हिंदू धर्म में अनेक देवी देवताओं को पूजा जाता हैं जिसमें से एक है मनसा माता। देवी मनसा को भगवान शंकर की पुत्री के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि मां मनसा की शरण में आने वालों का कल्याण होता है। मां की भक्ति से अपार सुख मिलते हैं। ग्रंथों के मुताबिक मानसा मां की शादी जगत्कारू से हुई थी और इनके पुत्र का नाम आस्तिक था। माता मनसा को नागो के राजा नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी जाना जाता है।

मनसा देवी के मंदिर का इतिहास बड़ा ही प्रभावशाली है। इनका प्रसिद्ध मंदिर हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर शिवालिक पहाड़ियों पर बिलवा पहाड़ पर स्थित है। यह जगह एक तरह से हिमालय पर्वत माला के दक्षिणी भाग पर पड़ती है। नवरात्रों में मां के दरबार में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते हैं। यहां लोग माता से अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए आशीर्वाद लेते हैं। माना जाता है कि माता मनसा देवी से मांगी गई हर मुराद माता पूरी करती है।

मनसा देवी की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति के सर्पदोष का विनाश होता है। मां की पूजा से भक्तो को धन संपत्ति की समस्याओं से मुक्ति मिलती है। घर की बाधाओ को समाप्त करने के लिए मानसा देवी की पूजा करना अत्यंत लाभदायी माना जाता है। रोगों की मुक्ति और अच्छे स्वास्थ्य के लिए मनसा देवी की पूजा करनी चाहिए।

1. मनसा देवी खड्गमाला मंत्र स्त्रोत ( कालसर्प दोष निवारण हेतु )

2. मनसा देवी ध्यान 

3. मनसा स्तोत्रम  

4. सर्पभयनाशक मनसा स्तोत्रम  

5. मनसा देवी स्तोत्रम्  (श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे )

6. मनसा देवी द्वादशनामस्तोत्रम् 

7. मनसा चालीसा 

8. ॥ मनसा देवीजी की आरती ॥ 

9. ।। श्री सर्प सूक्त का पाठ १

10. सर्पसूक्तम् २ 

11. सर्पसूक्तम् ३ 

1. मनसादेवी खड्गमाला मंत्र स्त्रोत ( कालसर्प दोष निवारण हेतु ) 

॥ श्री मनसायै नमः ॥

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं मनसा देव्यै नमः

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मनसा दैव्ये स्वाहा॥

ॐ ब्रहममनसायै विदमहे मंत्र अधिष्ठात्र्यै च धीमहि तन्नो

मनसा देवी प्रचोदयात

ॐ मनसायै कुण्डली वक्रा कुण्डल्यपि महाकुला ।

लीयमाना प्रकर्त्तव्या वर्णोच्चारेण शंकर ॥

लीयमाना विजानीहि निरालम्बा महापदा ।

अप्रमेया विरूपाक्षीं हुंकार कुण्डली शुभा ॥

आदिक्षान्तं समुच्चार्य प्रणवं चान्तरे न्यसेत् ।

देहे विन्यस्य बीजानि रक्ष रक्षेति मनसायै ॥

रक्ष मां काश्यपि देवी रक्ष आस्तिक प्रसूर्मम ।

जरत्कारु प्रिये रक्षास्मदीयभिदंवपुः ॥

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं सकलसुरासुरवन्दिते

सर्वांङ्गे नाग भूषण भूषिते नागमाला धारिणी नाग कुण्डल शोभिनी मदीयं शरीरं रक्ष रक्ष परमेश्वरि हुं फट् स्वाहा । ॐ भूः स्वाहा । ॐ भुव स्वाहा । ॐ स्वः स्वाहा । ॐ भूर्भुवः स्वः स्वाहा। सर्पमाला भूषिते महानागकौलिनि महाब्रह्मवादिनि महाऋषिप्रिये वरदायिनि “महाभोगप्रदे अस्मदीयं शरीरं वज्रमयं कुरु कुरु समस्त कालसर्प योगान् हन हन नागपाशान् क्षोभय क्षोभय नागचक्रं भञ्जय भञ्जय जयङ्करि स्मरणमात्रगामिनी त्रैलोक्यनागस्वामिनि समलवरयूं रमलवरयूं भमलवरयूं क्षमलवरयूं श्री काश्यपि प्रसीद प्रसीद स्वाहा ।

इति सर्वाङ्गे व्यापकं न्यसेत् ।

एषा नाग विद्या महाविद्या समया बलवत्तरा।

अतिवीर्यतरा तीव्रा सूर्यकोटिसमप्रभा ॥

कुलाङ्गगना कुलं सर्वं मदीयं परमेश्वरि ।

देवी रक्षतु सर्वाङ्गं दिव्याङ्गी भोगदायिनी ॥

रक्ष रक्ष महादेवि शरीरं परमेश्वरि ।

मदीयं परमानन्दे आपादतलमस्तकम् ॥

हुंकारं च ततः कुर्यात पूजयेद् भुविमण्डले ।

पूजान्ते वामहस्तेन ह्रींकारं च त्रिधा जपेत् ॥

पश्चात् मनसा मन्त्रेण मूलमन्त्रेण शाङ्करि ।

चक्रावरण देवीनां मनसाया महोजसः ॥

एकत्र गणनारूप मन्त्रो मन्त्रार्थ गोचरः ।

मालामन्त्र विधानेन क्रमणोच्चारणे भवेत् ॥

तस्मात् खङ्गवरं मन्त्रं स्वतनौ रक्षणं महत् ।

ध्यान

ॐ नमो मनसायै ।

जरत्कारु जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।

वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ॥ जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीति च ।

महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ॥

पूर्णानन्दमयी देवी मूलनागपीठनिवासिनी ।

आस्तिक प्रसूर्माता खड्गाभिदाऽभिरक्षतु ॥

ॐ अस्य श्री मनसा शुद्ध खड्गमाला ना महामन्त्रस्य वर्णादित्यऋषि: गायत्री छन्दः श्री मनसा देवता ऐं बीजं ह्रीं शक्ति; क्रौं कीलकं नाग कालसर्प योगबाधा निवारणार्थ जपे नाग विनियोगः ।

तादृशं खड्गमाप्नोति येन हस्तस्थितेनवै ।

अष्टादश महाद्वीप सम्राड्भोक्ता भविष्यति

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं ॐ नमः श्री नागसुन्दरि काश्यपि

नागाध्यक्षा नागास्त्रधारिणी नागकेशा नागनेत्रा नागरूपा च नागास्त्रसिद्धिदायिनी नागरथारूढ़ा नागवाहिनी नागपाशबंधिनी च नागपाशविमोचनी नागेश्वर नागेश्वरि शेषमयी वासुकीमयि काटकमयि शंखमय जरत्कारुमयि ऐरावतमयि कम्बलमयि धनन्जयमयि महानीलमयि पद्ममयि अश्वतरमयि तक्षकमयि एलापत्रमयि महापद्ममयि धृतराष्ट्रमयि शंखपालमयि पुष्पदंतमयि सुभावनमयि गौरि शंखरोमामयि नहुषमयि रमणमयि पाणिनिमयि कपिलमयि दुर्मुखमयि पातान्जलिमयि नागत्रैलोक्य मोहनचक्र स्वामिनि प्रकटयोगिनि स्तम्भनमुद्रे ।

नागब्रह्माणि नागकौमारि नागबाराहि नागशांकरि नागइन्द्राणि नागकंकालि सर्व नागकरालि नागकालि नागमहाकालि नागचामुण्डे नागज्वालामुखि नागकामाख्ये नागकपालिनि नागभद्रकालि नागदुर्गे उन्म नागाम्बिके नागललिते नागगौरि संह नागसुमंगले नागरोहिणि नागकपिले

.नागशूलकरे नागकुण्डलिनि नागत्रिपुरे कुरुकुल्ले नागभैरवि नागभद्रे नागचन्द्रावति नागनारसिंहि नागनिरञ्जने नागहेमकान्ते नागप्रेतासने नागईशानि नागवैश्वानरि नागवैष्णवि नागविनायकि नागयमघण्टे नागहरसिद्धे नागसरस्वति नागतोतुले नागवन्दिनि नागशंखिनि नागपद्मिनि नागचित्रिणि नागवारुणि नागचण्डि नागवनदेवि नागयमभगिनि सूर्यपुत्रि सुशीतले कृष्णभक्ता वाराहि रक्ताक्षि

कालरात्रे आकाशि श्रेष्ठिनि जये विजये धूमावति वागीश्वरि कात्यायिनि अग्निहोत्र नागचक्रे श्वरि महाविद्ये ईश्वर सर्पशापरिपूरक नागचक्र स्वामिनि नागगुप्तयोगिनि विद्ये ह्रीं पुष्टे प्रज्ञे सिनीवालि कुहु रुद्रे वीर्ये प्रभे नन्दे पोषिणि ऋद्धिदे कालरात्रे महारात्रे भद्रकालि कपर्दिनि विवृते दण्डिनि मुण्डिनि सेन्दुखण्डे शिखण्डिनि नागइन्द्राणि नागरुद्राणि गौरिप्रिया नारि नारायणि त्रिशुलिनि पालिनि नागअम्बिके हादिनि सर्पसंक्षोभिणनाग य चक्रस्वामिनि गुप्ततरयोगिनि ।नागचक्रस्वामिनि

गौरि पद्मे शचि मेधे सावित्रि विजये जये देवसेने स्वधे स्वाहे नागमातः नागलोकमातः धृते पुष्टे तुष्टे नागकुलदैवते

सर्वसौभाग्यदायक सम्प्रदाययोगिनि ।

असिताङ्ग भैरवमयि रुरुभैरवमयि चण्डभैरवमयि क्रोधभैरवमयि उन्मत्तभैरवमयि भीषणभैरवमयि संहारभैरवमयि नागब्राह्मी नागमाहेश्वरि ने नागकौमारि नागवैष्णवि नागवाराहि

नागान्द्राणि नागचामुण्डे नागमहालक्ष्मी सर्वरक्षाकर-नागचक्रस्वामिनि नागयोगिनि चतुरस्त्र मुद्रे

जये विजये दुर्गे भद्रकालि क्षेमकरि ना नित्ये सर्वार्थ साधक नागचक्रस्वामिनि कुलोत्तीर्णयोगिनि मत्स्यमुद्रे शंखनिध्यम्बे पद्मनिध्यम्बे क्लां मातृपुरनिवासिनि

