता है। उस साल दो एकाद्शी बढने के कारण 26 एकाद्शी एक साल में आती है. यह व्रत प्राचीन समय से यथावत चला आ रहा है. इस व्रत का आधार पौराणिक, वैज्ञानिक और संतुलित जीवन है।

हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि एकादशी का व्रत करके भगवान विष्णु की पूजा करने से घर में सुख समृद्धि आती है। लेकिन जो लोग इस दिन व्रत नहीं करते उन्हें खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। ज्योतिषियों का कहना है कि एकादशी के दिन प्यास, लहसुन, मांस, मछली और अंडा नहीं खाना चाहिए। इसके अलावा चावल भी खाना वर्जित बताया गया है।

एकादशी के बारे में हमारे शास्त्रों में लिखा गया है, ”न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या: परं व्रतं” इसका अर्थ है एकादशी के व्रत से बढ़कर कोई व्रत नहीं होता और विवेक के सामान कोई बंधु नहीं होता है। ज्योतिषियों का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति पांच ज्ञान इन्द्रियों को साध लेता है तो वह प्राणी पवित्र हो जाता है।

शास्त्रों में जल का संबंध चंद्रमा से बताया गया है। वहीं चावल का संबंध जल से बताया गया है। कहा जाता है कि हमारी पाचों इन्द्रियों पर मन का अधिकार होता है। मन ही व्यक्ति से तरह-तरह के काम करवाता है। कहा जाता है कि जिन राशि का स्वामी चंद्रमा होता है वो लोग अक्सर धोखा खाते हैं। ये लोग किसी पर भी जल्द ही भरोसा कर लेते हैं।।

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योगिनी एकादशी महत्व (YOGINI EKADASHI Importance)

योगिनी एकादशी का व्रत करने से जीवन में समृद्धि और आनन्द की प्राप्ति होती है। यह व्रत तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि योगिनी एकादशी का व्रत करने से 88 हज़ार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य मिलता है।

डिसक्लेमर 

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