हृदयशक्ति। क्लीं नागमूलपीठाश्रिते स्वाहा ।

शिरो शक्तिः । क्लं मनसागिरिप्रिये वषट्

शिखा शक्तिः । क्लैं नागएकवीरे हुं

कवच शक्तिः । क्लौं काश्यपि वीरे वौषट्

नेत्र शक्तिः । क्ल: मनसा फट् अस्त्रशक्तिः।

सर्व कर चक्रस्वामिनि निगर्भ योगिनि ।

डां डाकिनि त्वग्रक्षिणि चतुःषष्ठिलक्षकोटि नागयोगिनी स्वामिनिनायिके शां शाकिनि असृग्रक्षिणि द्वात्रिंशल्लक्ष कोटिनागयोगिनी स्वामिनीनायिके। लां लाकिनि मांस रक्षिणिषोडश लक्ष कोटि नागयोगिनि नागस्वामिनीनायके

कां काकिनि मेदोरक्षिण्यष्ट लक्षकोटि नागयोगिनि स्वामिनी नायिके । सां साकिनि अस्थिरक्षिणि चतुर्लक्षकोटिनागयोगिनि पि स्वामिनिनायिके। हां हाकिनि मज्जा रक्षिणि द्विलक्षकोटिनागयोगिनी स्वामिनिनायिके

शां शाकिनि शुक्ररक्षिणि

एकलक्षकोटि-नागयोगिनि स्वामिनि ना नायिके सर्वरोगहरनाग-चक्रस्वामिनि सर्वरहस्यनागयोगिनि गोमुखमुद्रे । क्लीं टंकहस्ते आस्तिकजननि उड्यानपीठे इच्छाशक्ति: जालन्धरपीठे ज्ञानशक्तिः कामरूपपीठे क्रियाशक्तिः सर्वसिद्धिप्रद नागचक्रस्वामिनि अतिरहस्यनागयोगिनि योनिमुद्रे ।

श्री मनसे बिन्दुचक्र निवासिनि परापरातिरहस्ययोगिनि श्रीनागमूलपीठे श्रीनागमूलपीठेशि श्रीनागमूलपीठसुन्दरि श्रीनागमूलपीठनिवासिनि श्रीनागमूल पीठश्रि श्रीनागमूल-पीठमालिनि श्रीनागमूलपीठ-सिद्धे श्रीनागमूलपीठाम्बे श्रीनागमहामूलपीठसुन्दरि श्रीनागमहा माहेश्वरि महामहानागराज्ञि महामहानागशक्ते महामहानागगुप्ते महामहानागनन्दे महामहानागज्ञप्ते महामहानागस्पन्दे महामहाशये महामहा श्रीनागमूलपीठ चक्रनगरस्वामिनि नागसाम्राज्ञि नमस्ते नमस्ते नमस्ते स्वाहा ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं सर्वपूज्ये देवि मंगलचण्डिके मनसा देवी हूं फट् स्वाहा ॐ ।

ॐ आं ह्रीं पश्चिम दिशा में सोने का मठ सोने का किवाड़ सोने का ताला सोने की कुंजी सोने का घण्टा सोने की सांकुली पहिली सांकुली अठारह कुल नाग के वांधों दूसरी सांकुली अठारह कुल नाग जाति के वांधों वाचा चूकै उमा सूखे श्री बावन वीर ले जाय सात समुन्दर तीर त्रिवाचा सत्य मंत्र फुरो वाचा । ॐ नागभैरवी नागसुन्दरि नागरक्षिका नागकालिका महाभयविनाशनी मनसा देवी सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं उत्तर दिशा में रूपे का मठ रूपे का किवार रूपे का ताला रूपे की कुंजी रूपे का घण्टा रूपे की सांकुली पहिली सांकुली अठारह कुल नाग वांधों दूसरी सांकुली अठारह कुल नाग जाति को वांधों वाचा चूकै उमा सूखै श्री बावन वीर ले जाय सात समुन्दर तीर त्रिवाचा फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा । ॐ नागभैरवी नागसुन्दरि नागरक्षिका नागकालिका महाभयविनाशनी मनसा देवी सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं पूरब दिशा में तामे का मठ तामे का किवार तामे का ताला तामे की कुंजी तामे का घण्टा तामे की सांकुली पहिली सांकुली अठारह कुल नाग को वांधूं दूसरी सांकुली अठारह कुल नाग जाति को वांधूं वाचा चूकै उमा सूखै श्री बावन वीर ले जाय सात समुन्दर तीर त्रिवाचा फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा । ॐ नागभैरवी नागसुन्दरि नागरक्षिका नागकालिका महाभयविनाशनी मनसा देवी सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ आं ह्रीं दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ अस्थि का किवार अस्थि का ताला अस्थि की कुंजी अस्थि का घन्टा अस्थि की सांकुली’ पहिली सांकुली अठारह कुल नाग को वांधी दूसरी सांकुली अठारह कुल नाग जाति को वांधों वाचा चूके उमा सूखे श्री बावनवीर ले जाय सात समुंदर तीर त्रिवाचा फुरो मंत्र ईश्वरी वाचा।

ॐ नागभैरवी नागसुन्दरी नागरक्षिका नागकालिका महाभयविनाशिनी मनसा देवी सर्वसिद्धिर्भवेत्।

ॐ नागभैरवी त्वं आकाशं त्वं पातालं त्वं त्युलोकं चतुर्भुजं चतुर्मुखं चतुर्वाहुं शत्रुहन्ता च त्वं नागभैरवी भक्तिपूर्ण कलेवरम् । ॐ नागभैरवी नागसुन्दरि नागरक्षिका नागकालिका महाभयविनाशनी मनसा देवी सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ नागभैरवी त्वं सहस्रमुख सहस्त्र जिह्वा सहस्त्र वाहनं सहस्र दुष्ट भक्षितं त्वं सेवकस्य सहस्त्र कामना सिद्धि करोसि। नागभैरवी नागसुन्दरि एवं नागसुन्दरि नागरक्षिका नागकालिका महाभयविनाशनी मनसा देवी सर्वसिद्धिर्भवेत् ।

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मंगलचण्डिके मनसा दैव्ये मम जन्मांगे स्थित सर्पग्रह बाधा सर्व दृश्य अदृश्य काल सर्प योग बाधा निवारय निवारय हुं फट् स्वाहा । समस्तप्रकट गुप्तगुप्ततरनागसम्प्रदाय नागकुलकौलिनि गर्भरहस्यातिरहस्य परापर-रहस्ययोगिनि श्रीनागराजराजेश्वरि श्री मनसा परमेश्वरि श्रीनागमूलपीठेश्वरि श्रीपादुकां पूजयामि नमः । पुष्पाञ्जलिं नैवेद्य मुलेन न्यासं विधाय मानसोपचारैः पूजयेत् ।

 

2. मनसा देवी ध्यान 

ध्यानम्

श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषणभूषिताम् ।

वह्निशुद्धांशुकाधानां नागयज्ञोपवीतिनीम् ॥ १ ॥

महाज्ञानयुतां चैव प्रवरां ज्ञानिनां सताम् ।

सिद्धाधिष्टातृदेवीं च सिद्धां सिद्धिप्रदां भजे ॥ २ ॥

पञ्चोपचार पूजा 

ओं नमो मनसायै – गन्धं परिकल्पयामि ।

ओं नमो मनसायै – पुष्पं परिकल्पयामि ।

ओं नमो मनसायै – धूपं परिकल्पयामि ।

ओं नमो मनसायै – दीपं परिकल्पयामि ।

ओं नमो मनसायै – नैवेद्यं परिकल्पयामि ।

मूलमन्त्रम् 

ओं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मनसादेव्यै स्वाहा ॥

इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे प्रकृतिखण्डे षट्चत्वारिंशत्तमोऽध्याये द्वादशाक्षर मूलमन्त्रम् ॥

3. मनसादेवी स्तोत्र 

श्री नारायण उवाच 

श्रूयतां मनसाख्यानं यत् श्रुतं धर्मवक्त्रतः || १ ||

सा च कन्या भगवती कश्यपस्य च मानसी |

तेनैव मनसा देवी मनसा या च दीव्यति || २ ||

मनसा ध्यायते या च परमात्मानं ईश्वरम् |

तेन सा मनसादेवी तेन योगेन दीव्यति || ३ ||

आत्मारामा च सा देवी वैष्णवी सिद्धयोगिनी |

त्रियुगं च तपस्तप्त्वा कृष्णस्य परमात्मनः || ४ ||

जरत्कारुशरीर च दृष्ट्वा यत् क्षिणमीश्वरः |

गोपीपतिर्नाम चक्रे जरत्कारुरिति प्रभुः || ५ ||

वांछितं च ददौ तस्यै कृपया च कृपानिधिः |

पूजां च कारयामास चकार च स्वयं प्रभुः || ६ ||

स्वर्गे च नागलोके च पृथिव्यां ब्रह्मलोकतः |

भृशं जगत्सु गौरी सा सुन्दरी च मनोहरा || ७ ||

जगद्गौरीति विख्याता तेन सा पूजिता सती |

शिवशिष्या च सा देवी तेन शैवी प्रकीर्तिता || ८ ||

विष्णुभक्ता अतीव शश्वद् वैष्णवी तेन कीर्तिता |

नागानां प्राणरक्षित्री यज्ञे पारीक्षितस्य च || ९ ||

नागेश्वरीति विख्याता सा नागभगिनीति च |

विषं संहर्तुं ईशा या तेन विषहरी स्मृता || १० ||

सिद्धियोगं हरात् प्राप तेन सा सिद्धयोगिनी |

महाज्ञानं च योगं च मृतसंजीवनीं पराम् || ११ ||

महाज्ञानयुतां तां च प्रवदंति मनीषिणः |

आस्तीकस्य मुनीन्द्रस्य माता सापि तपस्विनी || १२ ||

आस्तीकमाता विज्ञाता जगत्यां सुप्रतिष्ठिता |

प्रिया मुनेः जरत्कारोः मुनीन्द्रस्य महात्मनः || १३ ||

योगिनी विश्वपूज्यस्य जरत्कारुप्रिया ततः |

जगत्कारुः जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी || १४ ||

वैष्णवी नागभगिनी शैव नागेश्वरी तथा |

जरत्कारुप्रिया – आस्तीकमाता विषहरेति च || १५ ||

महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता |

द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले तु यः पठेत् || १६ ||

तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च |

नागभीते च शयने नागग्रस्ते च मंदिरे || १७ ||

नागशोभे महादुर्गे नागवेष्टितविग्रहे |

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु मुच्यते नात्र संशयः || १८ ||

नित्यं पठेत् यः तं दृष्ट्वा नागवर्गः पलायते |

दशलक्षजपेनैव स्तोत्रसिद्धिः भवेत् नृणाम् || १९ ||

स्तोत्रसिद्धिः भवेत् यस्य स विषं भोक्तुमीश्वरः |

नागैश्च भूषणं स भवेत् नागवाहनः || २० ||

नागासनो नागतल्पो महासिद्धो भवेत् नरः |

अंते च विष्णुना सार्धं क्रीडत्येव दिवानिशम् || २१ ||

|| मनसा देवी स्तोत्र सम्पूर्णं ||

4. सर्पभयनाशक मनसास्तोत्रम्  

ध्यानं

चारुचम्पकवर्णाभां सर्वाङ्गसुमनोहराम् ।

नागेन्द्रवाहिनीं देवीं सर्वविद्याविशारदाम् ॥

श्रीनारायण उवाच 

नमः सिद्धिस्वरुपायै वरदायै नमो नमः ।

नमः कश्यपकन्यायै शंकरायै नमो नमः ॥ १॥

बालानां रक्षणकर्त्र्यै नागदेव्यै नमो नमः ।

नम आस्तीकमात्रे ते जरत्कार्व्यै नमो नमः ॥ २॥

तपस्विन्यै च योगिन्यै नागस्वस्रे नमो नमः ।

साध्व्यै तपस्यारुपायै शम्भुशिष्ये च ते नमः ॥ ३॥

॥ फलश्रुतिः ॥

इति ते कथितं लक्ष्मि मनसाया स्तवं महत् ।

यः पठति नित्यमिदं श्रावयेद्वापि भक्तितः ॥

न तस्य सर्पभीतिर्वै विषोऽप्यमृतं भवति ।

वंशजानां नागभयं नास्ति श्रवणमात्रतः ॥

॥ इति श्रीमनसास्तोत्रम् ॥

हे लक्ष्मी यह मनसा देवी का महान् स्तोत्र कहा है ।

जो नित्य भक्तिपूर्वक इसे पढता या सुनता है

उसे साँपों का भय नहीं होता और विष भी अमृत हो जाता है । उसके वंश में जन्म लेनेवालों को इसके श्रवण मात्र से साँपों का भय नहीं होता

5. मनसादेवी स्तोत्रम् 

महेन्द्र उवाच ।

देवीं त्वां स्तोतुमिच्छामि साध्विनीं प्रवरां पराम् ।

परात्परां च परमां न हि स्तोतुं क्षमोऽधुना ॥ १॥

स्तोत्राणां लक्षणं वेदे स्वभावाख्यानतः परम् ।

न क्षमः प्रकृतिं वक्तुं गुणानां तव सुव्रते ॥ २॥

शुद्धसत्त्वस्वरूपा त्वं कोपहिंसाविवर्जिता ।

न च शप्तो मुनिस्तेन त्यक्तया च त्वया यतः ॥ ३॥

त्वं मया पूजिता साध्वि जननी च यथाऽदितिः ।

दयारूपा च भगिनी क्षमारूपा यथा प्रसूः ॥ ४॥

त्वया मे रक्षिताः प्राणाः पुत्रद्वाराः सुरेश्वरि ।

अहं करोमि त्वां पूज्यां मम प्रीतिश्च वर्धते ॥ ५॥

नित्यं यद्यपि पूज्या त्वं भवेऽत्र जगदम्बिके ।

तथाऽपि तव पूजां वै वर्धयामि पुनः पुनः ॥ ६॥

ये त्वामाषाढसङ्क्रान्त्यां पूजयिष्यन्ति भक्तितः ।

पञ्चम्यां मनसाऽऽख्यायां मासान्ते वा दिने दिने ॥ ७॥

पुत्रपौत्रादयस्तेषां वर्धन्ते च धनानि च ।

यशस्विनः कीर्तिमन्तो विद्यावन्तो गुणान्विताः ॥ ८॥

ये त्वां न पूजयिष्यन्ति निन्दन्त्यज्ञानतो जनाः ।

लक्ष्मीहीना भविष्यन्ति तेषां नागभयं सदा ॥ ९॥

त्वं स्वर्गलक्ष्मीः स्वर्गे च वैकुण्ठे कमला कला ।

नारायणांशो भगवान् जरत्कारुर्मुनीश्वरः ॥ १०॥

तपसा तेजसा त्वां च मनसा ससृजे पिता ।

अस्माकं रक्षणायैव तेन त्वं मनसाभिधा ॥ ११॥

मनसा वेदितुं शक्ता चाऽऽत्मना सिद्धयोगिनी ।

तेन त्वं मनसादेवी पूजिता वन्दिता भवे ॥ १२॥

यां भक्त्या मनसा देवाः पूजयन्त्यनिशं भृशम् ।

तेन त्वं मनसादेवी प्रवदन्ति पुराविदः ॥ १३॥

सत्त्वरूपा च देवी त्वं शश्वत्सत्त्वनिषेवया ।

यो हि यद्भावयेन्नित्यं शतं प्राप्नोति तत्समम् ॥ १४॥

इदं स्तोत्रं पुण्यबीजं तां सम्पूज्य च यः पठेत् ।

तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च । var तस्यवंशे भवेच्च यः

विषं भवेत्सुधातुल्यं सिद्धस्तोत्रं यदा पठेत् ॥ १५॥

पञ्चलक्षजपेनैव सिद्धस्तोत्रो भवेन्नरः ।

सर्पशायी भवेत्सोऽपि निश्चितं सर्ववाहनः ॥ १६॥

इति श्रीब्रह्मवैवर्ते महापुराणे द्वितीये प्रकृतिखण्डे

मनसोपाख्याने श्रीमनसादेवी स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

6. मनसादेवी द्वादशनामस्तोत्रम्  

ॐ नमो मनसायै ।

जरत्कारु जगद्गौरी मनसा सिद्धयोगिनी ।

वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा ॥ १॥

जरत्कारुप्रियाऽऽस्तीकमाता विषहरीती च ।

महाज्ञानयुता चैव सा देवी विश्वपूजिता ॥ २॥

द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले च यः पठेत् ।

तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोद्भवस्य च ॥ ३॥

नागभीते च शयने नागग्रस्ते च मन्दिरे ।

नागभीते महादुर्गे नागवेष्टितविग्रहे ॥ ४॥

इदं स्तोत्रं पठित्वा तु मुञ्चते नात्रसंशयः ।

नित्यं पठेद्यः दृष्ट्वा नागवर्गः पलायते ॥ ५॥

नागौधं भूषणं कृत्वा स भवेत् नागवाहनाः ।

नागासनो नागतल्पो महासिद्धो भवेन्नरः ॥ ६॥

॥ इति मनसादेवी द्वादशनामस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

7. मनसा चालीसा 

॥ मनसा देवीजी का मन्त्र ॥

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं मनसा दैव्ये स्वाहा॥

॥ मनसा देवीजी की चालीसा-अमृतवाणी ॥

मनसा माँ नागेश्वरी, कष्ट हरन सुखधाम।

चिंताग्रस्त हर जीव के, सिद्ध करो सब काम॥

देवी घट-घट वासिनी, ह्रदय तेरा विशाल।

निष्ठावान हर भक्त पर, रहियो सदा तैयार॥

पदमावती भयमोचिनी अम्बा, सुख संजीवनी माँ जगदंबा।

मनशा पूरक अमर अनंता, तुमको हर चिंतक की चिंता॥

कामधेनु सम कला तुम्हारी, तुम्ही हो शरणागत रखवाली।

निज छाया में जिनको लेती, उनको रोगमुक्त कर देती॥

धनवैभव सुखशांति देना, व्यवसाय में उन्नति देना।

तुम नागों की स्वामिनी माता, सारा जग तेरी महिमा गाता॥

महासिद्धा जगपाल भवानी, कष्ट निवारक माँ कल्याणी।

याचना यही सांझ सवेरे, सुख संपदा मोह ना फेरे॥

परमानंद वरदायनी मैया, सिद्धि ज्योत सुखदायिनी मैया।

दिव्य अनंत रत्नों की मालिक, आवागमन की महासंचालक॥

भाग्य रवि कर उदय हमारा, आस्तिक माता अपरंपारा।

विद्यमान हो कण कण भीतर, बस जा साधक के मन भीतर॥

पापभक्षिणी शक्तिशाला, हरियो दुख का तिमिर ये काला।

पथ के सब अवरोध हटाना, कर्म के योगी हमें बनाना॥

आत्मिक शांति दीजो मैया, ग्रह का भय हर लीजो मैया।

दिव्य ज्ञान से युक्त भवानी, करो संकट से मुक्त भवानी॥

विषहरी कन्या, कश्यप बाला, अर्चन चिंतन की दो माला।

कृपा भगीरथ का जल दे दो, दुर्बल काया को बल दे दो॥

अमृत कुंभ है पास तुम्हारे, सकल देवता दास तुम्हारे।

अमर तुम्हारी दिव्य कलाएँ, वांछित फल दे कल्प लताएँ॥

परम श्रेष्ठ अनुकंपा वाली, शरणागत की कर रखवाली।

भूत पिशाचर टोना टंट, दूर रहे माँ कलह भयंकर॥

सच के पथ से हम ना भटके, धर्म की दृष्टि में ना खटके।

क्षमा देवी, तुम दया की ज्योति, शुभ कर मन की हमें तुम होती॥

जो भीगे तेरे भक्ति रस में, नवग्रह हो जाए उनके वश में।

करुणा तेरी जब हो महारानी, अनपढ बनते है महाज्ञानी॥

सुख जिन्हें हो तुमने बांटें, दुख की दीमक उन्हे ना छांटें।

कल्पवृक्ष तेरी शक्ति वाला, वैभव हमको दे निराला॥

दीनदयाला नागेश्वरी माता, जो तुम कहती लिखे विधाता।

देखते हम जो आशा निराशा, माया तुम्हारी का है तमाशा॥

आपद विपद हरो हर जन की, तुम्हें खबर हर एक के मन की।

डाल के हम पर ममता आँचल, शांत कर दो समय की हलचल॥

मनसा माँ जग सृजनहारी, सदा सहायक रहो हमारी।

कष्ट क्लेश ना हमें सतावे, विकट बला ना कोई भी आवे॥

कृपा सुधा की वृष्टि करना, हर चिंतक की चिंता हरना।

पूरी करो हर मन की मंशा, हमें बना दो ज्ञान की हंसा॥

पारसमणियाँ चरण तुम्हारे, उज्वल करदे भाग्य हमारे।

त्रिभुवन पूजित मनसा माई, तेरा सुमिरन हो फलदाई॥

इस गृह अनुग्रह रस बरसा दे, हर जीवन निर्दोष बना दे।

भूलेंगें उपकार ना तेरे, पूजेंगे माँ सांझ सवेरे॥

सिद्ध मनसा सिद्धेश्वरी, सिद्ध मनोरथ कर।

भक्तवत्सला दो हमें सुख संतोष का वर, सुख संतोष का वर॥

मैया जी से जय माताजी कहियो, कहियो जी माँ के लाडलो॥

8. ॥ मनसा देवीजी की आरती ॥ 

जय मनसा माता, श्री जय मनसा माता,

जो नर तुमको ध्याता, जो नर मैया जी को ध्याता,

मनोवांछित फल पाता, जय मनसा माता॥

जरत्कारू मुनि पत्नी, तुम वासुकि भगिनी

कश्यप की तुम कन्या, आस्तीक की माता,

जय मनसा माता॥

सुर नर मुनि जन ध्यावत, सेवत नर नारी

गर्व धन्वंतरि नाशिनी, हंसवाहिनी देवी

जय नागेश्वरी माता, जय मनसा माता॥

पर्वतवासिनी, संकटनाशिनी, अक्षय धनदात्री,

पुत्र पौत्रदायिनि माता, मन इच्छा फल दाता,

जय मनसा माता॥

मनसा जी की आरती जो कोई नर गाता,

मैया जो जन नित गाता,

कहत शिवानंद स्वामी, रटत हरिहर स्वामी,

सुख संपति पाता, जय मनसा माता॥

9. ।। श्री सर्प सूक्त का पाठ ।। 

अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में कालसर्प योग है, उसने उसके निवारण के लिए अनेक उपाय भी कर लिए उसके बाद भी कालसर्प दोष से होने वाली परेशानियों से छूटकारा नहीं मिल पा रहा है तो, ऐसे व्यक्ति घबराएं नहीं बल्की सावन माह में पड़ने वाले नागपंचमी पर्व के दिन नाग देवता की इस वंदना को नियमित रूप से करने से शीघ्र लाभ होने लगता हैं । इसके आलावा भी जीवन में अन्य कोई और भी समस्या हो तो उन्में भी सर्प सूक्त का पाठ करने से राहत मिलती हैं । 

ॐ सर्पेभ्यो नमः

ॐ शं शं शं शेषनाग देवताये नमः

ॐ ह्रीं क्लीं वासुक्ये नमः

ॐ सहस्त्रफणाय च विदमहे वासुकीराजाय धीमहि तन्नो नाग: प्रचोदयात्

ॐ भुजंगेशाय विद्महे, सर्पराजाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात्।।

ॐ नवकुलाय विद्महे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प प्रचोदयात

ॐ अनन्तेशाय विद्महे महाभुजांगाय धीमहि तन्नो नाथः प्रचोदयात

1- ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा: ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखाद्य: ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा

2- कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।

3- सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।

4- पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।

5- ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।

समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन: ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।

6- रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला: ।

नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा ।।

इति श्री सर्प सूक्त पाठ समाप्त 

10. सर्पसूक्तम् २ 

नमोऽस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिविमनु ।

ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥ १॥

येऽदो रोचने दिवो ये वा सूर्यस्य रश्मिषु ।

येषामप्सूषदः कृतं तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥ २॥

या इषवो यातुधानानां ये वा वनस्पतीम्+ रनु ।

ये वाऽवटेषु शेरते तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥ ३॥

ऋग्वेद खिलानि (२.१४)

स्वप्नस्स्वप्नाधिकरणे सर्वं निष्वापया जनम् ।

आ सूर्यमन्यांस्त्वापयाव्युषं जाग्रियामहम् ॥ ४॥

अजगरोनाम सर्पः सर्पिरविषो महान् ।

तस्मिन्हि सर्पस्सुधितस्तेनत्वा स्वापयामसि ॥ ५॥

सर्पस्सर्पो अजगरसर्पिरविषो महान् ।

तस्य सर्पात्सिन्धवस्तस्य गाधमशीमहि ॥ ६॥

कालिको नाम सर्पो नवनागसहस्रबलः ।

यमुनाह्रदेहसो जातो यो नारायण वाहनः ॥ ७॥

यदि कालिकदूतस्य यदि काः कालिकात् भयात् ।

जन्मभूमिमतिक्रान्तो निर्विषो याति कालिकः ॥ ८॥

आयाहीन्द्र पथिभिरीलितेभिर्यज्ञमिमन्नो भागदेयञ्जुषस्व ।

तृप्तां जुहुर्मातुलस्ये वयोषा भागस्थे पैतृष्वसेयीवपामिव ॥ ९॥

यशस्करं बलवन्तं प्रभुत्वं तमेव राजाधिपतिर्बभूव ।

सङ्कीर्णनागाश्वपतिर्नराणां सुमङ्गल्यं सततं दीर्घमायुः ॥ १०॥

कर्कोटको नाम सर्पो योद्वष्टी विष उच्यते ।

तस्य सर्पस्य सर्पत्वं तस्मै सर्प नमोऽस्तुते ॥ ११॥

सर्पगायत्री –

भुजङ्गेशाय विद्महे सर्पराजाय धीमहि ।

तन्नो नागः प्रचोदयात् ॥ १२॥

नमो॑ अस्तु स॒र्पेभ्यो॒ ये के च॑ पृथि॒वीमनु॑ ।

ये अ॒न्तरि॑क्षे॒ ये दि॒वि तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ॥

ये॑ऽदो रो॑च॒ने दि॒वो ये वा॒ सूर्य॑स्य र॒श्मिषु॑ ।

येषा॑म॒प्सु सदः॑ कृ॒तं तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ॥

या इष॑वो यातु॒धाना॑नां॒ ये वा॒ वन॒स्पती॒ꣳ॒रनु॑ ।

ये वा॑ व॒टेषु॒ शेर॑ते॒ तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ॥ ४। २। ८॥

तैत्तिरीयसंहिता

11. सर्पसूक्तम् ३ 

नमो॑ अस्तु स॒र्पेभ्यो॒ ये के च॑ पृथि॒वीमनु॑ ।

ये अ॒न्तरि॑क्षे॒ ये दि॒वि तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ॥

ये॑ऽदो रो॑च॒ने दि॒वो ये वा॒ सूर्य॑स्य र॒श्मिषु॑ ।

येषा॑म॒प्सु सदः॑ कृ॒तं तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ॥

या इष॑वो यातु॒धाना॑नां॒ ये वा॒ वन॒स्पती॒ꣳ॒रनु॑ ।

ये वा॑ व॒टेषु॒ शेर॑ते॒ तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ नमः॑ ॥ ४। २। ८॥ (TS) १

इ॒दꣳ स॒र्पेभ्यो॑ ह॒विर॑स्तु॒ जुष्ट᳚म् ।

आ॒श्रे॒षा येषा॑मनु॒यन्ति॒ चेतः॑ ॥ (३। १। १। ५॥ TS)

ये अ॒न्तरि॑क्षं पृथि॒वीं क्षि॒यन्ति॑ ।

ते नः॑ स॒र्पासो॒ हव॒माग॑मिष्ठाः ।

ये रो॑च॒ने सूर्य॒स्यापि॑ स॒र्पाः ।

ये दिवं॑ दे॒वीमनु॑ सं॒चर॑न्ति ।

येषा॑माश्रे॒षा अ॑नु॒यन्ति॒ काम᳚म् ।

तेभ्यः॑ स॒र्पेभ्यो॒ मधु॑मज्जुहोमि । (३। १। १। ६॥) (TS) २

नि॒घृष्वै॑रस॒मायु॑तैः । कालैर्हरित्व॑माप॒न्नैः । इन्द्राया॑हि स॒हस्र॑युक् । अ॒ग्निर्वि॒भ्राष्टि॑वसनः । वा॒युः श्वेत॑सिकद्रु॒कः । सं॒व॒थ्स॒रो वि॑षू॒वर्णैः᳚ । नित्या॒स्तेऽनुच॑रास्त॒व । सुब्रह्मण्योꣳ सुब्रह्मण्योꣳ सु॑ब्रह्म॒ण्योम् । (०।१।१२। ५८) (TA) ३

स्वररहितम् ।

नमो अस्तु सर्पेभ्यो ये के च पृथिवीमनु ।

ये अन्तरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥

येऽदो रोचने दिवो ये वा सूर्यस्य रश्मिषु ।

येषामप्सु सदः कृतं तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥

या इषवो यातुधानानां ये वा वनस्पतीꣳरनु ।

ये वा वटेषु शेरते तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः ॥ ४। २। ८॥ (TS) १

इदꣳ सर्पेभ्यो हविरस्तु जुष्टम् ।

आश्रेषा येषामनुयन्ति चेतः ॥ (३। १। १। ५॥)

ये अन्तरिक्षं पृथिवीं क्षियन्ति ।

ते नः सर्पासो हवमागमिष्ठाः ।

ये रोचने सूर्यस्यापि सर्पाः ।

ये दिवं देवीमनु संचरन्ति ।

येषामाश्रेषा अनुयन्ति कामम् ।

तेभ्यः सर्पेभ्यो मधुमज्जुहोमि । (३। १। १। ६॥) (TS) २

निघृष्वैरसमायुतैः । कालैर्हरित्वमापन्नैः । इन्द्रायाहि सहस्रयुक् ।  अग्निर्विभ्राष्टिवसनः । वायुः श्वेतसिकद्रुकः । संवथ्सरो विषूवर्णैः । नित्यास्तेऽनुचरास्तव । सुब्रह्मण्योꣳ सुब्रह्मण्योꣳ सुब्रह्मण्योम् । (०।१।१२। ५८) (TA) ३

सर्वनाग प्रार्थना 

ॐ सर्पेभ्यो नमः

सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथ्वीतले।

ये च हेलिमरीचिस्था ये न्तरे दिवि संस्थिता:।। 

ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।

ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।। 

अर्थात– संपूर्ण आकाश, पृथ्वी, स्वर्ग, सरोवर-तालाबों, नल-कूप, सूर्य किरणें आदि जहां-जहां भी नाग देवता विराजमान है। वे सभी हमारे दुखों को दूर करके हमें सुख-शांतिपूर्वक जीवन दें। उन सभी को हमारी ओर से बारंबार प्रणाम हो…।

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